भुखमरी और कुपोषण को रोकने के लिए मोदी सरकार का मास्टरप्लान

जैविक

देश की भुखमरी और कुपोषण को लेकर मोदी सरकार ने एक बड़ा कदम उठाने की तैयारी कर ली है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विश्व खाद्य दिवस से पहले 8 फसलों की 17 जैविक किस्मों को जारी किया है जो कि शरीर में पोषण बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। इससे लोगों के शरीर में अधिक पोषक तत्वों की पूर्ति होगी। पीएम मोदी ने इस कदम को देश की खाद्य प्रणाली के लिए एक बड़ा बदलाव बताया, जो कि देश में पौष्टिक आहार प्रदाने करने में सहायक होगा।

इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च वेबसाइट से मिली जानकारी के मुताबिक पीएम ने इन निम्नलिखित किस्मों की फसलों को जारी किया है।

और DDW 48, दोनों प्रोटीन और आयरन से भरपूर हैं।

पीएम मोदी ने इन फसलों की किस्मों को लेकर कहा कि इससे आहार की पौष्टिकता में डेढ़ से तीन प्रतिशत की वृद्धि होगी। उन्होंने कहा कि किसानों की मेहनत से उपजने वाली इन फसलों से लोगों की थाली अधिक पौष्टिक होगी। पीएम ने इस दौरान गुजरात के गारो हिल्स क्षेत्र और डांग जिले में उपजने वाले चावल की किस्मों में ज़िंक की मात्रा का जिक्र भी किया था।

खाद्य उद्योग के विशेषज्ञों ने बताया है कि इन नई जैव-फोर्टीफाइड फसलों को सीधे भारत के महत्वाकांक्षी पोषण योजना में शामिल किया जा सकता है जिसका उद्देश्य 10 करोड़ से अधिक लोगों की भुखमरी, कुपोषण, एनीमिया की बीमारियों को दूर करना है। गौरतलब है कि भोजन का जैविक सुदृढ़ीकरण सरल,लागत प्रभावी और टिकाऊ साबित हुआ है।

इस मामले में ये भी सामने आया है कि जैविक फसलों के उत्पादन में वृद्धि की जाएगी और इसे आंगनवाणी से संबंधित भोजन में भी सम्मिलित किया जाएगा जिससे कुपोषण के खिलाफ अभियान में भी मदद मिलेगी। इसे किसानों की आय बढ़ाने के मामले में कारगर माना जा रहा है और उद्योगों के विकास में भी ये महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।

द प्रिंट की एक रिपोर्ट बताती है कि प्रतिवर्ष कुपोषण से लेकर बीमारियों तक में 6 लाख करोड़ रुपयों की लागत आती है जो कि गरीबों के लिए असहनिए खर्च होता है। मोदी कैबिनेट की भी इस समस्या पर काफी लंबे वक्त से नज़र थी, जिसे खत्म करने के लिए अब मोदी सरकार ने अपने कदम आगे बढ़ा दिए हैं। मोदी सरकार चावल की पौष्टिकता को भी भारतीय आहार में मुख्यता देना चाहती है, क्योंकि ये एनीमिया से मुक्ति में कारगर होते हैं।

औद्योगिक विशेषज्ञों ने बताया है कि इन नई जैव-फोर्टीफाइड फसलों को सीधे भारत के महत्वाकांक्षी पोषण योजना में शामिल किया जा सकता है। जिसका उद्देश्य 10 करोड़ से अधिक लोगों को कुपोषण और एनीमिया की बीमारियों को दूर करना है। भोजन का जैविक सुदृढ़ीकरण सरल, लागत प्रभावी और टिकाऊ साबित हुआ है।

हमेशा भी देखा गया है कि पारंपरिक उत्पादों से जैव-फोर्टीफाइड उत्पादों को अलग करने की अक्षमता के कारण किसानों को बाजर में उचित दाम नहीं मिलता है। इसलिए उचित प्रमाणीकरण तंत्र की आवश्यकता होती है। ऐसे में यदि सरकार जैविक विविधता की फसलों के लिए कुछ प्रमाणन मानकों के साथ आती है, तो किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य मिल सकता है।दुनिया भर के देशों में जैव-फोर्टीफाइड फसलें आदर्श हैं क्योंकि लोग पौष्टिकता के मामले में अधिक खर्च करने से भी संकोच नहीं करते हैं।

हाल ही में कृषि बिल पारित करने के बाद जैविक फसलों के उत्पादन और वितरण में बहुत आसानी हो सकती है। खुले बाजार के नए माहौल और मंडी-माफिया की छुट्टी के बाद किसानों को भी फसलों में फायदा हो सकता है, क्योंकि इससे किसानों को फसलों का उचित दाम मिल सकता है।

ऐसे में ये मोदी सरकार का मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है, जिससे न केवल भारतीय मूल में कुपोषण के अंत की शुरुआत हो सकती है बल्कि किसानों को भी इससे जरिए एक बड़ा फायदा हो सकता है।

 

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