असम की राजनीति में बड़ा नाम रहे पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के निधन के साथ ही राज्य में कांग्रेस और एआईयूडीएफ के संभावित गठबंधन की उम्मीद भी खत्म हो गई है। तरुण गोगोई ने असम में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन की बात तो कही थी लेकिन उनकी पार्टी के ही नेताओं समेत आलाकमान तक इसके लिए खुलकर कुछ नहीं बोल रहे थे। गोगोई तथाकथित सेक्युलर ताकतों को एक साथ रखकर बीजेपी के खिलाफ लड़ने की नीति बना चुके थे, लेकिन अब उनके निधन के साथ ही इस गठबंधन का प्लान ठंडे बस्ते में जा चुका है।
गठबंधन को तैयार
कांग्रेस नेता तरुण गोगोई का निधन हाल ही में हुआ है जिससे असम में कांग्रेस को एक राजनीतिक और निजी छति हुई है। असम में विधानसभा चुनाव नजदीक है, जिसको लेकर गोगोई ने प्लानिंग शुरू कर दी थी। गोगोई बीजेपी के सत्ता में आने पर पहले ही काफी बौखलाए थे। इसलिए वो बीजेपी को हराने के लिए किसी से भी गठबंधन को तैयार हो गए थे। नतीजा ये हुआ कि 2016 में बदरुद्दीन अजमल की जिस एआईयूडीएफ के साथ कांग्रेस समेत गोगोई ने हनक के साथ गठबंधन करने से इन्कार कर दिया था, वो इस बार बीजेपी को रोकने के लिए भी एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन को भी तैयार हो गए थे।
पार्टी में मतभेद
असम की राजनीति में हमेशा ही कांग्रेस का प्रभुत्व रहा है लेकिन पिछले 6 सालों में जिस तरह से बीजेपी ने अपना जनाधार मजबूत कर वहां सरकार बनाई है उससे कांग्रेस की नींद उड़ी हुई है। इसका नतीज़ा ये हुआ कि बीजेपी के खिलाफ खड़े होने के लिए गोगोई ने एआईयूडीएफ की मदद लेने की बात कह दी। हालांकि, इससे पार्टी के नेता भी अंदरखाने खुश नहीं थे, वो यहां अकेले ही चुनाव लड़ने की बात कहते रहे। उनका मानना था कि इस कदम से बीजेपी को फायदा होगा।
तरुण गोगोई के इस कदम पर पार्टी के नेताओं का मानना था कि एआईयूडीएफ एक मुस्लिम केंद्रीय पार्टी है। ऐसे में यदि कांग्रेस एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन करती है तो उसे घाटा होगा और पार्टी का अपना हिन्दू वोट बैंक पूरी तरह से खफा हो जाएगा। ऐसी स्थिति में मुस्लिम वोटों के चक्कर में कांग्रेस और अधिक गर्त में चली जाएगी। जिस कारण पार्टी में कभी इस मुद्दे पर सहमति बनी ही नहीं। वहीं, पार्टी को लेकर ये भी कहा जाने लगा था कि अगर पार्टी का एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन हुआ थो पार्टी ही टूट जाएगी जिसका सीधा फायदा बीजेपी को ही होगा। हालांकि, कार्यकर्ताओं और राज्य की इकाई के दिग्गज नेताओं से इतर सोचने वाले गोगोई ने इसे पार्टी के लिए सार्थक ही समझा।
गोगोई के इस फ़ैसले पर केंद्रीय कमेटी समेत कांग्रेस की तरफ से कोई जवाब तो नहीं आया, लेकिन पार्टी में यही कहा गया कि सोनिया गांधी को भी इस मुद्दे पर गोगोई का फैसला ज्यादा पसंद नहीं आया था जिसके चलते इस गठबंधन को लेकर कहीं से भी सटीक मोहर नहीं लग रही थी। ऐसी स्थिति में बीजेपी के लिए स्थितियां अनुकूल ही हैं। जहां कांग्रेस समेत एआईयूडीएफ के उम्मीदवारों के बीजेपी विशेष समुदाय का वोट बंटेगा, जिसका सीधा फायदा बीजेपी को ही होगा।
इसके साथ ही दिवंगत तरुण गोगोई का दूरदर्शिता की स्थिति सोच वाला एआईयूडीएफ के साथ कांग्रेस का गठबंधन न होना, कांग्रेस को मुसीबतों के सिवा कुछ नहीं देने वाला है और गोगोई का ये सपना अब अधूरा ही रह जाएगा जिसका फायदा बीजेपी के हिस्से आएगा।