मदरसों पर बैन लगाने का असम सरकार का फैसला आखिर मुस्लिमों के भले के लिए कैसे है ?

मुस्लिम

PC:Divya Bharat

असम की भाजपा सरकार द्वारा मदरसों की बंदी का फैसला आने के साथ ही विरोध प्रदर्शन भी शुरु हो गए हैं। विपक्ष समेत कई इस्लामिक संगठनों ने इस फैसले के लिए भाजपा पर हिन्दुत्व को लागू करने का इल्जाम लगाया है, लेकिन विरोध की आग जलाने वाले लोग शायद इस बात से अनजान हैं कि सरकार का यह फैसला असल में मुस्लिम समाज के लिए ही फायदेमंद है। इस फैसले के बाद मुस्लिम समाज में शिक्षा का नया प्रभात होगा और भविष्य में मुस्लिम समाज की एक ऐसी पीढ़ी खढ़ी होगी जो कि नए दौर में सकारात्मक सोच की तरफ आगे बढ़ेगी।

दरअसल, यह सारा मामला शुरु हुआ असम के  शिक्षा मंत्री हेमंता बिस्वा सरमा की घोषणा के बाद, जिसमें उन्होनें बताया की नवंबर में जारी किए जाने वाले नोटिफिकेशन के बाद असम के सारे सरकारी मदरसे बंद हो जाएंगे। सरकार का कहना है कि धार्मिक शिक्षा के लिए सरकारी ख़र्च गलत है। गौरतलब है कि असम में करीब 1600 मदरसे हैं जिनमें से 600 से अधिक सरकारी हैं जो कि अब हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे। ऐसे में सरकार के इस फैसले का मुस्लिम समाज के एक वर्ग द्वारा विरोध किया जा रहा है। वहीं, कांग्रेस के साथ गठबंधन वाली पार्टी एआईयूडीएफ के नेता बदरुद्दीन अजमल से लेकर बाक़ी लेफ्ट पार्टियों ने भी अब सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।

सरकार के इस फैसले को लेकर कई विपक्षी दल और इस्लामिक संगठन विरोध तो कर रहें  है, लेकिन कोई इस फैसले के व्यापक लाभ को फ़िलहल नहीं देख रहा है। कांग्रेस जहां हमेशा की तरह, इसे बीजेपी का एजेंडा बता रही हैं तो वहीं अन्य लोग इसे पार्टी की हिन्दुत्व पॉलिटिक्स से जोड़कर देख रहे हैं।

विरोध करने वाले लोगों को इस ओर भी गौर करना चाहिए कि इस फैसले के बहुआयामी परिणाम भी हो सकते है, जो भविष्य में मुस्लिम समाज के लिए एक बदलाव की शुरुआत  कर सकते हैं।

अकसर हमें इस तरह की खबरें सुनने को मिलती है कि, मदरसे में बच्चो को इस्लामिक कट्टरपंथ की ट्रेनिंग दी जाती है। मदरसों में हथियार मिलने से लेकर वहां बच्चों के साथ यौन शोषण के मामले और कट्टरपंथ का एजेंडा चलाने के कारनामे भी कई बार सामने आए है। न्यूज नेशन से लेकर राजस्थान पत्रिका  तक की रिपोर्ट्स इस बात के सबूत हैं। मौलानाओं द्वारा बच्चों को बरगलाने के मामले किसी से भी छुपे नहीं हैं। इसके अलावा इस घोषणा के पीछे, एक बड़ा कारण शिक्षा से भी जुड़ा है। दरअसल, मदरसों में बच्चों को दीन से जुड़ी तालीम तो दी जाती है, लेकिन विज्ञान, तकनीक, कंप्यूटर, अंग्रेजी और राजनीति शास्त्र का ज्ञान इन छात्रों को मिल ही नहीं पाता है जिसके चलते मुख्यधारा की प्रतियोगिताओं में ये बच्चे काफी पीछे रह जाते हैं। मुस्लिम समाज के ये बच्चे जिन पर अपने समाज की कुरीतियों को खत्म करने का जिम्मा होता है वो खुद इसी का भाग बनकर रह जाते हैं, जिससे राजनीतिक दुकान चलाने वालों को अपना एजेंडा चलाने में आसानी होती है।

फायदे का फैसला

असम सरकार के इस फैसले के बाद मुस्लिम समाज में शिक्षा को लेकर एक नए प्रकाश की उम्मीद है। मुस्लिम समाज के छात्र भी अन्य छात्रों की तरह व्यावहारिक शिक्षा ग्रहण करते हुए मुख्यधारा से जुड़ेंगे। ये एक ऐसी स्थिति होगी जिसमें ये छात्र समाज के हर कार्य में अपना न केवल योगदान देंगे, बल्कि प्रतियोगी परीक्षाओं से लेकर तकनीक तक के क्षेत्र में उन्नति करेंगे। जिससे, राजनेताओं द्वारा केवल ‘वोट बैंक’ माने जाना वाला मुस्लिम समाज प्रगति के पथ पर अग्रसर होगा । गौरतलब है कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में ये बात सामने आई थी कि देश में मुस्लिम समाज की हालत दलितों से भी ज़्यादा बुरी है। ऐसे में जब मुस्लिम समाज का एक बड़ा धड़ा मुख्यधारा में आएगा तो ये स्थिति अवश्य सुधरेगी।

देश में राजनीति के वैसे तो अनेकों मुद्दे हैं लेकिन उन मुद्दों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए जो समाज की उन्नति के लिए अति आवश्यक हैं। असम सरकार का यह फैसला उसी बदलाव की ओर उठाए गए कदम की परिणिति हैं जो भविष्य में मुस्लिम समाज के लिए सरकार द्वारा लिए गए सबसे सकारात्मक फैसलों में से एक माना जाएगा और इसीलिए इस फैसले को न केवल असम बल्कि देश के अन्य राज्यों की सरकारों को भी अपने यहां लागू करना चाहिए।

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