एक-एक करके केंद्र सरकार हिन्द महासागर क्षेत्र में स्थित देशों को चीन के कर्ज़ के मायाजाल से छुड़ाने के लिए दिन रात एक कर रही है। इसी दिशा में अब अमेरिका और मालदीव के बीच एक ऐतिहासिक रक्षा समझौता हुआ है, जो भारत के बिना संभव ही नहीं था। इस प्रकार का एक प्रस्ताव 2013 में भी आया था, परंतु तत्कालीन भारत सरकार के विरोध के कारण इसे रद्द करना पड़ा। अमेरिका और मालदीव के बीच हुए इस समझौते और भारत की इसमें भूमिका से स्पष्ट है कि ये दोनों देश मिलकर यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि भू-रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण देश मालदीव को चीन के चंगुल से मुक्त हो।
इस निर्णय से अब दो बातें स्पष्ट होती है – एक तो अब चीन के निरंतर प्रयास के बावजूद उसका भारतीय महासागर क्षेत्र पर वर्चस्व जमाने का सपना कभी पूरा नहीं हो सकता, और दूसरा कि अब भारत और अमेरिका रणनीतिक समझौतों के परिप्रेक्ष्य से नित नए आयाम छू रहे हैं।
इस समझौते के हस्ताक्षर के पश्चात मालदीव के रक्षा मंत्रालय ने एक बयान जारी करते हुए कहा, “ये समझौता अमेरिका और मालदीव की बेजोड़ साझेदारी में एक नया आयाम स्थापित करेगा, और ये हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में शांति एवं सुरक्षा के लिहाज से बेहद प्रभावी निर्णय भी सिद्ध होगा, जिससे आतंकवाद और समुद्री लुटेरों के हमलों से भी निजात मिलेगी”। यहाँ मालदीव ने हिन्द-प्रशांत नीति को मान्यता भी दी है, और अमेरिका और भारत का गठजोड़ अब चीन की किसी भी नीति का मुक़ाबला करने के लिए और मजबूती से आगे भी बढ़ेगा।
इससे पहले भारत ने मालदीव की याचिका पर काम करते हुए एक नए लाइन ऑफ क्रेडिट के अंतर्गत 400 मिलियन डॉलर की अतिरिक्त सहायता प्रदान की गई। भारत और मालदीव ने हाल ही में ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट (GMCP) के लिए 400 मिलियन डॉलर का लाइन ऑफ क्रेडिट (LoC) समझौता किया था। यह मालदीव के लिए इकलौता सबसे बड़ा कनेक्टिविटी और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट है। इस तरह से एक तरफ भारत मालदीव को चीन के कर्ज जाल की कूटनीति से बचाएगा तो दूसरी तरफ मालदीव के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत किया है।
$400 million LoC Agreement concluded for implementation of the Greater Malé Connectivity Project – single-largest connectivity & infrastructure project in the 🇲🇻;
a national economic engine connecting Hulhumalé , Hulhule & Malé with the proposed Gulhifalhu Port & Thilafushi! pic.twitter.com/9wEMQA56tO— India in Maldives (@HCIMaldives) October 12, 2020
चीन की चुटकी लेते हुए मालदीव के संसद के अध्यक्ष और पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने ट्वीट किया, “ कम लागत की विकास सहायता जिसकी घोषण डॉ एस जयशंकर ने की है, वही मालदीव की आवश्यकता भी है। आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए एक सच्चे दोस्त ने सहायता की है, उनकी तरह नहीं जो बड़े सपने दिखाकर बाद में कर्ज़ के जाल में फंसा दे!”
The super low cost development assistance announced by @DrSJaishankar today is exactly what Maldives needs. Genuine help from a friend, to help us build critical infrastructure. Rather than eye-wateringly expensive commercial loans that leaves the nation mired in debt. @PMOIndia
— Mohamed Nasheed (@MohamedNasheed) August 13, 2020
जब से 2018 में अब्दुल्ला यामीन गयूम को हटाया गया है, तब से मालदीव के लिए स्थिति दिन प्रतिदिन बेहतर ही हुई है, और यदि पीएम मोदी के पड़ोसी देश पहले की नीति को सफलतापूर्वक लागू नहीं किया गया होता, तो अब तक मालदीव चीन का गुलाम बन गया होता, जैसे आजकल नेपाल बना हुआ है।
भारत और अमेरिका के इस नए कदम से चीन को कितनी ज़बरदस्त चोट लगी है, इसका अंदाज़ा आप ग्लोबल टाइम्स के लेख से ही लगा सकते हैं। अपने लेख में Long Xingchun के हवाले से ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, “बड़ी शक्तियों को अपनी शक्ति का दायरा गलत तरह से नहीं बढ़ाना चाहिए और आधुनिक युग में देशों को आपसी समन्वय को मजबूत करने पर ध्यान देना चाहिए”। इससे स्पष्ट होता है कि चीन को उसी के जाल में फंसाया गया है और अब वह चाहकर भी हिन्द महासागर में भारत पर पलटवार नहीं कर सकता।
समझौते के दौरान सभी की निगाह अमेरिका पर थी, लेकिन समझौते से स्पष्ट हुआ कि असल में हिन्द महासागर में कौन ज़्यादा शक्तिशाली है। अमेरिका भले ही वैश्विक महाशक्ति हो, लेकिन हिन्द महासागर में आज भी भारत का ही सिक्का चलता है, और उसी के कारण अमेरिका को मालदीव के साथ समझौता करने का सुअवसर प्राप्त हुआ है।
अब हिन्द महासागर में भारत बड़े भाई की भूमिका अदा कर रहा है और चीन के प्रभाव से साथी देशों को बचाने के लिए दिन-रात एक किए पड़ा है। अब भारत की स्वीकृति से अमेरिका और मालदीव के बीच एक ऐतिहासिक समझौता हुआ है, जो चीन के साम्राज्यवादी नीतियों के लिए बिलकुल भी शुभ संकेत नहीं है।