तनिष्क को Ad के लिए चारों तरफ से आलोचना मिली, तो विज्ञापन हटाकर दी सफाई

तनिष्क की ये सफाई उसके Ad से भी बेतुकी है

तनिष्क

तनिष्क टाटा घराने की आभूषण कंपनी। ये कुछ दिनों से संभवतः मानवमात्र को एक करने के पावन उद्देश्य से एकतव्म नामक विज्ञापन शृंखला चला रहे हैं, जिसमें सभी धर्मो के एकीकरण की बात हो रही है। संभवतः तनिष्क का यह मानना है कि जो कार्य बड़े-बड़े साधु-संत नहीं कर पाये, वे एक विज्ञापन शृंखला के माध्यम से कर देंगे। महान उद्देश्य है परंतु है बचकाना। इसी शृंखला के अंतर्गत एक विज्ञापन आया जिसने सोशल मीडिया को दो-फाड़ कर के रख दिया। थोड़ा विवरण करता हूँ सुनिए:

कथा है एक सुंदर नवविवाहिता कि, जो अब गर्भवती भी है। सर को दुपट्टे से ढके, काजल से लिप्त नेत्र वाली, एक अतिशय प्रभावशाली महिला उस नवविवाहिता को कंधे पर हाथ रख कर बाहर बगीचे में ले जाती है। नवविवाहिता हर्ष से किलकारियाँ भरने लगती है। घर में हर्षोल्लास का वातावरण है, संभवतः गोद-भराई का आयोजन है। फिर नवविवाहिता कहती है “माँ ये रस्म तो आपके घर होता ही नहीं है ना?”, इसपर सर को दुपट्टे से ढके, काजल से लिप्त नेत्र वाली अतिशय प्रभावशाली महिला कहती है “पर बिटिया को खुश रखने की रस्म तो हर घर में होती है।” अब यहाँ जाकर ज्ञात होता है कि प्रभावशाली महिला मुस्लिम है जिनका सुपुत्र भी मुस्लिम ही होगा और सुंदर नवविवाहिता कि किलकारियाँ बताती हैं कि वह अत्यंत प्रसन्न है और प्रभावशाली महिला का उदार स्वभाव उनकी सर्व धर्म समभाव कि भावना को रेखांकित करता है।

अब आप भी सोचेंगे कि प्रेम और सद्भावना से परिपूर्ण इस महान विज्ञापन से किसी को क्या खेद हो सकता है? ऐसा क्या था कि ट्विटर फेसबूक पर बैठे हिन्दू धर्म के लोग इस विज्ञापन से आहत हो उठे और क्यों उन्होनें इस विज्ञापन, यहाँ तक कि तनिष्क का ही बहिष्कार कर डाला जिससे तनिष्क को अंततः विज्ञापन हटाना पड़ा।

यहाँ बात है लव जिहाद की। लव जिहाद की पिछले पाँच दस सालो में प्रसिद्ध हुई एक परिभाषा है। विकिपीडिया के अनुसार “लव जिहाद, कथित रूप से मुस्लिम पुरुषों द्वारा गैर-मुस्लिम समुदायों से जुड़ी महिलाओं को इस्लाम में धर्म परिवर्तन के लिए लक्षित करके प्रेम का ढोंग रचना है।“ लव जिहाद को लेकर जितने मस्तिष्क हैं उतने ही विचार है परंतु मुख्यतः दो विचार ही प्रसिद्ध है। भारतीय दक्षिणपंथ मानता है लव जिहाद एक क्रूर वास्तविकता है वहीं वामपंथी इसे राइटविंग कोन्स्पीरेसी – अर्थात दक्षिणपंथी षड्यंत्र मानता है। दोनों ही पक्ष अपने-अपने विचारों पर अडिग हैं। परंतु लव जिहाद को लेकर तथ्य क्या कहते हैं। तथ्य बहुत कुछ कहते हैं। इसमे कोई मतभेद नहीं कि प्रेम जात-धर्म की सीमाएं नहीं देखता परंतु तब क्या जब प्रेम प्रेम नहीं वरन एक जनसांख्यिकीय नियंत्रण का षड्यंत्र हो?

हिन्दू-मुस्लिम विवाह देश में होते रहे हैं और संभवतः होते रहेंगे परंतु आंकड़ो कि माने तो हिन्दू-मुस्लिम विवाह में वधू बहुधा हिंदू ही होती है और वर मुस्लिम, वधू का प्रायः सभी मामलों में धर्मांतरण होता है और पितृसत्तात्मक नियमों को अनुसार दंपति के सुपुत्र-सुपुत्री पिता का धर्म अर्थात इस्लाम ही अपनाते हैं। कई मामलों में जहां वधू मुस्लिम और वर हिंदू हुए हैं वहाँ व्यापक हिंसा और कभी-कभी निर्मम हत्याएँ भी हुई हैं। 9 october को कर्नाटक के बसवनहल्ली में निज़ामुद्दीन नामक एक व्यक्ति ने अपने पुत्र के साथ पुत्र सिकंदर के साथ मिलकर के लक्ष्मीपति नामक एक युवक की हत्या कर दी। युवक का दोष यह था की वह निज़ामुद्दीन की पुत्री के साथ प्रेम करता था और विवाह करना चाहता था। दिल्ली के अंकित शर्मा की निर्मम हत्या आज भी सबको याद है तो वहीं राहुल राजपूत की हत्या का विषय आज कल चर्चा का विषय है। इन दोनों ने भी मुस्लिम कन्याओं से प्रेम करने का दुस्साहस किया था। परंतु ऐसा नहीं है कि केवल पुरुष ही मारे जाते हैं। ज़ी न्यूज़ कि एक रिपोर्ट के अनुसार मेरठ में शमशाद नामक एक व्यक्ति ने एक महिला और उसकी पुत्री की हत्या कर दी। शमशाद अपना नाम और धर्म छुपा कर इस महिला संग लिव इन रिलेशनशिप में था। वहीं जागरण कि एक रिपोर्ट के अनुसार पटना में प्रेम विवाह के चार साल पश्चात एक मुस्लिम व्यक्ति ने अपनी पत्नी को धर्म बदलने को कहा और यह भी कहा कि अगर वो ऐसा नहीं करती उसे घर से निकाल दिया जाएगा। और ये किस्से बस कुछ दिन या हफ्ते पुराने है, अगर खोदने जाएँ तो ऐसे किस्सो का पूरा अंबार निकलेगा।

ऐसे में प्रेम और सद्भावना से परिपूर्ण तनिष्क का यह महान विज्ञापन एक मूर्खतापूर्ण प्रयोग दिखता है जो सत्य से कोसो दूर है और लव जिहाद का दंश झेल रहे हिन्दुओं का आहत होना स्वाभाविक ही था। हमने पहली पंक्ति में कहा था सयाना आदमी 3 बार गू मखता है और मखना अर्थात विभिन्न इंद्रियों के प्रयोग द्वारा किसी वस्तु अथवा पदार्थ का सूक्ष्म निरीक्षण और गू अर्थात मल। सर्वप्रथम वह तब मखता है जब उसका पैर मल के ऊपर जाता है परंतु क्योंकि वो बुद्धिमान है इसलिए वो एक बार जूता सूंघ कर देखता है कि मल ही है या कुछ और। बुद्धिमता के ही निर्बाध प्रवाह में एक बार उसे चख कर भी देखता है और तब जाकर मानता है कि जिस पदार्थ में पैर गया था वो मल ही था। तनिष्क का भी व्यवहार कुछ ऐसा ही रहा।

पहले इसने एक महान मूर्खतापूर्ण विज्ञापन निकाला, फिर हिंदुओं के आहत होने पर कोई प्रैस विज्ञप्ति या खानापूर्ति के लिए ही कोई ट्वीट तक प्रेषित नहीं किया, कंपनी के शेयर्स धरती चाटने लगे, इस प्रकार मल मखन कार्य 2 बार सम्पन्न हुआ और फिर आता है इनका संदेश जो विज्ञापन से भी अधिक मूर्खतापूर्ण था। संदेश में तनिष्क कहीं भी अपनी गलती स्वीकारता हुआ नहीं दिखता है। वो ठीक है परंतु अंत में तनिष्क का संदेश कहता है कि वो अपने कर्मचारियों को किसी भी तरह से बचाना चाहता है, जिसका सीधा अर्थ यह हुआ कि हिन्दू धार्मिक भावनाएँ आहत होते ही धनुष-बाण, खड्ग, त्रिशूल, चक्र, भुशुंडि, गदा और भाले लेकर शत्रुदल पर टूट पड़ते हैं जबकि वास्तविकता यह है कि हिन्दू सहनशीलता की प्रतिमूर्ति हैं। तनिष्क के संदेश की आखिरी पंक्ति मल-मखन कि तीन बार वाली प्रक्रिया सम्पन्न करता है।

तनिष्क का सबसे बड़ा ग्राहक वर्ग हिन्दू परिवारों से आता है। हिन्दू धर्म में तीज-त्योहारों, विवाह, और अन्य अवसरों पर स्वर्ण खरीदने और भेंट करने कि परंपरा रही है। तनिष्क एक बड़ा नाम है जो कभी समाप्त नहीं होगा परंतु ये कहना अनुचित नहीं होगा कि तनिष्क ने अपने ग्राहकवर्ग का एक बड़ा अंश सदा के लिए खो दिया है।

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