धीरे-धीरे ही सही लेकिन अब यूरोप में रेडिकल इस्लाम के खिलाफ माहौल बनने लगा है। फ्रांस में भी अब इसके खिलाफ आवाज उठनी शुरू हो चुकी है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने कट्टरपंथी इस्लाम को निशाने पर लिया और “इस्लामी अलगाववाद” फैलाने वालों को समाज से बाहर करने के कानून को बनाने की घोषणा की।
इमैनुएल मैक्रॉन ने शुक्रवार को एक भाषण के दौरान देश में कट्टरपंथी इस्लाम के प्रभाव पर लगाम लगाने के लिए तैयार किए गए उपायों की रूपरेखा की बात की और ऐसे कानून बनाने की घोषणा की जिससे फ़्रांस में गणतांत्रिक मूल्यों के अनुकूल सबकुछ रहे। मैक्रॉन ने कहा कि रेडिकल इस्लाम के प्रभाव को सार्वजनिक संस्थानों से भी मिटा देना चाहिए।
NYT की रिपोर्ट के अनुसार मैक्रॉन ने कहा, यदि कानून पारित किया जाता है, तो अधिकारियों को किसी भी रेडिकल इस्लाम के प्रभाव वाले एसोसिएशन और स्कूलों को बंद करने की ताकत प्राप्त हो जाएगी। यही नहीं इस कानून से फ्रांस में धार्मिक संगठनों में विदेशी निवेश की निगरानी करने में भी आसानी हो जाएगी। उन्होंने कहा कि इससे गरीब उपनगरों में सार्वजनिक सेवाओं में भी सुधार होगा।
President Emmanuel Macron of France, who is gearing up for a 2022 re-election campaign, outlined measures to curb what he called “Islamist separatism” https://t.co/BXvbjjlWR8
— New York Times World (@nytimesworld) October 3, 2020
यह विधेयक अगले साल की शुरुआत में संसद के सामने जाएगा। इसमें होम-स्कूलिंग पर कठोर नियम और धार्मिक स्कूलों को जाँच के दायरे में लाया जाएगा और विदेशी इमामो को बुला कर पाठ पढ़ाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया जाएगा। यह किसी और के लिए नहीं बल्कि कट्टर इस्लाम से निपटने के तरीके हैं। इस भाषण में उन्होंने स्पष्ट कहा कि हमें इस्लामिस्ट अलगाववाद पर हमला करना होगा।
बच्चों की स्कूली शिक्षा, इमामों का प्रशिक्षण और मस्जिदों का वित्तपोषण को “विदेशी हस्तक्षेप” से दूर करने के लिए राष्ट्रपति मैक्रॉन ने कई कदम उठाए हैं। फ्रांस में पहले से ही सार्वजनिक जगहों पर मुंह को ढकने पर पाबंदी है, जिसके कारण फ्रांस में बुर्क़ा पहनने पर रोक है।
इससे पहले फ्रांस ने अपने देश में विदेशी इमामों के आने पर रोक लगाई थी। बता दें कि फ्रांस में हर साल करीब 300 इमाम दुनियाभर के देशों से आते हैं। फ्रांस में ज्यादातर इमाम अल्जीरिया, मोरक्को और तुर्की से आते हैं और वे वहां जाकर मदरसों में पढ़ाते हैं। वर्ष 1977 में फ्रांस सरकार ने एक कार्यक्रम के तहत विदेशी इमामों को उनके देश में आकर मुस्लिमों को पढ़ाने की स्वीकृति दी थी, ताकि उनके देश में विदेशी संस्कृति को बढ़ावा दिया जा सके। फ्रांस सरकार ने इसी वर्ष फरवरी इस कार्यक्रम को बंद करने का फैसला लिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हर साल ये इमाम लगभग 80 हज़ार छात्रों को ‘शिक्षा’ देते हैं।
फ्रांस के राष्ट्रपति स्वयं कट्टर इस्लाम के विरोधी हैं। इस वर्ष फरवरी में एक अहम भाषण में फ्रांस के राष्ट्रपति इम्मानुएल मैक्रॉन ने स्पष्ट किया था कि, “कट्टरपंथी इस्लामिक गतिविधियों के आगे फ्रांस कतई नहीं झुकेगा। अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के नाम पर फ्रांस की अखंडता और फ्रांस की स्वतन्त्रता से किसी प्रकार का समझौता नहीं होगा।”
यह फ्रांस की ही देन है कि वह अन्य यूरोपीय देशों को भी अब कट्टर इस्लाम के खतरे से लड़ना सीखा रहा है शायद यही कारण है कि पूरे यूरोप में इस समय एक इस्लाम विरोध की भावना भड़की हुई है। आज तक यूरोप चुप रहा था और अपने उदारवादी होने का उदाहरण देते हुए सीरिया, तुर्की, पाकिस्तान तथा अन्य इस्लामिक देशों से आए शरणार्थियों को शरण दिया। परंतु तब यूरोप को यह नहीं पता था कि इसके बदले उन्हें आतंकवाद मिलेगा और उनकी ही संस्कृति पर हमला कर दिया जाएगा। न सिर्फ आतंकवाद बल्कि यूरोपीय संस्कृति पर हमला कर इन कट्टर इस्लामिस्टों ने कब्जा ही करना शुरू कर दिया था। अब हर जगह रेडिकल इस्लाम के खिलाफ आवाज उठनी शुरू हो चुकी है। धीरे-धीरे यह यूरोप के कई देशों में हो रहा है – स्वीडन , नॉर्वे, फ्रांस हर जगह। वह दिन दूर नहीं जब यह पूरे यूरोप में फैल जाएगा।
पिछले एक दशक में यूरोप ने जिस तरह open borders नीति का पालन किया है और बहुसंस्कृतिवाद को गले लगाया है, उसी का परिणाम है कि यूरोप की दुर्दशा हो गयी है और यूरोप में लगातार अस्थिरता फैली है। यूरोप की स्थिति यह है कि वहाँ की संस्कृति पर रेडिकल इस्लामिस्ट लोगों ने कब्जा कर लिया है, और इसकी वजह से यूरोप के लोग अपने ही देश में हिंसा के शिकार हो रहे हैं। मध्य एशिया से आये शरणार्थियों ने वर्ष 2015 के बाद जर्मनी में 200,000 से अधिक अपराध किए गए। यह आंकड़ा 2014 के आंकड़ों से 80% ज्यादा है, जिसका मतलब यह है कि प्रति दिन 570 आपराधिक (गैस्टस्टोन इंस्टीट्यूट) घटनाएं यूरोप में लगातार हो रही हैं।
यूरोप पिछले कई सालों से इस्लामिक आतंकवाद जैसी बड़ी समस्या के पंजे में फँसता जा रहा था। बढ़ते इस्लामिक अलगाववाद और कट्टरवाद से निपटने के लिए अब मैक्रॉन के नेतृत्व में फ्रांस सरकार ने कई बड़े कदम उठाने का फैसला ले लिया है। इस कट्टरवादी सोच को चुनौती दे कर उससे निपटने के लिए फ्रांस पूरी तरह से तैयार दिखाई दे रहा है। फ्रांस ने अपने देश में जिस तरह धार्मिक कट्टरवादिता को नियंत्रित करने के कदम उठाए हैं, वे स्वागत योग्य हैं। किसी भी देश में किसी भी धर्म के निजी क़ानूनों से ज़्यादा देश के क़ानूनों को तरजीह दी जानी चाहिए। सच कहा जाए तो मैक्रॉन ने इस्लामिक कट्टरवाद ने निपटने में नेतृत्व कर यूरोप को उसके ‘लिबरल हैंगओवर’ से बाहर निकाल रहे हैं।