जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेताओं का गठबंधन जितनी तेजी से बना, उतनी तेजी से फुस्स हो गया

मुफ़्ती के एक बयान ने सारे किये कराए पर पानी फेर दिया

कश्मीर

इन दिनों भारतीय राजनीति ने एक दिलचस्प मोड़ लिया है। एक ओर बिहार की राजनीति में अजब खेल देखने को मिल रहा है, तो वहीं कश्मीर में अनुच्छेद 370 को बहाल करने के लिए एक अभियान भी शुरू हुआ है। जी हाँ, जिस अनुच्छेद 370 को केंद्र सरकार ने आधिकारिक रूप से निरस्त कर दिया था, उसे पुनः बहाल करने के लिए कश्मीर के अलगाववादी नेता एक बार फिर सक्रिय हो गए हैं। परंतु जितनी तत्परता से ये अभियान तैयार किया गया है, उतनी ही जल्दी इस अभियान का समापन भी होने वाला है।

ये हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि कश्मीर के राजनीतिज्ञों का वर्तमान निर्णय इसी ओर इशारा कर रहा है। अभी हाल ही में महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला सहित कश्मीर के पुराने राजनेताओं ने ‘गुपकार समझौते’ को सार्वजनिक किया, जिसके अंतर्गत ये पार्टियां तब तक आंदोलन करती रहेंगी, जब तक कश्मीर में अनुच्छेद 370 को पुनः बहाल नहीं कर दिया जाता, और जम्मू-कश्मीर के विशेषधिकार उसे पुनः नहीं मिल जाते।

हालांकि, इस गुट के मंसूबों पर पानी फिर गया, और ये शुभ काम किसी और ने नहीं, बल्कि स्वयं पीडीपी (PDP) अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने किया। मोहतरमा ने अपने एक व्याख्यान के दौरान कहा कि, “बिहार में वोट बैंक के लिए पीएम मोदी को अनुच्छेद 370 का सहारा लेना पड़ रहा है। जब वे चीजों पर विफल होते हैं तो वे कश्मीर और 370 जैसे मुद्दों को उठाते हैं। वास्तविक मुद्दे पर बात नहीं करना चाहते हैं। जब तक वह (केंद्र सरकार) हमारे हक (370) को वापस नहीं करते हैं, और जब तक हमारा परचम नहीं लहराता, तब तक न हम तिरंगे के सामने झुकेंगे, और न ही तब तक मुझे कोई भी चुनाव लड़ने में दिलचस्पी है।”

परंतु महबूबा मुफ्ती के इस बयान ने मानो कश्मीरी राजनेताओं के सारे किए कराए पर गुड़ गोबर कर दिया। इस बयान की न केवल देशभर में आलोचना हुई, बल्कि स्वयं कश्मीरी राजनेता भी अब महबूबा मुफ्ती से कन्नी काटने लगे हैं। महबूबा मुफ्ती के बयान के विरोध में श्रीनगर में बीजेपी तिरंगा यात्रा भी निकाली। इसके साथ ही महबूबा मुफ्ती की पार्टी PDP के मुख्य दफ्तर के आगे राष्ट्रवादियों ने न केवल तिरंगा लहराया, अपितु PDP के तीन नेताओं ने तत्काल प्रभाव से इस्तीफा भी दे दिया है।

परंतु बात यहीं पर नहीं रुकी। महबूबा मुफ्ती के इस बयान का विरोध स्वयं नेशनल कॉन्फ़्रेंस ने भी किया। पार्टी के वरिष्ठ नेता देवेन्द्र सिंह राणा के अनुसार, पार्टी नेताओं के लिए राष्ट्र की एकता और संप्रभुता सर्वोपरि है। हम राष्ट्र की संप्रभुता और एकता से समझौता नहीं करेंगे। फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला ने हमें आश्वस्त किया है कि गुपकार का कोई नेता ऐसा कोई बयान नहीं देगा जिससे राष्ट्र का हित प्रभावित हो।”

लेकिन नेशनल कॉन्फ़्रेंस का यह राष्ट्र प्रेम अचानक ही जागृत नहीं हुआ है, बल्कि इसके पीछे नेशनल कॉन्फ़्रेंस की अपनी मजबूरी भी है। दरअसल, कुछ दिनों पहले फारूक अब्दुल्ला ने एक विवादास्पद बयान में यह कहा था कि वह किसी भी कीमत पर अनुच्छेद 370 को बहाल करके रहेंगे, चाहे इसके लिए चीन की सहायता की ही आवश्यकता क्यों न पड़ जाए।

इसके पीछे न केवल उनके बयान की आलोचना हुई, बल्कि पार्टी की देश के प्रति प्रतिबद्धता पर भी एक गंभीर प्रश्नचिन्ह लग गया। ऐसे में महबूबा मुफ्ती के विवादित बयान को समर्थन देकर, नेशनल कॉन्फ़्रेंस अपने लिए और मुसीबत नहीं खड़ा करना चाहती थी। अब जब इस पार्टी ने मुफ्ती के बयान से कन्नी काट ली है तो कश्मीर में अनुच्छेद 370 को बहाल करने का जो अभियान बड़े जोर शोर से कुछ दिनों पहले प्रारंभ हुआ था, वह अब उतनी ही तेजी से फुस्स भी होता दिखाई दे रहा है। इसके साथ ही महबूबा मुफ़्ती की बची खुची प्रासंगिकता भी खत्म होने के कगार पर पहुंच गयी है।

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