अजरबैजान और आर्मीनिया के बीच युद्ध जारी है और तुर्की अजरबैजान को लगातार मदद पहुंचा रहा है। जिस तरह से आज स्थिति बन चुकी है उसे देखते हुए विश्व युद्ध के आसार दिखाई दे रहे हैं जिसमें तुर्की की भूमिका उसी प्रकार की होगी जिस प्रकार पिछले दोनों विश्व युद्ध में जर्मनी ने निभाई थी। तुर्की न सिर्फ देशों को उकसा रहा है बल्कि युद्ध में घी डालने का भी काम कर रहा है।
अंकारा ने इसी मंगलवार को कहा था कि वह अजरबैजान को Nagorno-Karabakh को वापस लेने में पूरी तरह से मदद करेगा। तुर्की का इस तरह से अपने पड़ोसी के पक्ष में आ जाने से फ्रांस तुरंत एक्टिव हो गया और वह भी तुर्की के बढ़ते कदम को रोकने के लिए आर्मीनिया के पक्ष में उतर गया।
मैक्रों ने अपने Latvia यात्रा के दौरान संवाददाताओं से कहा, “मैंने तुर्की के उन राजनीतिक बयानों पर गौर किया है जो मुझे लगता है कि बेहद लापरवाह और खतरनाक हैं।” उन्होंने कहा, “फ्रांस तुर्की द्वारा की गई उन टिप्पणियों के बारे में चिंतित है, जिसमें अजरबैजान को उत्तरी Karabakh पर अधिकार करने का समर्थन किया गया है यह स्वीकार्य नहीं है।” वे आर्मेनिया को समर्थन देते हुए मैक्रों ने कहा कि, “मैं आर्मीनिया और अर्मेनियाई लोगों से कहता हूं, फ्रांस अपनी भूमिका निभाएगा।”
विश्व युद्ध की यह पहली निशानी है जब कोई अन्य देश मदद के बहाने किसी अन्य देशों के बीच तनाव में शामिल होता है और फिर धीरे-धीरे गुट बनना शुरू हो जाता है। जैसे प्रथम विश्वयुद्ध में लड़ाई ऑस्ट्रीया-हंगरी और सर्बिया के बीच शुरू हुई थी लेकिन फिर गुट बनते बनते यह फ्रांस, रूस और ब्रिटेन सर्बिया की तरफ हो गए थे और ऑस्ट्रिया-हंगरी की तरफ जर्मनी और इटली हो चुके थे और फिर मानव इतिहास का सबसे भयंकर युद्ध हुआ था। उसी तरह दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनी ने ही पोलैंड पर आक्रामकता दिखाकर युद्ध की शुरुआत की थी।
उसी प्रकार आज एक तरह तुर्की अजरबैजान आर्मेनिया के बीच युद्ध में टांग अड़ा रहा है तो दूसरी तरफ ग्रीस पर आक्रामकता दिखा रहा है। अमेरिका, फ्रांस तथा रूस के कहने के बावजूद तुर्की भड़काने का एक मौका भी नहीं छोड़ रहा है। सिर्फ यही एक मौका नहीं जब तुर्की ने विश्व की महाशक्तियों को चुनौती देते हुए इस प्रकार के उकसाने वाला कदम उठाया है।
तुर्की ने कुछ ही दिनों पूर्व ऊर्जा संपन्न पूर्वी भूमध्यसागर के साथ-साथ ग्रीस के खिलाफ भी आक्रामकता दिखाया था। इससे पहले, जब तुर्की Oruc Reis नामक एक भूकंपीय सर्वेक्षण पोत को यूनानी समुद्री क्षेत्र में भेजकर ग्रीस को धमकाने की कोशिश कर रहा था तब फ्रांस ने इसे गंभीरता से लिया और ग्रीस को सैन्य सहायता प्रदान करनी शुरू कर दी थी। स्थिति इतनी तेजी से बढ़ी कि अंकारा को विवादित पानी से अपने पोत को वापस लेना पड़ा था। एक बार फिर से अजरबैजान और आर्मेनिया के मुद्दे पर फ्रांस और तुर्की आमने सामने हैं। यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि यह दोनों देश NATO के सदस्य हैं और दोनों ही एक दूसरे के खिलाफ उतर चुके हैं। ऐसे में युद्ध होना लगभग तय दिखाई दे रहा है।
ऐसे में देखा जाए तो तुर्की अब दो ताकतवर देशों के बीच फंस चुका है और अब ऐसा लग रहा है कि उसका Sandwich बनना तय है। फ्रांस, रूस, भारत, UAE, अमेरिका और तुर्की के पूर्वी भूमध्यसागरीय देश- इज़राइल, मिस्र, ग्रीस और साइप्रस, तथा सभी प्रमुख वैश्विक और क्षेत्रीय शक्तियां तुर्की के लगातार उकसावे से परेशान हो चुकी हैं और इन देशों का गुस्सा कभी भी एक साथ तुर्की पर फूट सकता है।
तुर्की ने जिस तरह से अपने पड़ोसी देशों के जल क्षेत्र पर दावा कर उन्हें उकसाने का काम किया है, उसके कारण पूर्वी भूमध्य सागर के ग्रीस और साइप्रस जैसे देश अब तंग आ चुके हैं। तुर्की पूर्वी भूमध्य क्षेत्र में व्यापक समुद्री क्षेत्र और संसाधनों की खोज के नाम पर जल क्षेत्र पर अपना प्रभाव उसी तरह दिखाने की कोशिश कर रहा है जिस तरह से दक्षिण चीन सागर में चीन करता है। परंतु चीन धमकाने और दिखावा करने में अधिक विश्वास रखता है जबकि तुर्की का कोई भरोसा नहीं कि वह कब विश्व युद्ध शुरू कर दे।
तुर्की से सिर्फ पश्चिमी देशों को ही नहीं बल्कि मुस्लिम देशों को भी खतरा पैदा हुआ है। इसी खतरे को देखते हुए संयुक्त अरब अमीरात ने मुकाबला करने के लिए कुछ प्रारंभिक कदम भी उठाए हैं। रिपोर्ट के अनुसार यूएई वायु सेना अपने चार एफ -16 युद्धक विमानों को Hellenic Air Force के साथ संयुक्त प्रशिक्षण के लिए ग्रीक द्वीप क्रीट में भेजी थी।
यही नहीं यहूदी देश इजरायल भी तुर्की को अपना सबसे बड़ा खतरा मान चुका है। इजरायल साइप्रस से ग्रीस और यूरोप के माध्यम से गैस स्थानांतरित करने वाली पाइपलाइन डील EastMed में एक प्रमुख भागीदार है। 1,900 किलोमीटर लंबी यह गैस पाइपलाइन परियोजना यूरोप को पूर्वी भूमध्यसागरीय बेसिन गैस क्षेत्रों से जोड़ती है और इसे तुर्की के बढ़ते विस्तारवाद से स्पष्ट खतरा है। इजरायल तुर्की को निपटाने के लिए अब पहले से अधिक तैयार है, क्योंकि इस देश की खुफिया एजेंसी मोसाद अब अंकारा को सबसे बड़ा सुरक्षा खतरा मान चुकी है न कि ईरान को। इसके अलावा, दोनों देशों के बीच संबंधों में भी खटास आ गई है क्योंकि एर्दोगन अल-अक्सा मस्जिद को यहूदी देश इजरायल से “आजाद” करना चाहता है, जो कि यहूदियों और मुसलमानों दोनों के लिए एक पवित्र स्थल है। इसके अलावा, एर्दोगन फिलिस्तीन में HAMAS जैसे आतंकवादी संगठनों का भी समर्थन करते हैं, जो इजरायल को पसंद नहीं है। जिस तरह से पाकिस्तान का इस्तेमाल भारत को व्यस्त रखने में चीन और तुर्की जैसे देश करते हैं वैसे ही इजरायल को व्यस्त रखने के लिए तुर्की फिलिस्तीन की मदद कर रहा है। कुछ दिनों पहले तुर्की ने हमास के दो नेताओं की मेजबानी भी की थी। यह उकसाने वाला कदम नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे।
तुर्की के कारनामों को देखते हुए अब तो अमेरिका भी पूर्वी भूमध्य सागर में चल रहे इस विवाद में कूदता दिख रहा है। अमेरिकी विदेश मंत्री ने हाल ही में क्षेत्र में तनाव को कम करने के लिए अपने तुर्की समकक्ष Mevlut Cavusoglu को चेतावनी दी थी। उन्होंने बातचीत के दौरान Cavusoglu को “पूर्वी भूमध्य सागर में तनाव को कम करने की तत्काल आवश्यकता” पर जोर दिया था।
यूरोप, अमेरिका और पश्चिम एशिया के अलावा, एर्दोगन ने भारत को भी अपने खिलाफ कर लिया है। हालिया खुफिया रिपोर्टों से यह खुलासा हुआ है कि तुर्की पाकिस्तान के बाद भारत का सबसे बड़ा दुश्मन है, जो भारत में कट्टरपंथ फैला रहा है और उन संगठनों को फंड कर रहा है जो भारत विरोधी रुख अपनाते हैं। पिछले साल भी, खलीफा के सपने देखने वाले एर्दोगन ने अनुच्छेद 370 निरस्त करने पर पाकिस्तान का पक्ष लिया था।
तुर्की के कदमों को देखते यह कहना गलत नहीं होगा कि अगला विश्व युद्ध चीन या पाकिस्तान से नहीं बल्कि तुर्की से शुरू होगा। अगर युद्ध हुआ तो इस देश के लिए भविष्य में सिर्फ और सिर्फ अंधेरा है। अगर विश्व को विश्व युद्ध जैसे मानवकृत विपदा से बचना है तो सबसे पहले तुर्की को नियंत्रित करना आवश्यक है और उसे नियंत्रित करने के लिए वहाँ के राष्ट्रपति एर्दोगन को हटाना अतिआवश्यक है। अगर उन्हें नहीं हटाया गया तो विश्व को युद्ध के गर्त में जाने से कोई नहीं रोक पाएगा।