चीन का हाथ छोड़ भारत के साथ दोस्ती बढ़ा रहा नेपाल, किया बड़ा बदलाव

चीन की उम्मीदों पर नेपाल ने पानी फेर दिया

Nepal

चीन नेपाल के जरिये भारत के खिलाफ एंजेडा चलाने की कोशिश में था, लेकिन अब नेपाली पीएम केपी शर्मा ओली को यह एहसास हो गया है कि चीन से उन्हें या उनके देश को फायदा नहीं होगा, जिसके बाद उन्होंने अपने चीन समर्थक रक्षा मंत्री से कैबिनेट विस्तार के बाद उनका पद छीन लिया है। इसके अलावा नेपाल (Nepal) अब भारत के सेनाध्यक्ष जनरल एम एम नरवड़े को अपनी सेना के सबसे बड़े पद से सम्मानित करने की योजना बना रहा है। ये सारे वो फैसले हैं जो नेपाल (Nepal) की ओली सरकार भारत के साथ अपने रिश्तों को सुधारने की नीयत से ले रही है और इन फैसलों के साथ ही चीन को जोरदार झटके लग रहे हैं।

दरअसल, हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक नेपाल (Nepal) के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अपने रक्षा मंत्री ईश्वर पोखरेल को कैबिनेट विस्तार के दौरान हटा दिया है, जिन्हें चीन का समर्थक और भारत का धुर विरोधी माना जाता है । इसको लेकर ये कहा जा रहा है कि नेपाल की सरकार अपने सबसे भरोसेमंद पड़ोसी से अपने रिश्तों को सुधारने के लिए ये कदम उठा रही है। गौरतलब है कि अब रक्षा मंत्रालय का अतिरिक्त पदभार ओली अपने पास ही रखेंगे। ये बेहद महत्पूर्ण बात है कि अगले महीने ही भारतीय सेना अध्यक्ष जनरल एम.एम नरवड़े नेपाल के दौरे पर जाने वाले हैं और इसीलिए उनके दौरे से ठीक पहले हुआ ये डेवेलपमेंट बेहद अहम माना जा रहा है।

इसी साल मई में जिस तरह से नेपाल और भारत के बीच कालापानी और लिपुलेख क्षेत्र को लेकर विवाद हुआ था उसने दोनों ही देशों के रिश्तों के बीच खटास ला दी थी। जिसके बाद जनरल नरवड़े ने नेपाल (Nepal)  के रवैए की आलोचना करते हुए कहा था कि नेपाल के इस फैसले से न केवल दोनों देशों के बीच रिश्ते खराब हुए हैं बल्कि उन गोरखा सैनिकों और उनके परिवारों को भी निराश हुई है जिन्होंने भारत की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। इस पूरे मामले में नेपाली रक्षामंत्री ने बेहद ही असंवेदनशील और भद्दे बयान दिए थे जो कि दोनों देशों को नुकसान पहुंचा रहे थे। ऐसे में जनरल नरवड़े के दौरे से पहले भारत विरोधी पोखरेल को मंत्री पद से हटाना एक बड़े फैसले के रूप में देखा जा रहा है।

गौरतलब है कि चीन नेपाल-भारत के रिश्तों में दरार बनाने की कोशिश कर रहा था। वहीं लिपुलेख और कालापानी विवाद को लेकर भी चीन नेपाल को भारत के खिलाफ भड़का रहा था। इसके साथ ही हम आपको अपनी पुरानी रिपोर्ट्स में बता चुके हैं कि चीन नेपाल को भारत के साथ सीमा विवाद में उलझाकर अपनी विस्तारवाद की नीति के तहत नेपाल (Nepal) के इलाकों पर कब्जा करने की कोशिश कर रहा था। नेपाल के कर्णाली प्रदेश में चीनी पीएलए का कब्जे की कोशिश इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है। वहीं चीन नेपाल के सामरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के साथ ही नेपाल की राजनीति में भी अपने पैठ बना रहा था। नेपाल में कार्यरत् चीनी राजदूत हू यांकी यहां केपी शर्मा ओली की सरकार बचाने में मदद कर रहीं थीं जिससे आम नेपाली नागरिकों समेत विपक्ष का गुस्सा ओली पर भड़क उठा था।

इसके अलावा नेपाल और भारत के रिश्तों को रोटी और बेटी के रिश्तों की तरह देखा जाता है। ऐसे में ओली को ये समझ आ गया था कि चीन समर्थक दिखना उन पर भारी पड़ सकता है। इसी के चलते अपने रिश्ते भारत से मजबूत करने के लिए ओली ने सबसे पहले उन किताबों के वितरण पर ही रोक लगवा दी थी जिसमें भारत के साथ सीमा विवाद का मैप प्रकाशित था। ओली ने उस दौरान ही साफ कर दिया था कि वो चीन का हाथ झटक भारत के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने को आतुर हैं।

इसी कड़ी में अब अपने भारत विरोधी रक्षा मंत्री को हटाने के साथ ही भारतीय सेना अध्यक्ष जनरल नरवड़े को सम्मानित करने के ऐलान के साथ ही नेपाल ने यह साफ ज़ाहिर कर दिया है कि वो अब चीन की चालबाजियों से दूर रहकर भारत के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाएगा। नेपाल (Nepal)  के इस रुख ने चीन को एक तगड़ा झटका दे दिया है जो नेपाल के सहारे भारत पर दबाव बनाने की नापाक हरकतें कर रहा था।

Exit mobile version