दोगलापन आजकल केवल राजनीति में नहीं रहा, बल्कि समाज के हर क्षेत्र में इसका असर अब दिखता रहता है। आयुर्वेद के छात्रों को सर्जरी के लिए अनुमति देने के फैसले पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन(IMA) का विरोध और ये फैसला वापस लेने की मांग दिखाता है कि मानवता से जुड़े स्वास्थ्य के मुद्दों भी राजनीति का शिकार हो रहे है। कोरोना वायरस के इलाज़ में आयुर्वेद के छात्रों समेत डाक्टरों ने जिस तरह से एलोपैथिक डॉक्टरों की मदद की, वो मदद लेने में IMA को कोई गुरेज नहीं था, लेकिन जब इन्हीं छात्रों को सर्जरी की स्वीकृति मिल रही है तो आइएमए को इससे परेशानी हैं।
कोरोना वायरस के इस कठिन दौर में जिस तरह से आयुर्वेद के छात्रों और चिकित्सकों ने स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाने के साथ ही आम लोगों के इलाज और उनकी जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है उससे भारत सरकार भी प्रभावित हुई है। भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने अपने 20 नवंबर के गजट में आयुर्वेदिक पोस्ट ग्रेजुएट छात्रों को 58 तरह की आयुर्वेद सर्जरियां करने की इजाजत दे दी है। इनमें मुख्य रूप से आंखों की सर्जरी, कान-गला और दांत की सर्जरी, स्किन ग्राफ्टिंग, ट्यूमर की सर्जरी, हाइड्रोसील, अल्सर, पेट की सर्जरी शामिल हैं। पहली नजर में आयुर्वेद और स्वास्थ्य सुविधाओं के लिहाज से देश के लिए ये बड़ा और सकारात्मक फैसला है लेकिन इससे IMA को आपत्तियां हैं।
दरअसल, सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन द्वारा आयुर्वेद के डाक्टरों को सर्जरी की इजाजत देने पर आईएमए ने एक बयान में कहा कि CCIM खुद के प्राचीन लेखों से सर्जरी की अलग शिक्षण प्रक्रियाएं तैयार करे और सर्जरी के लिए मॉडर्न मेडिसिन के तहत आने वाले विषयों पर दावा न करे। आईएमए ने आरोप लगाए कि CCIM की नीतियों में अपने छात्रों के लिए मॉडर्न मेडिसिन से जुड़ी किताबें मुहैया कराने के स्पष्ट भेद हैं और संस्था दोनों सिस्टमों को मिलाने की कोशिशों का विरोध करती है।
IMA का कहना है कि सीसीआईएम के इस फैसले के भविष्य में घातक परिणाम सामने आएंगे। इसके जरिए दोनों प्रक्रियाओं को मिलाने की नीति गलत है। आईएमए ये कह रहा है कि इसके बाद लोगों को आयुर्वेद के जरिए चिकित्सा के क्षेत्र में चोर दरवाजे से घुसने का मौका मिलेगा, जो कि घातक होगा। आईएमए ने सवाल उठाया कि इससे नीट जैसी परीक्षाओं का महत्व पूर्ण रूप से खत्म हो जाएगा।
ऐसा देखा गया है कि जब भी देश में आयुर्वेद को बढ़ावा देने की बात होती है, तो अक्सर आयुर्वेद के फायदे और असर पर प्रश्नचिन्ह लगाया जाता है। आयुर्वेद सर्जरी के जनक सुश्रुत ने पश्चिमी देशों की सभ्यता पर मंडराए संकट को लेकर 2500 वर्ष पहले ही सर्जरी के 100 से ज्यादा तरीके लिख दिए थे। मॉडर्न सर्जरी की किताबों में भी सुश्रुत को फादर ऑफ सर्जरी कहा गया है। वर्तमान की ही बात करें तो कोरोना वायरस के कारण डाक्टरों की किल्लत के दौरान भी आयुर्वेद के छात्रों और डाक्टरों ने मरीजों की देवदूत बनकर मदद की थी
आयुर्वेद आज के दौर में तकनीक के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहा है, और तकनीक को अपनी सर्जरी के तरीको में भी अपना रहा है। इसको लेकर बने नए कानून में भी बातें कही गईं हैं। तथ्यों की बात करें तो महाराष्ट्र और गुजरात के अस्पतालों में 95% आईसीयू सर्जरी के लिए आयुर्वेद के डॉक्टरों द्वारा ही तैयार किए जाते हैं। एलोपैथिक डॉक्टरों द्वारा इन चीजों की जानकारी खुद ही आयुर्वेद के डाक्टरों और छात्रों को दी जाती है। वो लोग उनसे ऐसा इसलिए करवाते हैं क्योंकि इससे पैसों की बचत होती है और मरीजों से मोटा मुनाफा भी कमाया जाता है, जो कि एक बिजनेस बन गया है।
IMA अपने विरोध का भी कुछ चुनिंदा जगहों पर ही इस्तेमाल करता है। जब तक इन डॉक्टरों की मदद से एलोपैथिक डाक्टरों को इलाज में आसानी के साथ कम पैसा खर्च हो रहा था तब तक आयुर्वेद को लेकर आपत्तियां नहीं थीं, लेकिन सरकार द्वारा सर्जरी की मान्यता और तकनीक के इस्तेमाल की स्वीकृति मिलने के बाद आयुर्वेद के डाक्टरों से आईएमए को आपत्ति है। बहराल, आयुर्वेद का योगदान भारतीय चिकित्सा समाज में अतुलनीय ही है।