जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती एक बार फिर सुर्खियों में है। नजरबंदी से रिहा होने के बाद महबूबा मुफ्ती ने राजनीति में वापसी को लेकर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। महबूबा ने कहा है कि जब तक जम्मू कश्मीर राज्य में स्थिति पहले जैसे नहीं होती, और जब तक अनुच्छेद 370 के अंतर्गत विशेषाधिकार के अधिनियम को पुनः राज्य में लागू नहीं किया जाता, तब तक वह किसी चुनाव में भाग नहीं लेंगी, यानि अप्रत्यक्ष तौर पर वे राजनीति को अलविदा कहने जा रही हैं।
महबूबा के अनुसार, “बिहार में वोट बैंक के लिए पीएम मोदी को अनुच्छेद 370 का सहारा लेना पड़ रहा है। जब वे चीजों पर विफल होते हैं तो वे कश्मीर और 370 जैसे मुद्दों को उठाते हैं। वास्तविक मुद्दे पर बात नहीं करना चाहते हैं। जब तक वह (केंद्र सरकार) हमारे हक (370) को वापस नहीं करते हैं, और जब तक हमारा परचम नहीं लहराता, तब तक न हम तिरंगे के सामने झुकेंगे, और न ही तब तक मुझे कोई भी चुनाव लड़ने में दिलचस्पी है।”
लेकिन मोहतरमा वहीं पर नहीं रुकी। महबूबा मुफ्ती ने आगे ये भी कहा, “चीन ने लद्दाख में 1000 वर्ग किमी से अधिक जमीन पर कब्जा कर लिया। चीन ने 370 को हटाने और भारत द्वारा किए गए परिवर्तनों पर खुलकर आपत्ति जताई है। वे इस बात से कभी इनकार नहीं कर सकते कि जम्मू-कश्मीर कभी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इतना प्रसिद्ध नहीं था, जितना अब है।”
सच कहें तो महबूबा मुफ्ती ने अप्रत्यक्ष रूप से राजनीति से सन्यास लेने की ओर ही इशारा किया है, क्योंकि उनके जीवित रहते तो अनुच्छेद 370 के अंतर्गत विशेषाधिकारों के पुनः बहाल होना असंभव है। बता दें कि 5 अगस्त 2019 को एक ऐतिहासिक निर्णय में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ये घोषणा की कि जम्मू कश्मीर से न केवल अनुच्छेद 370 के अंतर्गत राज्य को मिलने वाले विशेषाधिकार निरस्त होंगे, अपितु जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख को विभाजित कर दो केंद्रशासित प्रदेशों में परिवर्तित किया जाएगा।
इतना ही नहीं, अगले दिन लोकसभा में अमित शाह ने ये भी हुंकार भरी कि बात यहाँ तक सीमित नहीं है, बल्कि POK यानि पाक अधिकृत कश्मीर को भी स्वतंत्र कराकर पुनः भारत में मिलाया जाएगा, चाहे उसके लिए अपना सर्वस्व ही क्यों न अर्पण करना पड़ जाए। तो ऐसे में अनुच्छेद 370 के बारे में सोचने का सवाल ही नहीं उठता, पुनः बहाल करना तो बहुत दूर की बात है?
तो फिर महबूबा मुफ्ती ने ऐसा क्यों कहा? दरअसल, नजरबंदी से बाहर आने के बावजूद महबूबा मुफ्ती की सोच में तनिक भी अंतर नहीं आया है, और यही हाल अब्दुल्ला परिवार का भी है। उन्हें लगता है कि आज भी उनके एक इशारे पर पूरी कश्मीर घाटी उनकी खिदमत में हाजिर हो जाएगी, और स्थिति पहले जैसी ही होगी। यह बात उमर अब्दुल्ला के बयान में भी झलकी, जब उन्होंने कहा कि कोई भी सरकार स्थाई नहीं रहती, और वे [मोदी सरकार के गिरने का] इंतज़ार करेंगे। यह सब इसी ओर इशारा करता है कि अगर कश्मीर की आम जनता इस सब से बाहर निकलना भी चाहेगी, तो भी इनकी तिकड़ी उन्हें वापिस हिंसा, आतंकवाद और अपराध के दलदल में धकेलना चाहती है। अब वे भले इस उद्देश्य में सफल न हो, पर दिल बहलाने को गालिब ये ख्याल अच्छा है।