पिछले दो दशकों में चीन के आर्थिक उत्थान के साथ ही चीन की विस्तारवादी नीति ने भी ज़ोर पकड़ा है। अपनी बड़ी और गहरी जेब के बल पर इस देश ने ना जाने कितने ही देशों को अपने कर्ज-जाल में फंसाकर उन्हें अपने प्रभाव में लिया है। चीन की इसी विस्तारवादी नीति का सबसे बड़ा उदाहरण है चीन का महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट Belt and Road Initiative यानि BRI! हालांकि, कोरोना ने अब चीन के इस सबसे अहम प्रोजेक्ट की कमर तोड़ रख दी है। खुद चीनी अर्थव्यवस्था अब इस बड़े खर्चे का बोझ उठा पाने में असमर्थ हो रही है और अब आलम यह है कि जल्द ही चीन को विदेशों में चल रहे अपने भारी-भरकम प्रोजेक्ट्स पर रोक लगाने का ऐलान करना पड़ सकता है।
SCMP की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जिनपिंग के नेतृत्व में अब चीनी अर्थव्यवस्था नीचे की ओर लुढ़कना शुरू कर चुकी है और इसके कारण चीनी सरकार विदेशों में चल रहे प्रोजेक्ट्स को फंड नहीं कर पा रही है। आसान भाषा में कहा जाये तो अब चीनी सरकार के पास इतने पैसे ही नहीं बचे हैं कि वह अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था में पैसा डालने के साथ-साथ विदेशों में भी निवेश को बढ़ा सके! ऐसे में चीन के इस आर्थिक संकट के कारण चीन की कूटनीति और भू-राजनीति को भी एक बड़ा झटका लग सकता है।
BRI को आप महज़ एक infrastructure project समझने की भूल नहीं कर सकते, बल्कि यह चीन की विदेश नीति का सबसे बड़ा स्तम्भ है। मध्य एशिया हो, दक्षिण एशिया हो, अफ्रीका हो या फिर यूरोप, इन सब क्षेत्रों में चीन ने अपनी विदेश नीति को BRI पर ही केन्द्रित किया हुआ है। हालांकि, BRI को चलाये रखने के लिए एक चीज़ की सबसे ज़्यादा जरूरत है और वह है पैसा! और आज चीन के पास इसी चीज़ की सबसे बड़ी कमी है। चीन का घरेलू कर्ज़ बढ़ता ही जा रहा है।
आलम यह है कि चीन की बड़ी-बड़ी सरकारी कंपनियाँ Bond defaults कर रही हैं। इनमें Yongcheng Coal & Electricity Holding Group और Huachen Auto Group Holdings Co जैसी बड़ी सरकारी कंपनियाँ भी शामिल हैं। इसका अर्थ यह है कि ये चीनी कंपनी अपने खर्चे चलाने के लिए लोगों से पैसा तो मांग रही हैं लेकिन ये कंपनियाँ उस पैसे को वापस देने या उसपर ब्याज देने के योग्य नहीं रही हैं। यानि चीन के सामने एक तरफ कुआं है तो दूसरी तरफ खाई। वह अपने पैसे से अपनी घरेलू कंपनियों को बचाए या विदेश में BRI के प्रोजेक्ट्स को, यही उसकी सबसे बड़ी समस्या है।
Institute of International Finance यानि IIF के मुताबिक चीन में Non-Financial Corporate Debt उसकी GDP के मुक़ाबले 165 प्रतिशत पर पहुँच गया है। चीन में अब कर्ज़ बढ़ने की रफ्तार ने दुनिया के सभी बड़े देशों को पीछे छोड़ दिया है। अगर इस कर्ज़ में घरेलू कर्ज़ को भी जोड़ दिया जाये तो कुल संख्या चीन की GDP के 290 प्रतिशत पर पहुँच जाती है।
चीन की कमजोर अर्थव्यवस्था का असर BRI पर पड़ना अभी से शुरू भी हो गया है। इस साल के शुरुआती 9 महीनों में BRI के तहत चीन द्वारा 61 देशों में साइन किए गए नए समझौतों की संख्या में पिछले साल के मुक़ाबले 29 प्रतिशत की कमी देखने को मिली है। इसके साथ ही चीन के दो सबसे बड़े बैंकों यानि China Development Bank और Export-Import Bank ने भी BRI की फंडिंग को कम कर दिया है।
BRI पर अब समस्याओं का पहाड़ टूट पड़ा है। BRI दुनियाभर के देशों में विश्वसनीयता खोता जा रहा है, और चीन के कर्ज जाल के चलते अब कई देश BRI के प्रोजेक्ट्स को अपनी प्राथमिकताओं से बाहर भी करने लगे हैं। ऐसे में घरेलू आर्थिक समस्याओं के चलते अब चीन का BRI बेजान होने की कगार पर आ पहुंचा है और BRI के साथ ही चीन की विदेश नीति भी धराशायी होने की कगार पर आ पहुंची है।