कांग्रेस राज में जिन कंपनियों ने जमकर मलाई खाई, वे आज भी उस मानसिकता से बाहर नहीं निकलना चाहती

इन दिनों रिपब्लिक और अन्य मीडिया चैनल के बीच में एक भयंकर वाकयुद्ध चल रहा है। फर्जी टीआरपी को लेकर इस वाक्युद्ध में दोनों गुट एक दूसरे को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इसी बीच दो कंपनियां रिपब्लिक को एड न देने के कारण इन दिनों सुर्खियों में है। यह दोनों कंपनी कोई और नहीं, बल्कि दशकों तक भारतीयों के दिलों दिमाग में छाने वाली बजाज और पार्ले कंपनी हैं।

हाल ही में बजाज ऑटो ने फर्जी टीआरपी वाले से संबन्धित तीन न्यूज़ चैनल [जिसमें रिपब्लिक भी शामिल है] को अपने विज्ञापन न देने का निर्णय लिया है। CNBC टीवी18 से बातचीत के दौरान कंपनी के अध्यक्ष राहुल बजाज ने कहा, एक मजबूत उद्योग के लिए एक मजबूत ब्रांड नींव मानी जाती है। इसी तरह एक मजबूत उद्योग का एक कर्तव्य बनता है कि वह समाज के उत्थान के लिए काम करे। हमारे ब्रांड ने ऐसे किसी चीज़ को बढ़ावा नहीं दिया है, जो समाज में द्वेष फैलाये”

बजाज ऑटो का साथ देते हुये पार्ले कंपनी के प्रसिद्ध ब्रांड पार्ले जी ने भी रिपब्लिक टीवी को अपने विज्ञापन देने से मना कर दिया है। लाइव मिंट से बातचीत के दौरान वरिष्ठ कैटेगरी हेड कृष्णराव बुद्धा ने कहा, हम ऐसी संभावनाओं की खोज में है, जहां अन्य विज्ञापन प्रसारित करने वाले साथ आ सकें और एक ऐसा संदेश भेज सकें कि जो न्यूज़ चैनल [रिपब्लिक] द्वेष फैला रहे हैं, वे जल्द अपना कंटैंट बदल दें। हमारा ब्रांड ऐसे चैनल को विज्ञापन नहीं दे सकता जो वैमनस्य और आक्रामकता को बढ़ावा दे”

इस निर्णय का कई वामपंथियों ने ज़ोर शोर से समर्थन किया, और इसे रिपब्लिक के ‘विषैले कंटैंट’ पर ‘जनता का करार प्रहार’ सिद्ध करने का प्रयास किया। पर क्या वाकई में ऐसा है, या फिर सच्चाई इससे अलग है?

दरअसल, पार्ले जी और बजाज वास्तव में उन कंपनियों के साथ कोई संबंध नहीं रखना चाहते, जो उनके राजनीतिक आकाओं की जी हुज़ूरी न करता हो। दोनों ही कंपनियां ऐसी है जिन्होंने भारत के उदारीकरण से पूर्व लाइसेन्स राज वाली अर्थव्यवस्था में जमकर कमाई की थी, और बजाज कंपनी के तो कांग्रेस पार्टी से काफी घनिष्ठ संबंध भी रहे हैं। उधर रिपब्लिक टीवी की छवि एक कांग्रेस विरोधी और पीएम मोदी समर्थक चैनल की रही है। ऐसे में बजाज और पार्ले जी इस चैनल से दूरी बना रहे हैं।

उदाहरण के लिए राहुल बजाज को ही ले लीजिये। इनके कांग्रेस समर्थक विचार किसी से नहीं छुपे हैं। ये धुर मोदी विरोधी भी हैं, जिसके कारण ये कांग्रेस पार्टी और वामपंथी गुट के चहेते माने जाते हैं। इनके इसी व्यक्तित्व पर टीएफ़आई पोस्ट ने अपनी रिपोर्ट में प्रकाश भी डाला था

इसके अलावा पार्ले जी और बजाज अपने आप में उन कंपनियों की परिचायक हैं, जिनका लाइसेन्स राज के समय में अपने अपने क्षेत्रों में सम्पूर्ण एकाधिकार था, और वे बेहिसाब लाभ कमाते थे। ये कंपनियां एकाधिकार के नशे में ऐसे चूर थीं कि वे दोयम दर्जे के उत्पाद तक बाज़ार में उतारने को तैयार थे, क्योंकि उन्हें अच्छी तरह से मालूम था कि उनके इस वर्चस्व को चुनौती देने वाला कोई नहीं है। इसीलिए जब 1991 में अर्थव्यवस्था की नाज़ुक हालत को देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने भारत के उदारीकरण के प्रस्ताव को स्वीकृति दी, तो बजाज और पार्ले कंपनी उन चंद गुटों में शामिल थी, जिन्होंने इस निर्णय का भरपूर विरोध किया।

दशकों से भारतीयों को Substandard स्कूटी बेचने वाले बजाज ग्रुप ने राव सरकार पर भारतीय अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने का आरोप भी लगाया था। इस तथ्य को मीडिया और नरसिम्हा राव की बहुचर्चित जीवनी ‘हाफ लायन’ लिखने वाले विनय सीतापति नैय्यर ने भी इंगित किया था। आज जब मोदी सरकार एक के बाद एक सुधार लागू करके समाजवादी स्तंभों को ध्वस्त कर राव सरकार द्वारा छोड़े गए कार्य को पूरा कर रही है, तो ये लोग खुश नहीं हैं। ये लोग अब उस एकाधिकार को भारतीय बाजार में फिर से बनाकर रखना चाहते हैं जोकि मोदी सरकार द्वारा लागू किये जा रहे सुधारों के कारण संभव नहीं है। ऐसे में जब भी इन्हें मौका मिलता है ये मोदी सरकार को आड़े हाथों लेते हैं। केवल मोदी सरकार ही नहीं, बल्कि ऐसे लोगों के खिलाफ भी ये लोग मुखर हैं जो मोदी सरकार का समर्थन करते हैं परन्तु कांग्रेस के आदर्शों और धर्मनिरपेक्षता को नहीं मानते हैं,  रिपब्लिक टीवी भी इसी कारण निशाने पर है।

 

1991 में लाइसेन्स राज के खात्मे की घोषणा के कुछ ही दिनों बाद इंडिया टुडे द्वारा आयोजित एक वाद विवाद कार्यक्रम में पार्ले ग्रुप के अध्यक्ष रमेश चौहान ने कहा, मुझे नहीं लगता कि उदारीकरण से देश को कोई विशेष लाभ होगा। इतिहास गवाह है कि बड़े कम विदेशी कंपनियों ने विदेश मुद्रा के आदान प्रदान को सुचारु रूप से चलवाया है। मुझे लगता है कि अगर वास्तव में भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेश हो, तो वो केवल तकनीक के क्षेत्र में हो। परंतु अब लोगों ने स्कूटर सीट और रियर व्यू मिरर तक के लिए विदेशी निवेश की मांग की है। ये साझेदारी आयात केन्द्रित है, जबकि बजाज इन्हें वर्षों से बनाता रहा है”

बता दें कि पिछले तीन दशकों में, Bajaj Group, Parle Group, Tata Group और कई अन्य औद्योगिक घरानों की बाजार हिस्सेदारी में काफी गिरावट आई है और ये सभी आर्थिक उदारीकरण के पक्ष में नहीं थे और न ही चाहते थे कि भारतीय बाजार में नए खिलाड़ियों का आगमन हो। इससे इनका भारतीय बाजार में एकाधिकार खत्म हो जायेगा और इनके प्रोडक्ट्स की गुणवत्ता को देखते हुए उसकी बिक्री में भी गिरावट देखने को मिली है।

पार्ले जी की बिक्री अधिकतर भारत के ग्रामीण इलाकों में होती है और इसे वही लोग अधिक महत्व देते हैं जो निम्न आय वाले परिवार से आते हैं, जैसे ही इनकी आय में बढ़ोतरी होती है ये Britannia, ITC, Mondeleze, और ITC जैसे ब्रांड को महत्व देने लगते हैं। ऑस्ट्रेलिया के Unibic का क्रेज भी इधर बीच लोगों के बीच बढ़ा है। यही कारण है कि पिछले 3 दशक में ही पार्ले की मार्किट में हिस्सेदारी में बड़ी गिरावट देखने को मिली है।

ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस राज में जमकर मलाई खाने वाली कंपनियों को अब अपने अस्तित्व की चिंता होने लगी है, और वह तर्कसंगत रहने के लिए कुछ भी करने को तैयार है। इसीलिए पार्ले जी और बजाज जैसी कंपनियां अब नैतिकता की दुहाई दे रही है, जिनसे उनका खुद का वर्षों तक कोई नाता नहीं रहा था।

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