असंवैधानिक पदों को सृजित कर उनके सहारे बंगाल को चला रही हैं ममता दीदी

दीदी की दादागिरी के खिलाफ अब सरकारी खेमा!

ममता

पश्चिम बंगाल में अधिकारियों के ऊपर भी एक नई और समानांतर व्यवस्था चल रही है। चंद रिटायर्ड अफसर ही सरकार का सारा काम-काज देख रहे हैं। इनकी नियुक्ति राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ही की है। इस मुद्दे को लेकर अधिकारियों का कहना है कि मुख्यमंत्री का ये कदम काम कर रहे अधिकारियों को हतोत्साहित कर रहा हैं। ममता के मंत्रियों का कहना है कि इसके जरिए राज्य में बेहतरीन अफसरों से काम लिया जा रहा हैं। ममता सरकार इसे अपना अधिकार बता रही है, पर असल बात ये है कि बंगाल में संवैधानिक मूल्यों की हत्या हो रही है  और ये पहली बार नही हैं।

हाल ही में ममता सरकार ने मुख्य सचिव राजीव सिन्हा को आईएएस के पद से रिटायर होने के ठीक बाद तीन साल के लिए पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया है। ये एक ऐसा कदम था जिसके बाद ममता सरकार की आलोचना फिर शुरु हो गई है क्योंकि सिन्हा, ममता के बेहद करीबी हैं और इसीलिए रिटायरमेंट के बाद उन्हें अपने साथ रखने के लिए ममता सरकार ने अलग से ही एक पद बना दिया है।

सिन्हा, ममता के अकेले ऐसे भरोसेमंद सेवानिवृत्त अधिकारी नहीं हैं जो सरकार द्वारा बनाए गए पद पर आसीन हैं। इसके अलावा पूर्व अधिकारी गौतम सान्याल,सुरजीत कर पुरकायस्थ और रीना मित्रा भी हैं जो ममता बनर्जी की करीबी माने जाते हैं। इसीलिए वो सरकार द्वारा बनाए गए अतिरिक्त और सुप्रीम पद पर काबिज हैं। इन चारों को लेकर ये कहा जाता है कि ममता सरकार का सारा काम-काज यही लोग संभाल रहे हैं।

ममता सरकार ने सान्याल का पद बदलकर उन्हें मुख्यमंत्री का सचिव बना दिया था। ये एक ऐसा पद है जो केवल आईएएस काडर के लिए आरक्षित है और सान्याल वो नहीं हैं। सान्याल अकेले ऐसे अधिकारी हैं जो आईएएस न होते हुए भी इस पद पर तैनात हैं। इसी तरह पुराकायस्थ को रिटायरमेंट के बाद राज्य सुरक्षा सलाहकार बना दिया था। वहीं आईएएस रीना मित्रा को रिटायरमेंट के बाद आंतरिक सुरक्षा का सलाहकार नियुक्त कर दिया था। सूत्रों का कहना है कि वो राज्य की कई सुरक्षा एजेंसियों की निगरानी करती हैं।

इस मामले को लेकर ममता सरकार के कैबिनेट मंत्री सुब्रत मुखर्जी का कहना है,“नए पद बनाना सरकार के हाथ में ही है। इसको लेकर कोई नियमावली नहीं है।” उनका कहना है, “ममता सरकार ने ये पद उन अधिकारियों के कौशल के आधार पर ही उन्हें दिए हैं, उनकी नियुक्ति का फैसला करने के लिए ममता बनर्जी पूरी तरह स्वतंत्र हैं।”

ममता सरकार की कैबिनेट से इतर अधिकारी वर्ग ममता सरकार के इस कदम से नाखुश है। सीएम के साथ काम कर चुके सेवानिवृत्त अधिकारियों का कहना है कि ममता के इस कदम से कार्यरत अधिकारी हतोत्साहित हो रहे हैं। उनके काम करने के तरीकों पर इस कदम से काफी बुरा असर पड़ रहा है। उन्होंने कहा, इससे न सिर्फ सच्चे और ईमानदार अधिकारियों का उत्साह ठंडा पड़ा है, बल्कि सरकार की कारगुज़ारी पर भी काफी असर पड़ रहा है, क्योंकि नीचे के अधिकारी इस मनमाने और अनौपचारिक तरीके को स्वीकार नहीं कर रहे हैं, जिसमें सच्चे और ईमानदार अधिकारियों को दरकिनार करके, कुछ चहेते अधिकारियों को पुरस्कृत किया जा रहा है। पूर्व अधिकारियों को दिए गए इन पदों के कारण मिल रही सरकारी सुविधाओं पर भी कई पूर्व और कार्यरत अधिकारियों ने अंदरखाने सवाल खड़े किए हैं।

इसके अलावा इस मुद्दे पर राज्यपाल जगदीप धनखड़ भी ममता सरकार व इन अतिरिक्त पदों पर बैठे अधिकारियों से परेशान हैं। उन्होंने बंगाल के इन सुपर बॉसेज की चर्चा देश के गृहमंत्री अमित शाह से भी की है। धनखड़ ने सवाल उठाए, एसएसए और आंतरिक सुरक्षा सलाहकार क्या कर रहे हैं, जब बंगाल में बम बनाने की अवैध फैक्ट्रियां फल-फूल रही हैं? वो पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) और वैधानिक रूप से गठित पुलिस तंत्र के ऊपर, सुपर बॉसेज की भूमिका कैसे निभाते है? अगर हमारे पास एक एसएसए और आंतरिक सुरक्षा एक्सपर्ट्स हैं, तो अलकायदा सदस्य बंगाल में अपने मॉड्यूल कैसे चलाते हैं? ये और कुछ नहीं बल्कि पुलिस प्रशासन का खुला राजनीतिकरण है।

गौरतलब है कि हाल ही में बंगाल से कई ऐसी खबरें आई है जिसमें अलकायदा समेत आईएसआईएस के आतंकियों के एनआईए द्वारा पकड़े जाने की खबर सामने आई हैं जिन्होंने ममता सरकार के कार्यशैली और राज्य की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं।

बंगाल में ममता बनर्जी लगातार अपने करीबियों के लिए इस तरह के पद बना रही है जो कि संविधान की किसी किताब में हैं ही नहीं। इसके जरिए वो राज्य के सभी महत्वपूर्ण विभागों में अपने करीबियों को काबिज कर रही हैं जो भविष्य में उनके लिए स्थितियां आसान कर सकें। ममता बनर्जी राज्य में वो सब कर रही हैं जो किसी अन्य राज्य में नहीं हो रहा है।  केन्द्र से मतभेदों की इस स्थिति में ममता केन्द्र से हर बार एक कदम आगे रहते हुए एक समानांतर राज्य व्यवस्था चला रही हैं।

इन सबसे इतर ममता के ये सुपर बॉस वाला फॉर्मूला अब उनके राज्य के ही अन्य अधिकारियों को नाखुश कर रहा है और राज्य में एक नए प्रशासनिक संकट की स्थितियां बन रही हैं।

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