देश के तीन स्तंभों कार्यपालिका न्यायपालिका और विधायक के अपने-अपने अधिकार हैं, लेकिन कभी-कभी ये एक-दूसरे के अधिकार क्षेत्र से बाहर जाते हैं तो मुश्किलें बढ़ती है़ं। इसकी ओर जनता का ध्यान आकर्षित करते हुए देश के उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने कहा है कि हाल के कुछ अदलती फैसले ऐसे हैं जो दिखाते हैं कि न्यायपालिका का हस्तक्षेप अब बढ़ने लगा है। नायडू ने ये भी कहा कि लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को अपने-अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत एक दूसरे के प्रति सम्मान भाव से काम करना चाहिए। उपराष्ट्रपति के इस बयान ने आम जनता के बीच अदालती फैसलों को चर्चा का विषय बना दिया है।
देश के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने गुजरात के केवडिया में पीठासीन अधिकारियों के 80 वें सम्मेलन में हिस्सा लेते हुए कुछ बातें कहीं हैं, जो कि बेहद ही अहम है। उन्होंने अधिकारियों के जरिए जजों की नियुक्ति के प्रस्ताव पर न्यायपालिका के विरोध की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया और वर्तमान के दिनों में अदालत द्वारा दिए गए आदेशों को उनकी बढ़ती हस्तक्षेप की शैली से जोड़ा और लोकतंत्र के स्तंभों को साथ काम करने की नसीहत दी। नायडू ने कहा, “विधायिका, कार्य पालिका और न्यायपालिका ये तीनों अंग एक दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप के बिना कार्य करते हैं और सौहार्द बना रहता है। इसमें आपसी सम्म्मान, जवाबदेही और धैर्य की जरूरत होती है।”
वैंकेया नायडू ने दिल्ली में वाहनों पर लगने वाले उपकरण से लेकर पटाखों के बैन पर दिए गए अदालतों के फैसलों पर नाराजगी जताई और अदालतों को उनकी सीमा भी याद दिलाई है। उन्होंने कहा, “दुर्भाग्य से ऐसे कई उदाहरण हैं जब सीमाएं लांघी गईं हैं।” उन्होंने सरकार के मामलों में हस्तक्षेप को लेकर न्यायपालिका के विषय में कहा, “इस तरह की बहस है कि क्या कुछ मुद्दों को सरकार के अन्य अंगों पर वैधानिक रूप से छोड़ दिया जाना चाहिए।”
वैंकेया नायडू ने अदालतों के दोहरे मापदंड अपने वक्तव्य में ही जाहिर कर दिए और दबे शब्दों में ही सही लेकिन अदालत के सामने भी सवाल खड़े कर दिए। उन्होंने कहा, “दिवाली पर पटाखों को लेकर फैसला देने वाली न्यायपालिका कॉलेजियम के माध्यम से जजों की नियुक्ति में कार्यपालिका को भूमिका देने से इनकार कर देती है।” उन्होंने अपने भाषण से संकेत दिया कि न्यायपालिका को हस्तक्षेप से बचना चाहिए। उन्होंने कहा, “कुछ न्यायिक फैसलों से प्रतीत होता है कि हस्तक्षेप बढ़ा है। इन कार्रवाइयों से संविधान की तरफ से तय रेखाओं का उल्लंघन हुआ, जिससे बचा जा सकता था।
उपराष्ट्रपति का ये बयान अपने आप में अदालती फैसलों पर चर्चा का बड़ा विषय बन गया है। पटाखों पर उदाहरण सबसे सटीक है, पहली बात तो ये किसी इस तरह के फैसलों पर सरकारों के लिए मुश्किल होता है। वहीं जनता भी अदालतों के इस रुख से नाराज होती है। इसी तरह वैंकेया नायडू ने दिल्ली के वाहनों में उपकर और 15 साल पुराने वाहनों के बंद होने के फैसले का भी जिक्र किया। ये कुछ ऐसे फैसले हैँ, जिससे जनता नाराज है।
ऐसा पहली बार नहीं है कि अदालती फैसलों को लेकर सवाल उठे हो, समय-समय पर इस तरह के संजीदा आरोप अदालतों के फैसले सुनाने की नीयत पर लगते रहे हैं। वहीं आम जनता इन पर अवमानना के डर से कुछ भी बोलने से बचती है, जबकि कुछ फैसलों का दुष्प्रभाव आम आदमी पर भी पड़ता है। इसीलिए नायडू ने मुद्दों और फैसलों पर चर्चा करने की ओर सभी का ध्यान आकर्षित किया है जो कि भविष्य में देश के लोकतंत्र को मजबूत रखने के लिए आवश्यक है।