अब दुर्लभ खनिजों पर से चीन के एकाधिकार को खत्म करेगा अमेरिका

चीन के अंतिम वर्चस्व को निर्णायक चुनौती

अमेरिका

चीन ने जिन भी क्षेत्रों पर एकाधिकार जमाया हुआ है, अब हर उस जगह से अमेरिका चीन के एकाधिकार को ध्वस्त करने में लगी हुई है। टैरिफ युद्ध से पहले ही चीन की हवा टाइट करने के पश्चात अब ट्रम्प प्रशासन की निगाह Rare Earth Metals, यानि दुर्लभ खनिज पदार्थों के क्षेत्र में चीन के एकाधिकार को ध्वस्त करने की है।

इस समय चीन दुर्लभ खनिज पदार्थों के उत्पादन में 70 प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है, और अमेरिका अपने दुर्लभ खनिज पदार्थों का 80 प्रतिशत आयात अब तक चीन से ही करता आया था। लेकिन अब इस निर्भरता को अमेरिका समाप्त करना चाहता है, और इसीलिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक ऑर्डर पर हस्ताक्षर करते हुए अमेरिकी खनन उद्योग में आपातकाल की घोषणा की है।

इस ऑर्डर के लागू होने का अर्थ है देश में दुर्लभ खनिज पदार्थों के खनन को बढ़ावा देना, और चीन पर से अपनी निर्भरता को समाप्त करना। बता दें की दुर्लभ खनिज पदार्थ कई सारे रक्षा उपकरणों के निर्माण में अत्यंत उपयोगी है, जैसे फाइटर जेट्स, हाइपरसॉनिक मिसाइल, Radiation hardened Electronics इत्यादि।

यही नहीं, दुर्लभ खनिज पदार्थों का उपयोग स्मार्टफोन, सेमीकंडक्टर, सैटिलाइट और बिजली से चलने वाले वाहनों में भी होता है, और ऐसे में किसी को कोई हैरानी होगी यदि अमेरिका द्वारा आत्मनिर्भर होने का अभियान रक्षा सेक्टर से नागरिक सेक्टर में भी हस्तांतरित हो जाये। इसीलिए राष्ट्रपति ट्रम्प ने अपने कैबिनेट से इस विषय का विस्तृत विश्लेषण करने को कहा है, जिससे संबन्धित उत्पादन उपकरण के लिए ग्रांट्स देना, और चीन पर अन्य पाबन्दियाँ लगाने का मार्ग प्रशस्त हो।

राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा हस्ताक्षरित ऑर्डर में स्पष्ट बताया गया है, “विदेशी ताकतों पर अहम खनिज पदार्थों के लिए अनावश्यक निर्भरता राष्ट्र के लिए खतरा सिद्ध हो रही है, जिससे अमेरिका की सुरक्षा, अर्थव्यवस्था इत्यादि खतरे में है।” अमेरिकी प्रशासन की चिंता अनुचित भी नहीं है, क्योंकि चीन स्वयं अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करते हुए दुर्लभ खनिज पदार्थों के उत्पादों के क्षेत्र में अपना एकाधिकार जमाना चाहता है, जिसकी ओर इशारा करते हुए ग्लोबल टाइम्स ने इस क्षेत्र में चीन के वर्चस्व को ‘तुरुप का इक्का’ बताया है।

राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा उक्त ऑर्डर पर हस्ताक्षर करना यह सिद्ध करता है कि वह चीन द्वारा दुर्लभ खनिज पदार्थों के उत्पादन में वर्चस्व को तोड़ने के लिए कितना प्रतिबद्ध है। ब्लूमबर्ग से बातचीत के दौरान Gavin Wendt ने बताया, “पश्चिमी जगत में उत्पादकों के लिए सबसे बड़ी समस्या रही है प्रोजेक्ट फंडिंग और ऑफ टेक एग्रीमेंट के लिए आवश्यक फंड्स जुटाना। अगर पश्चिमी जगत को [दुर्लभ खनिज पदार्थो] उत्पादन को बढ़ावा देना है, तो उन्होंने आगे आकर ऐसी परियोजनाओं को सब्सिडाइज़ करना होगा।”

इसके अलावा अभी कुछ दिनों पहले अमेरिकी सांसदों ने इसी दिशा में एक अहम कदम उठाते हुए चीन पर दुर्लभ खनिज पदार्थों के लिए निर्भरता को खत्म करने के लिए एक विधेयक पेश किया। यूरोपीय संघ ने भी वर्ष खत्म होने तक इस परिप्रेक्ष्य में अमेरिका के साथ संधि करने का निर्णय किया है, और ऐसे में चीन द्वारा दुर्लभ खनिज पदार्थों पे जमाये गए वर्चस्व को उखाड़ फेंकने के लिए इससे सुनहरा अवसर कोई और नहीं हो सकता।

 

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