चीन के अर्थव्यवस्था की इस समय हालत बहुत खराब है। अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया मिलकर चीन के सामने कड़ी चुनौती पेश करने में लगे हुए हैं, जिसमें यूरोपीय संघ भी इन चारों देश का साथ देने में जुट गया है। ऐसी स्थिति में चीनियों का हौसला बढ़ाने के लिए शी जिनपिंग ने एक अप्रत्याशित निर्णय में एक लंबे भाषण के जरिये दुनिया का विश्वास पुनः जीतने का प्रयास किया, परंतु ये दांव उल्टा पड़ा और चीनी शेयर बाज़ार को इस भाषण से काफी तगड़ा झटका लगा।
Shenzhen के विशेष आर्थिक ज़ोन के 40वें वर्षगांठ के अवसर पर एक 50 घंटे लंबे भाषण में शी जिनपिंग ने चीनी अर्थव्यवस्था को एक नई गति देने के विषय पर अपना भाषण केन्द्रित करने का प्रयास किया। लेकिन शी जिनपिंग के भाषण में भावना ज़्यादा और यथार्थ कम था। इसीलिए उनके भाषण का चीनी शेयर बाज़ार पर कोई असर नहीं पड़ा, क्योंकि शेयर बाज़ार में दर्ज हो रही निरंतर गिरावट का स्तर यथावत रहा।
अपने पूरे भाषण में शी जिनपिंग ऐसा जताने में लगे हुए थे, मानो चीनी अर्थव्यवस्था को कुछ हुआ ही नहीं है। चीन के आधिकारिक चैनल CCTV पर हुए प्रसारण के अनुसार, “हम इस सदी के ऐसे मुहाने पर आए हैं, जहां हमें आत्मनिर्भरता पर ध्यान देना होगा, और इनोवेशन की दौड़ में हमें स्वतंत्र होकर चलना पड़ेगा। हमें एक ऐसे पथ पर अपने कदम बढ़ाने होंगे, जो तकनीक और औद्योगिक नवीनीकरण को बढ़ावा दे, और इसका वैश्विक प्रभाव भी बढ़िया हो।”
इसे कहते हैं खोदा पहाड़ निकली चुहिया। शी जिनपिंग वर्तमान प्रशासन की बड़ाई करने में ही लगे रहे, और उनके बयान के अनुसार ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो चीन को कुछ हुआ ही नहीं, और चीन आर्थिक प्रगति के पथ पर निरंतर बढ़ रहा है। लेकिन स्टॉक बाज़ार, विशेषकर शेयर मार्केट में उनके दलील किसी काम नहीं आए। शंघाई का Composite Index करीब 0.6 प्रतिशत तक गिरा और Shenzhen के स्टॉक एक्स्चेंज में भी इतने ही प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई। केवल हाँग-काँग के स्टॉक एक्स्चेंज में ही मामूली बढ़ोत्तरी हुई।
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के रिपोर्ट के अनुसार व्यापारियों की आशाओं पर पानी फेरते हुए शी जिनपिंग ने अपने भाषण में एक भी ऐसा ठोस वादा नहीं किया, जिससे लोगों को लगे कि अर्थव्यवस्था एक बार फिर से पटरी पर लाई जा सकती है।
सच कहें तो अपने भाषण में शी जिनपिंग इनोवेशन के बारे में चाहे जितना ज्ञान बाँच रहे हो, सच्चाई तो इससे कोसों दूर है। इस समय चीन का टेक सेक्टर खतरे में है, क्योंकि उसपर केवल अमेरिका ही नहीं, बल्कि भारत, जापान, यूरोप इत्यादि की ओर से चौतरफा वार हुआ है, और ByteDance हो, Tencent हो, या फिर Huawei, सभी प्रकार के चीनी कंपनियों को बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है।
वहीं आर्थिक मोर्चे पर भी चीन कोई बेहतर काम नहीं कर रहा है। एक ओर जापान अपनी कंपनियाँ चीन से निकाल रही हैं, तो वहीं ट्रम्प ने वुहान वायरस के कारण चीन को सबक सिखाने का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया है। स्थिति तो यह हो चुकी है कि यूरोपीय संघ तक चीन के साथ व्यापारिक समझौता करने को तैयार नहीं है, क्योंकि उसे लगता है कि चीन एक निष्पक्ष मार्केट का खाका नहीं बुन पाएगा।
ऐसे में शी जिनपिंग जब यह दावा कर रहे हों कि वे चीनी अर्थव्यवस्था का दायरा और बढ़ाएँगे, तो वे निश्चित ही सफ़ेद झूठ बोल रहे हैं। वे ऐसी बातें सिर्फ इसलिए बोल रहे हैं ताकि चीन के संभावित दिवालियापन से लोगों का ध्यान हट जाये। इस बार जिनपिंग के कागजी वादों का अर्थव्यवस्था पर कोई असर नहीं पड़ा है, और ऊपर से चीनी पीएलए की साम्राज्यवादी मानसिकता के कारण चीन की अर्थव्यवस्था की स्थिति बद से बदतर हो रही है। इस समय शी जिनपिंग के सुपर फ्लॉप भाषण पर एक ही कहावत सटीक बैठती है, ‘चौबे जी चले छब्बे जी बनने दूबे जी बनके लौटे।”