दुनिया में अमेरिका-चीन के बाद अगर जापान-चीन की साझेदारी को दूसरी सबसे अहम आर्थिक साझेदारी कहा जाये, तो इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। जापान-चीन के रिश्तों को अक्सर “Cold politics और Hot Economics” जैसे शब्दों से परिभाषित किया जाता है, क्योंकि राजनीतिक तौर पर एक दूसरे के विरोधी देश होने के बावजूद इन दोनों के आर्थिक रिश्ते पिछले 45 सालों में बड़ी तेजी से बढ़े हैं। पिछले 45 सालों में दोनों देशों का trade 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 317 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है।
हालांकि, वर्ष 2020 के बाद जिस प्रकार दुनियाभर के देश और खासकर Quad के सदस्य देश चीन से आर्थिक रिश्ते तोड़ने की बात कह रहे हैं, उसके बाद इस बात की पूरी संभावना है कि जापान भी अपनी सप्लाई चेन को चाइना-फ्री करने की योजना पर काम कर रहा है, और अगर ऐसा होता है तो यह चीन के लिए एक बहुत बड़ा आर्थिक झटका साबित होगा, जो पहले से ही सुस्त पड़ चुकी चीन के आर्थिक विकास की रफ्तार को और धीमा कर देगा। चीन भी इस बात को भली-भांति जानता है और इसीलिए वह जापान के साथ जल्द से जल्द अपने रिश्तों को बहाल करना चाहता है।
जापान के नए प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा (Yoshihide Suga) को चीन के साथ रिश्ते सुधारने में कोई जल्दबाज़ी नहीं है और वे इसके पहले ही संकेत दे चुके हैं। उदाहरण के लिए प्रधानमंत्री बनने के बाद सुगा ने सबसे पहले फोन पर ट्रम्प, स्कॉट मॉरिसन, एंजेला मर्केल, बोरिस जॉनसन और पीएम मोदी से बातचीत की, उसके बाद जाकर उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ बातचीत करने का वक्त निकाला। चीन जापान के लिए सबसे अहम व्यापारिक साझेदार है, इसके साथ ही जापान भी चीन का तीसरा सबसे बड़ा आर्थिक साझेदार है, ऐसे में जापानी पीएम का चीनी राष्ट्रपति को प्राथमिकता न देना दर्शाता है कि अब जापान का फोकस चीन के साथ रिश्ते सुधारने पर नहीं, बल्कि चीन की अक्ल ठिकाने लगाने के लिए उससे आर्थिक रिश्ते तोड़ने पर है।
चीन अपने आर्थिक विकास की रफ्तार किसी भी कीमत पर negative नहीं होने देना चाहता, और इस साल जब पूरे विश्व की आर्थिक विकास दर negative 4.4 फीसद रहने के अनुमान है, चीन ने अपनी विकास दर positive 2.7 प्रतिशत रहने का अंदेशा जताया है। चीन से आए आंकड़ों की विश्वसनीयता पर बेशक सवाल उठाया जाना बनता है, लेकिन जिस प्रकार चीन अपने सबसे बड़े ट्रेडिंग पार्टनर अमेरिका और अपने तीसरे सबसे बड़े ट्रेडिंग पार्टनर जापान के साथ विवाद में उलझा हुआ है, उसके बाद इस बात के अनुमान बेहद कम ही हैं कि चीन वाकई अपने इस लक्ष्य तक पहुंच पाएगा।
इसीलिए जिनपिंग भी अब जापान के साथ रिश्ते सुधारने को लेकर आतुर दिखाई दे रहे हैं। फोन कॉल डिप्लोमेसी में पूरी तरह नकारे जाने के बावजूद जिनपिंग ने जापान के पीएम सुगा के साथ बातचीत के दौरान दोनों देशों के आर्थिक रिश्ते सुधारने पर ज़ोर दिया। इसके अलावा चीन इसी महीने अपने विदेश मंत्री वांग यी को भी जापान के दौरे पर भेजने वाला है। इस वर्ष की शुरुआत में शी जिनपिंग को जापान के दौरे पर आना था, जिसे कोरोना के चलते टाल दिया गया था, लेकिन बाद में जिनपिंग के विरोध के कारण जापान ने उस दौरे को रद्द ही कर दिया था। अब चीन के विदेश मंत्री जापान आ रहे हैं, तो उससे समझा जा सकता है कि किस तरह चीन अपने बड़े एक्सपोर्ट मार्केट जापान को अपने पक्ष में करने के लिए छटपटा रहा है।
चीन के लिए समस्या इसलिए भी बढ़ चुकी है क्योंकि इधर अमेरिका और भारत के मोर्चे पर भी उसे बड़े आर्थिक झटके मिल रहे हैं। अमेरिका और भारत न सिर्फ अपने यहाँ से चीनी कंपनियों को बाहर करने पर काम कर रहे हैं, बल्कि अन्य देशों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। ऐसे में चीन पर जापान के साथ रिश्ते सुधारने का दबाव और ज़्यादा बढ़ गया है। सुगा अभी चीन के साथ अपने रिश्ते सुधारने के लिए तैयार नहीं दिखाई दे रहे और इसीलिए अब चीन जापान के सामने बेहद लाचार और बेचारा दिखाई दे रहा है।