लगता है गृह मंत्री अमित शाह ने एक प्रसिद्ध संवाद को अपने अभियानों में आत्मसात कर लिया है, ‘रिस्क है तो इश्क है’, यानि जोखिम है तो मज़ा है। हाल ही में तमिलनाडु के दौरे पर जिस प्रकार से उन्होंने पदयात्रा की, और उनके स्वागत में हजारों लोग उमड़ पड़े, उससे स्पष्ट पता चलता है कि वे जानबूझकर उन राज्यों पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जहां भाजपा सत्ता में नहीं है और जहां वह अपना जनाधार मजबूत करना चाहते है।
अमित शाह ने हाल ही में चेन्नई का दौरा किया था, जहां उन्हे प्रोटोकॉल को तोड़ते हुए पदयात्रा की। उनसे मिलने न केवल भारी संख्या में लोग पधारे, बल्कि उन्होंने अमित शाह के साथ पदयात्रा में भी हिस्सा लिया। अमित शाह ने स्वयं इस अभूतपूर्व यात्रा के बारे में लिखते हुए बताया, “तमिलनाडु में होना हमेशा शानदार रहा है। इस प्यार और समर्थन के लिए चेन्नई को धन्यवाद।’’
लेकिन यह महज संयोग नहीं है कि अमित शाह ने तमिलनाडु का दौरा किया है, बल्कि इसके पीछे एक बहुत ही सोची समझी हुई रणनीति है। इस बारे में टीवी9 भारतवर्ष के न्यूज पोर्टल ने विस्तार से अपने रिपोर्ट में बताया है। रिपोर्ट के अंश अनुसार, “अगले साल पश्चिम बंगाल (West Bengal), केरल (Kerala), असम (Assam), तमिलनाडु (Tamil Nadu) और पुडुचेरी (Puducherry) में विधानसभा चुनाव हैं। अब पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु दो ऐसे राज्य हैं, जहां गंभीर चुनौती है और मुकाबला भी कठिन है। इसलिए बीजेपी ने इन दो राज्यों की कमान अमित शाह को सौंप दी है। हालांकि, उनके साथ जेपी नड्डा और बीजेपी के सेकेंड रैंक के महारथी कैलाश विजयवर्गीय, अमित मालवीय, सुनील देवधर, विनोद सोनकर, दुष्यंत गौतम, विनोद तावड़े, हरीश द्विवेदी आदि शामिल है। इससे साफ है कि बिहार जैसे राज्यों में चुनाव के दौरान जेपी नड्डा के भरोसे पार्टी ने चुनाव जीत लिया। अब अमित शाह को केवल कठिन और चुनौतीपूर्ण मामलों में ही पार्टी की कमान दी जाएगी।”
लेकिन भाजपा केवल वहीं तक सीमित नहीं है, अपितु वह राजनीतिक पार्टियों को उन्हीं की भाषा में जवाब देने की पूरी व्यवस्था भी कर रही है। लोकसभा चुनाव में अधिकांश सीटें जीतने वाली अलगाववादी पार्टी डीएमके के हौसले इस समय काफी बुलंद है, और ऐसे में भाजपा धीरे-धीरे उसका जनाधार उसके पैरों के नीचे से खींचने के लिए पूरी तरह तैयार है। उदाहरण के लिए अभी हाल ही में डीएमके (द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम) के पूर्व सांसद केपी रामलिंगम भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए हैं।
इसके अलावा भाजपा ने न केवल सत्ताधारी एआइएडीएमके के साथ अपने संबंध मजबूत किए हैं, अपितु डीएमके को चलाने वाले करुणानिधि परिवार में भी सेंध लगाने की व्यवस्था की है। डीएमके के वर्तमान प्रमुख एमके स्टालिन के बड़े भाई एमके अलागिरी के साथ इन दिनों भाजपा की काफी बातचीत चल रही है, और ऐसा मानना है कि यदि सब कुछ सही रहा, तो भाजपा जल्द ही उन्हें अपने पाले में शामिल करा सकती है, नहीं तो अलागिरी का समर्थन तो अवश्य लेंगे।
ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि इस बार बंगाल के साथ अमित शाह ने तमिलनाडु में भी अपना जनाधार मजबूत बनाने का निर्णय कर लिया है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि अमित शाह बंगाल के तर्ज पर तमिलनाडु में अपना चुनावी अभियान चला रहे हैं। पिछले ही वर्ष अपने आक्रामक चुनाव प्रचार के माध्यम से अमित शाह ने भाजपा को बंगाल के लोकसभा चुनावों में अप्रत्याशित सफलता दिलाई थी। कभी मात्र दो सीटें से शुरू करने वाली भाजपा आज 18 लोकसभा सीटों के साथ बंगाल की प्रमुख विपक्षी पार्टी है। कई दशकों से वामपंथी बुद्धिजीवियों ने डींगें हाँकी है कि भाजपा कभी दक्षिण भारत में प्रवेश नहीं कर पाएगी। लेकिन जिस प्रकार से कर्नाटक की सीमा से आगे बढ़ते हुए भाजपा ने तेलंगाना में अपनी धाक जमाई है, और जिस प्रकार से वह तमिलनाडु के लिए तैयारियां कर रही है, उससे इतना तो स्पष्ट है कि आने वाले वर्षों में भाजपा अपना डंका देश के कोने-कोने में बजाने को तैयार है।