पाकिस्तान एक ऐसा देश है जिसे अगर एक गधा भी कश्मीर का लॉलीपॉप देगा तो वह उसी को अपना गुरु मान लेगा, और ये देश उसके कहने पर कुछ भी करने को तैयार हो जाएगा। आज के समय में तुर्की पाकिस्तान के साथ यही कर रहा है और उसे अपने इशारे पर नचा रहा है। अब मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक Armenia (आर्मीनिया) और अजरबैजान के बीच चल रहे संघर्ष में तुर्की को खुश करने के लिए पाकिस्तान अजरबैजान के पक्ष में उतर चुका है और इसके लिए उसने अपने लड़ाके भी भेजे हैं। तुर्की ने एक सपना दिखाया कि वह कश्मीर पर उसका साथ देगा। अब पाकिस्तान अपना सब कुछ तुर्की पर लुटाने को तुरंत तैयार हो गया है, पर यहां तुर्की के इरादे कुछ और ही हैं।
दरअसल, रिपोर्टों में दावा किया गया है कि पाक प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने सैनिकों को Agdam में तुर्की सेना और अजरबैजान सेना के साथ लड़ने के लिए भेजा है। Agdam क्षेत्र में दो स्थानीय लोगों के बीच एक टेलीफोन पर बातचीत के अनुसार, Free News.AM ने बताया कि दो अजरबैजानियों ने क्षेत्र में पाकिस्तानियों की उपस्थिति के बारे में उल्लेख किया है।
आर्थिक रूप से गरीब पाकिस्तान को चीन, संयुक्त अरब अमीरात और तुर्की जैसे पश्चिम एशिया के कई देशों से सहायता मिल रही है। परंतु फिर भी पाक अपने देश की अर्थव्यवस्था को छोड़ दूसरे देशों के संघर्ष में घुस रहा है।
इस बार मामला अजरबैजान और आर्मीनिया के बीच चल रहे संघर्ष का है जहां तुर्की खुलेआम अजरबैजान की मदद कर अमेरिका को चुनौती दे रहा है। आर्मीनिया इंटेलिजेंस ने जब अजरबैजान के कुछ संदिग्ध लोगों के फोन कॉल इंटरसेप्ट किए तो एक बड़ा खुलासा ये हुआ कि अजरबैजान की तरफ से लड़ने के लिए पाकिस्तान ने अपने भाड़े के लड़ाको को भेजा है। अपने आका चीन और तुर्की को खुश करने के लिए पाकिस्तान की तरफ से पांच सौ से ज्यादा लड़ाके अजरबैजान भेजे गए हैं और इनमें पाकिस्तान की स्पेशल सिक्योरिटी ग्रुप के रिटायर्ड कंमाडोज औऱ अलबदर के आंतकवादी शामिल हैं।
हालांकि, यह सोचने वाली बात है कि अपने देशों में शिया मुसलमानों को काफिर कहकर अत्याचार करने वाला पाकिस्तान अजरबैजान जैसे शिया देश की मदद क्यों कर रहा है? 1991 में अज़रबैजान की संप्रभुता को मान्यता देने के लिए तुर्की के बाद पाकिस्तान भी दूसरा देश था, और तब से वह इस देश के साथ स्वस्थ सैन्य संबंध बनाए हुए हैं।
यह कुछ और नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ तुर्की को खुश करने के लिए है। तुर्की और अजरबैजान दशको पुराने साथी हैं और इस बार के युद्ध में भी तुर्की अजरबैजान का खुला समर्थन कर रहा है। ऐसे में पाकिस्तान का अपने आका को खुश करने के लिए के लिए भागीदार बनना आश्चर्य की बात नहीं थी। इस्लाम और कश्मीर का सहारा लेकर तुर्की उसे कठपुतली की तरह नचा रहा है और अपने सभी मामलों में घसीट रहा है।
तुर्की को पता था कि कश्मीर पर सिर्फ बोलना है करना कुछ नहीं है, और बदले में पूरा पाकिस्तान उसे मिल जायेगा। अनुच्छेद 370 पर भारत विरोधी बयान देने के बाद एक बार फिर से पिछले हफ्ते, एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर का मुद्दा उठाया और कहा कि “कश्मीर संघर्ष दक्षिण एशिया की स्थिरता और शांति के लिए भी महत्वपूर्ण है, अभी भी एक ज्वलंत मुद्दा है।” उन्होंने कहा, “हम संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के ढांचे के भीतर बातचीत के माध्यम से इस मुद्दे को हल करने के पक्ष में हैं, खासकर कश्मीर के लोगों की अपेक्षाओं के अनुरूप।”
तुर्की के इतना कहते ही पाकिस्तान एक पाँव पर ही नाचना शुरू कर देता है। इस समर्थन के बदले पाकिस्तान सीरिया और अन्य पड़ोसी देशों में सैन्य सहायता प्रदान करने सहित पश्चिम एशिया में तुर्की की आक्रामकता को अपना समर्थन देता है।
वास्तव में तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन का लक्ष्य तो खलीफा बनना है और इसमें पाकिस्तान को मिलना कुछ नहीं है। तुर्की के चक्कर में पाकिस्तान का रहा सहा मिलने वाला समर्थन और लोन भी अब खतरे में पड़ चुका है। सऊदी अरब जैसे पाकिस्तान के पुराने समर्थक देश से पहले ही पाकिस्तान के संबंध खराब हो चुके हैं और उसका भी कारण कश्मीर मुद्दा ही था। यही हाल रहा और तो UAE तथा अन्य अरब देशों से भी पाकिस्तान को मिलने वाला समर्थन समाप्त हो जाएगा। अगर यह कहा जाए कि एक कश्मीर के सपने के बदले तुर्की ने पाकिस्तान से सबकुछ छीन लिया तो गलत नहीं होगा।