कश्मीर की रट लगाते-लगाते पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था आज धराशायी होने की कगार पर पहुंच चुकी है। आप आज अगर इस देश में पैसा निवेश करते हैं, तो इस बात की संभावना बेहद ज़्यादा है कि किसी न किसी माध्यम से वह पैसा पाकिस्तानी सेना और आतंकवादियों के हाथ लग जाएगा, और उसे दुनिया में अशांति फैलाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। बड़ा सवाल यह है कि आखिर दुनियाभर की दो सबसे ज़्यादा प्रतिष्ठित संस्थाएं यानि IMF और World Bank पाकिस्तान जैसी बेजान अर्थव्यवस्था में पैसा क्यों डालती रहती हैं?
पाकिस्तान से आज किसी को कोई आशा नहीं है। आतंकवाद, अराजकता और राजनीति में सैन्य हस्तक्षेप जैसी समस्याओं से जूझता पाकिस्तान हर बार IMF और World Bank से बड़ी रकम उठाने में सफ़ल हो जाता है। गौर किया जाये, तो यहाँ चीन की भूमिका को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। चीन का इन दोनों ही संगठनों पर बेहद ज़्यादा प्रभाव है और यही एक बड़ा कारण हो सकता है कि पाकिस्तान की दिवालिया जैसी स्थिति होने के बावजूद उसे IMF से बड़े-बड़े कर्ज़ मिल जाते हैं।
चीन हर साल IMF और World Bank को बड़ी रकम मुहैया कराता है, और बदले में इन संगठनों का राजनीतिक इस्तेमाल करता है, यानि अपने पालतू देशों को यहाँ से पैसा दिलवाता है और उन ज़रूरतमंद देशों की मदद रुकवाता है, जो चीन का विरोध करते हैं। इन संस्थाओं के काम-काज में चीन द्वारा राजनीतिक हस्तक्षेप तब भी उजागर हुआ था जब IMF ने हाल ही में ताइवान को चीन का हिस्सा दिखाया था, और अप्रत्यक्ष रूप से “One-China Policy” को बढ़ावा दिया था।
वर्ष 1958 से लेकर अब तक पाकिस्तान कुल 22 बार IMF से आर्थिक सहायता ले चुका है। पिछले वर्ष ही IMF ने इस डूबती अर्थव्यवस्था को 6 बिलियन डॉलर का कर्ज़ देकर इस देश के खर्चे-पानी को चलाये रखने की कोशिश की थी। इतना ही नहीं, इसी वर्ष अप्रैल में पाकिस्तान को “वुहान वायरस से लड़ने के लिए” भी IMF से 1.3 बिलियन का पैकेज हासिल हुआ था। मई में “संकट से जूझते पाकिस्तान” के लिए IMF की ओर से 500 मिलियन डॉलर की सहायता भी मुहैया कराई गयी थी।
यह सब तब हो रहा है जब पाकिस्तान को Financial Action Task Force यानि FATF द्वारा वर्ष 2018 से ही Grey List में डाला हुआ है। इसके बावजूद पाकिस्तान UN की ओर से घोषित किए हुए आतंकियों को जेल में कैद करने में नाकाम हुआ है। इनमें मसूद अज़हर, हाफ़िज़ सईद और जकीउर रहमान लखवी जैसे आतंकवादी भी शामिल हैं। इन सब के बावजूद पाकिस्तान हर बार IMF और World Bank से लोन पाने में सफल रहता है।
IMF और World Bank पर बढ़ते चीनी प्रभाव का ही यह परिणाम था कि चीन द्वारा Ease of Doing Business से जुड़े आंकड़ों में घपलेबाज़ी करने के बावजूद World Bank इसपर कई सालों तक चुप बैठा रहा। इतना ही नहीं, World Bank कोरोना के बाद भी चीनी अर्थव्यवस्था की धुंधली तस्वीर पेश कर चीन के PR कैम्पेन को आगे बढ़ा रहा है। उदाहरण के लिए अक्टूबर महीने में ही World Bank ने एक रिपोर्ट जारी कर कहा है कि वर्ष 2020 में चीनी इकॉनोमी 2 प्रतिशत की विकास दर हासिल करेगी, और अगले वर्ष यानि वर्ष 2021 में चीनी अर्थव्यवस्था 7.9 प्रतिशत की रफ्तार से विकास करेगी।
दुनिया में भले ही किसी देश या किसी संस्था को पाकिस्तान से कोई आशा ना हो, लेकिन इन दक्षिण एशियाई देश के लिए World Bank बेहद आशावादी है। पाकिस्तान के लिए World Bank द्वारा एक blog में कहा गया है “अगर यह देश इस वक्त कुछ सही फैसले लेता है, तो पाकिस्तान अपने 100वें जन्मदिन तक एक सम्पन्न middle-income देश बन सकता है, यह महत्वाकांक्षी है, लेकिन संभव है।” यह देश आतंक का समर्थन करता है, यह देश आतंकियों को पालता-पोसता है और World Bank अभी भी इस देश से आर्थिक महाशक्ति बनने की उम्मीद लगाए बैठा है। स्पष्ट है कि चीनी प्रभाव के कारण ही IMF और World Bank पाकिस्तान को लेकर दुनिया को भ्रमित करने में लगे रहते हैं। यह एक बार फिर यह साबित करता है कि अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं पर चीन का ज़रूरत से ज़्यादा प्रभाव दुनिया की शांति के लिए बहुत बड़ा खतरा है।