भारतीय सेना और ऑर्डिनेंस फैक्ट्री के बीच तनातनी अब बढ़ गई है। हाल ही में सेना ने अपने आंतरिक असेसमेंट की रिपोर्ट में पाया कि OFB द्वारा जो निम्न गुणवत्ता वाले उपकरण सेना को भेजे गए उसके कारण 2014 से अब तक करीब 27 जवानों की मौत हुई है। वहीं 960 करोड़ रुपए का सीधा नुकसान सेना को हुआ है। OFB जो सरकार के अंतर्गत आता है औऱ रक्षा उपकरणों का उत्पादन करता है उसकी कार्य़शैली पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। ओएफबी द्वारा तैयार किया जा रहा घटिया माल सेना के जवानों के साथ ही वित्तीय कोष को भी नुकसान पहुंचा रहा है।
कोलकाता स्थित ओएफबी के कार्यालय को लेकर ये कहा जाता है कि ये दुनिया की सबसे अप्रभावी संस्था है जिसे नेहरु की विरासत भी कहा जाता है। इसके अंतर्गत देश की 41 फैक्ट्रीज से लेकर अलग-अलग संस्थानों में करीब 80,000 कर्मचारी आते हैं। इतना बड़ा संगठन होने के बावजूद ओएफबी की कार्यशैली निराशाजनक नहीं बल्कि सेना और जवानों की दृष्टि से खतरनाक भी है। कुछ समय पहले ही सरकार ने OFB को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए निगमीकरण की बात की थी लेकिन इसके कर्मचारियों ने फैसले को लेकर हड़ताल का ऐलान कर दिया।
सेना ने अपने असेसमेंट में पाया कि इन ओएफबी द्वारा बनाए गए उपकरणों को लाइन ऑफ क्रेडिट देने के बावजूद पड़ोसी देश निम्न गुणवत्ता के चलते उपकरण खरीदने को तैयार नहीं हैं। इस सब की बड़ी वजह केवल और केवल ओएफबी का अप्रभावी कार्य है। इस कमेटी में जो अन्य मूल्यांकन हुआ है उसमें ओएफबी के खराब प्रोडक्शन को जिम्मेदार ठहराया गया है। जिसके चलते सबसे ज्यादा दिक्कतें सेना को हुई हैं। ओएफबी अपने ऊपर लगे आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए बड़ी आसानी के साथ आर्मी के सवालों से बच रहा है।
OFB इस मुद्दे पर चाहे जैसे भी बचने की कोशिश करे लेकिन वो अपनी कार्यप्रणाली पर लगे दागों को मिटाने में विफल ही रहेगा। चौथा स्तंभ कहा जाने वाला ओएफबी अब सेना के अन्य तीनों स्तंभों जल, थल, नभ से तिरस्कृत होता जा रहा है। सेना पर लगातार ओएफबी के उपकरणों का कोई खरीददार न होने के चलते ये खराब उपकरण और आर्टलरी समेत सभी तरह के बम-बारूद तोप थोप दिए जाते है। जिसके कारण आए दिन सेना के जवानों को मुसीबतों का सामना करना पड़ता है लेकिन ओएफबी पर इन बातों का कोई खास असर नहीं होता है। रक्षा उपकरणों के मामले में लगातार एचएएल और ओएफबी के खराब उपकरणों के कारण भारत को रक्षा उपकरणों का बड़ी मात्रा में आयात करना पड़ता है और करोड़ों डॉलर का खर्च वित्तीय कोष के लिए घाटे का सौदा होता है।
रक्षा के मुद्दे पर बांग्लादेश, म्यांमार, मालदीव सभी भारत के साथी हैं लेकिन सभी चीन से सामान खरीदते हैं क्योंकि भारत के ओएफबी चीन के द्वारा बने उपकरणों की बराबरी करनें में सक्षम नहीं हैं। आर्मी के अफसर तो रक्षा मंत्रालय से सीधे हस्तक्षेप की मांग कर चुके हैं।
14 हजार करोड़ के उपकरणों की खरीद के अलावा भारत सरकार नें ओएफबी को करीब 700 करोड़ रुपए भी दिए जिससे वो अपना घाटा कम कर सके। इसी तरह से एचएएल भी लगातार घाटे में जा रहा है जिसके चलते बैलेंस शीट भी रेड ही है। लोकिन सरकार से मदद के बावजूद इनकी कार्यशैली में कोई भी सुधार नहीं है।
सीएजी की रिपोर्ट भी बताती है कि किस तरह से 2015 के बाद से लगातार OFB का कार्य 50 फीसद तक के टारगेट को पूरा नहीं कर पाया है। यहीं नहीं, इन कारणों के चलते ही सेना को अपने जरूरी युद्धाभ्यास में भी परेशानियां होती हैं क्योंकि उन्हें उच्च स्तरीय गोला बारूद नहीं मिल पाता है। ऐसे में जब सरकार निगमीकरण जैसे फैसलों पर विचार करती है तो ओएफबी के कर्मचारी हड़ताल का कार्ड खेलेने लगते हैं।
ऐसे में सरकार को कुछ कठोर फैसले लेते हुए कर्मचारियों की हड़ताल को नजरंदाज करना चाहिए और ओएफबी की कार्यशैली को बेहतर बनाने के लिए जल्द से जल्द निगमीकरण की ओर कदम उठाने चाहिए। वरना सेना औऱ ओएफबी के बीच की ये तनानती न केवल देश के लिए नुकसानदायक होगी बल्कि हमारे रक्षा उत्पादन की ताकत बढ़ने के बजाए और कम हो जाएगी।