अभी तक हमने सुना था कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार केंद्र सरकार से भिड़ती थी, लेकिन अब स्थिति ऐसी है कि इस सरकार के नेता और प्रवक्ता देश के अन्य राज्य की सरकारों से भी भिड़ने लगे हैं। इसमें बिजली सबसे बड़ा मुद्दा है। बिजली के इसी मसले को लेकर आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली जल बोर्ड के उपाध्यक्ष राघव चड्ढा गोवा के बिजली मंत्री से बहस करने गोवा पहुंच गए। दिल्ली सरकार अपने यहां बिजली की दरें सबसे सस्ता होने का दावा करती है, लेकिन हकीकत ये है कि दिल्ली में बिजली की कीमतों में कई झोल हैं और ये देश के अन्य राज्यों से ज्यादा लचर स्थिति में है। फिर भी दिल्ली सरकार इस मुद्दे पर खुद को अव्वल बताती है जो कि आत्ममुग्धता की पराकाष्ठा है।
गोवा के बिजली मंत्री नीलेश कबराल ने हाल ही में दिल्ली के मुफ्त बिजली देने के मामले मॉडल को गलत बताया था। उन्होंने कहा था कि वो इस मुद्दे पर दिल्ली के बिजली मंत्री से बहस करने को भी तैयार हैं। जिसके बाद अब दिल्ली जल बोर्ड के नेता राघव चड्ढा स्वयं गोवा पहुंच गए और चुनौती स्वीकारने की बात करने लगे। ये बेहद ही आश्चर्यजनक था कि वो वहां पहुंच क्यों गए। हालांकि, नीलेश ने कहा कि वो ऐसे ही किसी भी व्यक्ति से बहस नहीं कर सकते हैं, उन्होंने केवल बिजली मंत्री से बहस करने की बात की थी। गौरतलब है कि दिल्ली के बिजली मंत्री सत्येंद्र जैन हैं।
इस मामले में राघव चड्ढा दिल्ली के सस्ती बिजली वाले मॉडल को सही बता रहे हैं और इसे देश में सर्वश्रेष्ठ बता रहे हैं, लेकिन वो जो बता रहे हैं उस पर यकीन करना काफी मुश्किल है क्योंकि दिल्ली के बिजली के बिल वाले मॉडल में काफी झोल है जो कि अन्य राज्यों के मुकाबले कईं ज्यादा पेचीदा और जनता के लिए भ्रामक हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री दावा करते हैं कि दो सौ यूनिट पर दिल्ली में किसी भी तरह का शुल्क नहीं लिया जाता है जिसके चलते ये देश का सबसे सस्ती बिजली देने वाला राज्य है।
केजरीवाल के दावों से इतर जब नजर अन्य राज्यों के आंकड़ों पर जाती है तो पता चलता है कि दिल्ली की अपेक्षा गोवा, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बिजली की दरें 400 यूनिट तक कम है। आम घरों में 400 यूनिट बिजली ही इस्तेमाल होती है। दिल्ली में बिजली की दरें 200 यूनिट तक 3 रुपए/ यूनिट हैं और 201 से 401 यूनिट तक ये दरें 4.5 रुपए/ यूनिट, 401 से 800 यूनिट तक खपत पर 6.5 रुपये/ यूनिट तक पहुंच जाती है।
ये दरें तीन सालों से ऐसी ही हैं लेकिन वित्तीय वर्ष 2020 में 200 यूनिट बिजली पर मिलने वाली सब्सिडी से जुड़ी खपत अब लगभग शून्य हो चुकी है।
दिल्ली के इतर बात गोवा की हो तो गोवा में 1-100 से यूनिट के बीच ग्राहकों को 1.4 रुपए/ यूनिट देने होते हैं। वहीं, 100-200 यूनिट के बीच करीब 2.1 रुपए/ यूनिट देने पड़ते हैं। ऐसे में 0-200 यूनिट के बीच का औसतन 1.75 रुपए/ यूनिट आता है जो कि दिल्ली सरकार से कईं गुना बेहतर है। इसी तरह जम्मू-कश्मीर में भी लोगों को 1.54 रुपए/ यूनिट देने पड़ते हैं। वहीं 201-400 यूनिट पर 2 रुपए प्रति यूनिट देने पड़ते हैं जो कि दिल्ली से बेहतर है।
दिल्ली में औसतन एक यूनिट पर 3.90 रुपए देने पड़ते हैं, जबकि इस मामाले में देश का औसत करीब 3.60 तक ही जाता है। यही नहीं अनेकों विश्लेषकों ने भी इसको लेकर कहा है कि दिल्ली में बिजली की दरें अन्य कई राज्यों से ज्यादा हैं, जबकि गोवा सस्ती बिजली देने वाले राज्यों में पहले स्थान पर आता है। इन सब आंकड़ों के बावजूद दिल्ली की केजरीवाल सरकार देश में सबसे सस्ती बिजली देने का दावा करती है।
इससे पता चलता है कि यद्यपि दिल्ली में बिजली की पर्याप्त सब्सिडी है, राष्ट्रीय राजधानी में DISCOM उच्च दरों पर बिजली खरीदते हैं। बिजली की उच्च लागत सब्सिडी के लिए अनुकूल स्थिति प्रदान नहीं करती है और दिल्ली में सरकारी खजाने को घोषित दरों पर वित्तीय बोझ उठाना पड़ता है।
वित्तीय वर्ष 2019-20 में, दिल्ली सरकार ने बिजली वितरण कंपनियों (DISCOM) के माध्यम से उपभोक्ताओं को सब्सिडी प्रदान करने के लिए 1,720 करोड़ रुपये (ऊर्जा क्षेत्र के तहत 1,790 करोड़ रुपये में से) आवंटित किए थे। यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य सरकार मतदाताओं को लुभाने की योजना के रूप में कम बिजली शुल्क का उपयोग कर रही हैं, लेकिन तथ्य यह है कि प्रति माह 200 यूनिट बिजली खपत करने वाले घरेलू उपभोक्ताओं को दिल्ली सरकार 100% और 201 से 400 यूनिट वालों को 50% सब्सिडी देती है।
सब्सिडी के नाम पर धोखे को भी जान लीजिए। Zeenews की एक रिपोर्ट के अनुसार 5 सालों में दिल्ली में बिजली सप्लाई करने वाली तीनों निजी कंपनियों बीआरपीएल, बीवाईपीएल और टीपीडीडीएल को सरकार की तरफ से दी गई सब्सिडी का कुल आंकड़ा करीब 6,595 करोड़ रुपये है और ये रुपये दिल्ली के लोगों से ही वसूले गए हैं। ये पैसे फिक्स्ड चार्जेज, टैरिफ, पीपीएसी और पेंशन ट्रस्ट चार्ज के नाम पर वसूले गए। पेंशन ट्रस्ट चार्ज का इस्तेमाल बिजली विभाग के रिटायर्ड कर्मचारियों को पेंशन देने के लिए बनाए गए फंड में होता है। दिल्ली सरकार कहती है कि दिल्ली वालों को फ्री बिजली देने की प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं है, जबकि साल 2018 की एक ऑडिट रिपोर्ट में एक बात सामने आई थी जिसमें साफ लिखा था कि बिजली विभाग के कुछ रिकॉर्ड्स की जांच के दौरान ये पाया गया कि Delhi Electricity Regulatory commission ने DISCOM को बिजली की सब्सिडी वाली रकम जिन खातों में दी गई उन ट्रूड अप अकाउंट्स (खातों) की जानकारी कहीं भी नहीं है।
स्पष्ट है कि दिल्ली सरकार दिल्लीवालों के साथ फ्री बिजली के नाम पर धोखा कर रही। मीडिया रिपोर्ट्स से लेकर सरकारी आकड़े प्रमाण हैं कि दिल्ली सरकार बेतरतीब तरीके से जनता से मुफ्त की बात करते हुए ज्यादा पैसा ले रही है। इसके साथ ही वो इस मसले पर चुपचाप नहीं बैठ रही, बल्कि इसे राजनीतिक एजेंडा बना रही है जबकि उसके खुद के सारे दावे ही ढोल के अंदर पोल की तरह हो गए हैं जो हकीकत से बिल्कुल ही अलग हैं। स्पष्ट है कि दिल्ली की तुलना में देश के गोवा और अरूणाचल प्रदेश में अधिक स्सती दरें हैं।