भारत में इकोफासिस्ट यानि नकली पर्यावरणविदों की संख्या बढ्ने के बाद उनके प्रोपोगेंडे से एक बार फिर से देश को लगभग 7000 करोड़ से अधिक का नुकसान होने वाला है। मुंबई के आरे मेट्रो शेड के काम को रोक दिया गया है और उसे कंजूरमार्ग में स्थानांतरित कर दिया गया है। इस प्रोजेक्ट को रोकने के लिए महाराष्ट्र की शिवसेना के अदित्य ठाकरे के नेतृत्व में नकली पर्यावरणविदों ने एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाया था जिसमें बॉलीवुड गैंग भी शामिल था। देश की औद्योगिक राजधानी मुंबई के गोरेगांव इलाके की आरे कॉलोनी में पेड़ों की कटाई का जोरदार विरोध किया गया था। इंस्टेंट फेम के भूखे बॉलीवुड सितारे भी इस प्रदर्शन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने पहुंचे थे। इससे ज़्यादा विडम्बना क्या हो सकती है कि जो लोग स्वयं ‘आरे’ के बीचो-बीच पेड़ काट कर बनाए गए फिल्म सिटी में शूटिंग करते हैं, वो अब पर्यावरण पर उपदेश देते रहते हैं।
आरे प्रोजेक्ट के स्थानांतरित होने से सिर्फ महाराष्ट्र को नहीं बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान होने वाला है। इंडिया टूड़े की एक रिपोर्ट के अनुसार इस मामले का अध्ययन करने वाली एक कमिटी ने अपने रिपोर्ट में कहा है कि इसे स्थानांतरित करने से महाराष्ट्र के राजकोष पर न सिर्फ 7000 करोड़ का अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा बल्कि इससे राज्य के एक इन्वेस्टर फ्रेंडली न होने का टैग लग जाएगा। रिपोर्ट में बताया गया है कि कार शेड को स्थानांतरित करने से न केवल मेट्रो-3 की वित्तीय व्यवहार्यता खतरे में पड़ जाएगी, जो कोलाबा को Santacruz Electronic Export Processing Zone से जोड़ती है, बल्कि लोखंडवाला और कंजूर के बीच चलने वाली मेट्रो -6 की व्यवहार्यता पर भी सवालिया निशान लग जाएगा। इस रिपोर्ट को बनाने वाले अधिकारी ने इंडिया टुडे को बताया था, “अगर कार शेड को कंजूरमार्ग पर स्थानांतरित कर दिया जाता है, तो हमें सात किलोमीटर अतिरिक्त लाइन का निर्माण करना होगा। इसके अलावा, इस 7 किमी पर कोई यात्री नहीं होगा। इसके बाद न केवल निर्माण की लागत बढ़ जाएगी, बल्कि किराया भी कम से कम 25 प्रतिशत बढ़ जाएगा। इससे पूरे मेट्रो -3 परियोजना आर्थिक रूप से भारी पड़ने वाला है।” अब कोई यह जनता को बताए कि उद्धव सरकार के इस फैसले की कीमत उन्हें जीवन भर अधिक किराया देकर चुकाना पड़ेगा।
एक और रिपोर्ट के अनुसार करदाता के पैसे का 400 करोड़ रुपये पहले ही परियोजना पर खर्च किया जा चुका था और प्रदर्शन के कारण लगभग एक साल तक इस परियोजना के रोके जाने से सरकार को लगभग 1300 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। अब परियोजना के स्थानांतरण के कारण लागत में लगभग 4,000 करोड़ रुपये की वृद्धि का अनुमान लगाया जा रहा है यानि कुल मिला कर यह राशि भी 5700 करोड़ तक पंहुच रही है। ये लोग शुरू से ही देश के विकास में रोड़ा अटकाते आए हैं। ऐसे NGO विदेशी चंदो के बल पर भारत में पर्यावरण बचाने की आड़ में हर विकास कार्य में बाधा बनते हैं और भारत में विकास दर को बड़ा नुकसान पहुंचाते हैं।
इससे पहले वर्ष 2018 में तमिलनाडु में कुछ फर्जी पर्यावरणविदों ने स्टरलाइट कॉपर प्लांट के खिलाफ सुनियोजित एजेंडा फैलाकर जमकर विरोध प्रदर्शन करवाए थे, जिसके बाद राज्य सरकार को इसे बंद करने के आदेश जारी करने पड़े थे। तूतीकोरिन स्थित स्टरलाइट प्लांट के बंद होने के चलते लगभग 4 लाख टन कॉपर का उत्पादन खत्म हो गया।
कॉपर एक्सपोर्ट बंद होने से देश को अब कॉपर इम्पोर्ट करना पड़ रहा है जिससे देश को हर साल 40 हज़ार करोड़ का नुकसान हो रहा है। साथ ही पाकिस्तान का कॉपर बाज़ार लगातार बढ़ता जा रहा है। भारत में हजारों लोग बेरोजगार हो गए। वर्ष 2018 में स्टरलाइट के बंद होने के बाद कभी कॉपर का निर्यातक होने वाला भारत 18 वर्षों में पहली बार कॉपर का इंपोर्टर देश बन गया था। लेकिन नुकसान सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है, अब भारत में बंद हुए इस कॉपर प्लांट का हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान को सबसे ज़्यादा फायदा मिल रहा है, और वर्ष 2018 के बाद से पाकिस्तान के कॉपर एक्सपोर्ट में 400 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली।
इस प्लांट के बंद होने के पीछे सबसे बड़ा हाथ विदेशी पैसों पर पलने वाले NGOs का माना गया। समय-समय पर ऐसी खबरें आती रहती हैं कि भारत में चीन द्वारा फंड किए जाने वाले NGO ही भारत में विकास-विरोधी अभियान चलाते हैं। बता दें कि स्टरलाइट कॉपर प्लांट को बंद करवाने के लिए वर्ष 2018 में बड़े पैमाने पर हिंसक विरोध प्रदर्शन करवाए गए थे, जिसमें दर्जनों लोगों की जान चली गयी थी। माना जाता है कि इन पर्यावरणविदों के प्रदर्शनों को चीनी कंपनियों और विदेशी एनजीओ द्वारा फंड किया जा रहा था। इतना ही नहीं, इन प्रदर्शनों में नक्सलियों ने भी प्रदर्शन किया था। कुछ प्रदर्शनकारियों के तार तो कमल हासन और चर्च से जाकर मिल रहे थे। भारत में यह NGO गिरोह सिर्फ स्टरलाइट कॉपर प्रोजेक्ट को ही नहीं, बल्कि और भी कई प्रोजेक्ट्स की बलि ले चुका है। महाराष्ट्र के रत्नागिरि में 3 लाख करोड़ रुपयों का नानर रिफाईनरी प्रोजेक्ट से लेकर महाराष्ट्र में ही आरे मेट्रो रेल प्रोजेक्ट तक, हर जगह इन नकली पर्यावरणविदों की वजह से ही प्रोजेक्ट्स में या तो देरी देखने को मिली है, या फिर इन्हें हमेशा के लिए रद्द करना पड़ा है।
वैसे तो भारत सरकार पहले ही Foreign Contribution Regulation Act यानि FCRA के माध्यम से इन भारत-विरोधी संगठनों पर लगाम लगाने की पहल कर चुकी है लेकिन देश में बैठे विदेशी एजेंटो का भी कुछ उपाय करना पड़ेगा नहीं तो ये देश को कभी पर्यावरण के नाम पर तो कभी कुछ कर देश के विकास में अड़चन पैदा कर अर्थव्यवस्था को कमजोर करते रहेंगे।