कांग्रेस एक ऐसी ढीठ पार्टी बनती जा रही है, जिसे अपनी गलतियों से कोई सबक नहीं लेना है। एक बार फिर अराजकता को बढ़ावा देते हुए न केवल पंजाब से किसानों के न्याय के नाम पर उग्रवादियों को इस आंदोलन में शामिल करने दिया, बल्कि वह एक बार फिर वही गलती कर रही है, जिसके कारण पंजाब में उनका जनाधार लगभग समाप्त हो गया था, और इंदिरा गांधी को अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ा था।
दरअसल, कुछ ही महीनों पहले लागू हुए कृषि संशोधन अधिनियम के विरोध में पंजाब के कुछ कथित किसानों ने जन आंदोलन के नाम पर दिल्ली कूच का ऐलान किया, इन्हें कांग्रेस से राजनीतिक समर्थन भी प्राप्त है। लेकिन जैसे ही इस आंदोलन की तस्वीरें और इससे जुड़ी मीडिया रिपोर्ट्स सामने आई, यह स्पष्ट हो गया कि किसान के लिए ‘न्याय’ तो बस बहाना है, असल में इन्हें अराजकता फैलानी है।
वीडियो में ये जनाब कहते हुए दिखाई दे रहे हैं, “देखिए, यदि हमारी मांगें नहीं मानी गई, तो हम कुछ भी कर सकते हैं। हमने तो इंदिरा तक को ठोक दिया, तो मोदी की छाती में भी ठोक देंगे!” यहां इंदिरा का अर्थ इंदिरा गांधी से है, जिन्हें खालिस्तान अभियान के सरगना भिंडरावाले को मार गिराने के लिए चलाए गए ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ के विरोध में उन्हीं के सिख अंगरक्षकों द्वारा मार दिया गया। अब ये ‘आंदोलनकर्ता’ नरेंद्र मोदी का भी वही हश्र करना चाहता हैं, जो इंदिरा गांधी का किया गया था।
इन अराजकतावादियों को कांग्रेस न सिर्फ बढ़ावा दे रही है, बल्कि निरंतर कृषि संशोधन अधिनियम के बारे में अफवाहें फैलाकर और आंदोलनकारियों के बीच छुपे अराजकतावादियों को शह देकर ये सिद्ध कर रही है कि वह वोट बैंक के लिए किस हद तक जा सकती है। दरअसल, कांग्रेस को इस बात का भय है कि कहीं भाजपा उसके गढ़ पंजाब में डेरा न जमा ले और अन्य राज्यों की तरह यहां भी आगामी चुनावों में कांग्रेस को हार का मुंह न देखना पड़े।
अब भला इसका वर्तमान आंदोलन से क्या संबंध? संबंध है, क्योंकि अभी कुछ ही महीनों में यानि 2021 के प्रारंभ में निकाय एवं पंचायत चुनाव पंजाब में होने हैं, जिसमें भाजपा न केवल अकेले हिस्सा लेगी, बल्कि सभी सीटों पर चुनाव भी लड़ेगी। अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार, “निकाय चुनाव के परिणाम 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में पंजाब के रुख को भी बताएंगे। शिरोमणि अकाली दल के साथ नाता टूटने के बाद भाजपा नेता इसे अवसर के रूप में देख रहे हैं। पंजाब में छह निगमों सहित 122 काउंसिल हैं। इधर प्रदेश के भाजपा नेताओं का मानना है कि गठबंधन टूटने के बाद अब उनके पास उन इलाकों में जाने का मौका आ गया है, जहां अभी तक वह गए ही नहीं हैं। हालांकि नई जगह जड़ें जमाना आसान नहीं होगा, लेकिन अब मेहनत पर निर्भर करेगा कि इन जगहों पर अपनी जड़ें कितनी जल्दी जमा पाते हैं। केंद्र से भी निकाय चुनाव को लेकर हरी झंडी मिल चुकी है, जिसके बाद प्रदेश स्तर पर रणनीति बनाकर स्थानीय निकाय चुनाव की तैयारी शुरू कर दी गई हैं”।
ऐसे में कांग्रेस अपनी सत्ता के साथ-साथ अपने वोट बैंक को बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार दिखाई दे रही है, ठीक वैसे ही जैसे 1970 के दशक के अंत में उन्होंने खालिस्तान के सरगना जरनैल सिंह भिंडरावाले को बढ़ावा देकर किया था। वोट बैंक की राजनीति के चलते कांग्रेस ने खालिस्तान की मांग करने वाले भिंडरावाले को बढ़ावा दिया था, जिसके आईएसआई के साथ संबंध पर कोई संदेह नहीं था। परिणामस्वरूप भिंडरावाले जल्द ही कांग्रेस के हाथ से निकल गया, और उसे खत्म करने के लिए चलाये गये ऑपरेशन ब्लूस्टार के कारण आगे चलकर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। रही सही कसर 1985 में कांग्रेस को सत्ता गँवाकर पूरी करनी पड़ी।
अब वर्तमान गतिविधियों को देखकर लगता है कि कांग्रेस ने अपनी पुरानी गलतियों से कोई सीख नहीं ली है, बल्कि एक बार फिर चंद वोटों की खातिर किसानों के विरोध प्रदर्शन की आड़ में देश को वैमनस्य की आग में झोंकने को तैयार है, बिना यह समझे कि यह आग उसके अस्तित्व का भी नाश कर सकती है।