पाकिस्तान Out, भारत In- कैसे अफ़ग़ानिस्तान में पॉवर का खेल बदल गया ?

पाकिस्तान सोचता है कि अफगानिस्तान से अमेरिका के जाने के बाद वो पूरे क्षेत्र में आतंक का तांडव करेगा और तालिबान के साथ मिलकर क्षेत्र में अस्थिरता पैदा करेगा, लेकिन उसका यह सपना हमेशा एक सपना ही रह जाएगा। अफगानिस्तान से अमेरिका तो चला जाएगा लेकिन इस क्षेत्र में शांति बहाल करने के लिए जाना जाने वाला भारत इस स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहेगा क्योंकि अब भारत बेहद सक्रिय हो चुका है और इसको लेकर इशारा अफगानिस्तान के उच्च परिषद के राष्ट्रीय सलाहकार डॉक्टर अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने भी किया है। साथ ही उन्होंने ये भी जाहिर किया है कि भारत की सक्रियता अफगानिस्तान के क्षेत्र में अब पहले से और अधिक होगी।

दरअसल, वियॉन न्यूज से अपने साक्षात्कार में डॉक्टर अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने कहा कि अमेरिका के जाने के बाद तालिबान को यह नहीं सोचना चाहिए कि वो यहां आतंक फैलाएगा। उन्होंने कहा, अमेरिका के जाने के बाद तालिबान को किसी भी प्रकार का कोई खास लाभ नहीं होगा और अगर वो ऐसा कुछ सोचता है तो ये उसके लिए एक गलतफहमी ही साबित होगी।

अब्दुल्ला ने इसे कोई बड़ी बात न बताते हुए कहा, “यह हमारे लिए कोई खतरा नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी की तरह ही होगा जो कि अफगानियों के अलावा तालिबान की भी होगी।भारत दौरे पर आए अब्दुल्ला ने कहा, भारत की शांतिपूर्ण लोकतंत्र की नीति बिल्कुल अफगानिस्तान के लोगों की सोच से मिलती है। गौरतलब है कि पीएम मोदी कोरोना वायरस के इस दौर में पहली बार किसी विदेशी नेता से मिले हैं जो अफगानिस्तान के हैं ,यह दोनों देशों के सकारात्मक संबंधों का सबूत हैं।

भारत से जुड़े सवालों पर उनकी तरफ से कहा गया कि भारत के साथ रिश्ते पहले से अधिक बेहतर हुए हैं। जिस तरह भारत शांतिप्रिय है उसी तरह अफगानिस्तान भी है। तालिबान को लेकर उन्होंने कहा है कि अमेरिका के जाने के बाद भारत हमारे साथ रहेगा जिससे इस क्षेत्र में तालिबान अपना कोई आतंक नहीं मचा पाएगा।

अब्दुल्ला ने कहा है कि पाकिस्तान के ऐसे कई आतंकी संगठन हैं जो अफगानिस्तान को ही अपना अड्डा बना चुके हैं। इनमें अलकायदा सबसे बड़ा है, और इसके चलते वहां बड़ी मात्रा में आतंक फैलाने में ये संगठन बड़ी भूमिका निभाते है। ऐसे में भारत उनसे भी निपटेगा क्योंकि पाकिस्तान यह मान के बैठा है कि अमेरिका के अफगानिस्तान छोड़ने के बाद वो आतंक का एकछत्र राज चलाएगा जो कि नामुमकिन हैं। तालिबान के अलावा अन्य मुद्दों को लेकर अब्दुल्ला ने कहा है कि भारत के साथ हमारा चाबहार पोर्ट प्रोजक्ट काफी महत्वपूर्ण है। यह न केवल भारत, बल्कि रूस, अमेरिका मध्य एशिया से भी हमारे रिश्तों को मजबूत करेगा।

गौरतलब है कि अपने इस साक्षात्कार में अब्दुल्ला ने पाकिस्तान को लेकर शांति की बात तो की है लेकिन पाकिस्तान के साथ रिश्तों को कोई खास तवज्जो नहीं दी है। पाकिस्तान के आतंकी रवैए के कारण ही अफगानिस्तान उससे दूर रहना चाहता है और भारत से उसकी नजदीकियां जगजाहिर है।

वैसे भी पाकिस्तान के कभी भी अफगानिस्तान की नागरिक सरकार के साथ संबंध अच्छे नहीं रहे हैं। इस्लामाबाद शांति की बात तो करता है लेकिन काबुल में प्रभाव कायम करने के लिए अशरफ़ ग़नी प्रशासन की बजाय अफ़ग़ान तालिबान के प्रभुत्व को ज्यादा महत्व देता है। इसके अलावा, यह आईएसआई और लश्कर-ए-तैयबा का इस्तेमाल अफगान तालिबान के साथ गहरा संबंध बनाए रखने के लिए करता है ताकि वो भारत के हितों के खिलाफ अपनी योजनाओं को पूरा कर सके।

यही नहीं अफ़ग़ानिस्तान का इस्तेमाल करने के लिए पाकिस्तान ने चीन का सहारा लेने का भी प्रयास किया है। चीन ना सिर्फ अफगानिस्तान की नागरिक सरकार से बातचीत बढ़ा रहा है, बल्कि वह तालिबान के साथ भी सहयोग करने की बात कर रहा है। चीन अमेरिका के निकलते ही अफगानिस्तान और उसके 3 ट्रिलियन डॉलर के संसाधनों पर अपना कब्ज़ा करना चाहता है। चूंकि चीन का  अफ़ग़ानिस्तान के साथ कोई सीधा कनेक्शन नहीं है इसलिए वो पाकिस्तान के रास्ते अफ़ग़ानिस्तान में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है।

हालाँकि, भारत अब अफगानिस्तान को चीन-पाकिस्तान की सांठगांठ के चंगुल से बचा रहा है। बिना किसी स्वार्थ के भारत अफगानिस्तान में न केवल विकास कर रहा बल्कि वहां शांति स्थापित करने के लिए भी प्रयासरत है। अफगानिस्तान और भारत के रिश्तों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आने के बाद से और अधिक प्रगाढ़ता आई है। अफगानिस्तान के विकास के लिए भारत न केवल उसे बेहद मामूली शर्तों पर कर्ज देता रहता है, बल्कि भारत ने ही अफगानिस्तान की संसद का नया परिसर उसे तोहफे के रूप में दिया था जो दोंनों के बीच रिश्तों की अहमियत दर्शाता है और यही कारण हैं कि वो अमेरिका के जाने के बाद भारत से ही अपने इस क्षेत्र में शांति और सहयोग की उम्मीद लगा रहा है।अब्दुल्ला ने साफ किया है कि वो तालिबान से बातचीत के लिए भारत पर किसी तरह का कोई दबाव तो नहीं डालेगें, लेकिन भारत से शांति के लिए कदम उठाने की अपील करते रहेगे।

अमेरिका के जाने के बाद पाकिस्तान के आतंकवाद फैलाने की कोशिशों को एक और बड़ा झटका अब्दुल्ला के इस बयान से ही लगा है क्योंकि अब्दुल्ला ने ये साफ कर दिया है कि अफगानिस्तान के लिए भारत पहली प्राथमिकता होगा। जो दिखाता है कि भारत की स्थिति अफगानिस्तान में और मजबूत होगी और पाकिस्तान की कमजोरियों में थोड़ा और इजाफा होगा।

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