हाल ही में एक अहम निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई पुलिस द्वारा फंसाये गए अर्नब गोस्वामी को अंतरिम जमानत दे दी है। अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने न केवल महाराष्ट्र सरकार को खरी खोटी सुनाई, बल्कि यह भी कहा कि अर्नब को अंतरिम जमानत न देने में बॉम्बे हाई कोर्ट ने भूल की। लेकिन जहां एक तरफ पूरा देश इस बात का जश्न मना रहा है, तो वहीं अर्नब को पिटता देख खुश होने वाले वामपंथी आज खून के आँसू रो रहे हैं।
अर्नब गोस्वामी की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट, विशेषकर निर्णय सुनाने वाले न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ को निशाने पर लिया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उपहास उड़ाते हुए वामपंथी यूज़र अशोक स्वेन ने ट्वीट किया, “उमर खालिद की निजी स्वतंत्रता का क्या? या वह इसलिए गिरफ्तार हुआ क्योंकि उसका नाम उमर था, अर्नब नहीं?”
https://twitter.com/ashoswai/status/1326488605783715840?s=20
ये जस्टिस चंद्रचूड़ के उस बयान पर हमला था, जहां उन्होंने महाराष्ट्र सरकार पर प्रहार करते हुए कहा था कि एक व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता को कोई सरकार नहीं छीन सकता। लेकिन वे अकेले नहीं थे, क्योंकि जस्टिस चंद्रचूड़ को अपमानित करने के लिए मानो स्वयं कांग्रेस आईटी सेल सक्रिय हो गई। कांग्रेस के सोशल मीडिया प्रभारी श्रीवत्स ने सुप्रीम कोर्ट की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए ट्वीट किया, “सुधा भारद्वाज, वरावर राव, Vernon Gonsalves, आनंद तेलतुंबडे, स्टेन स्वामी, सिद्दीकी कप्पन और उमर खालिद के वकीलों को निजी स्वतंत्रता के नाम पर मुकदमा दायर करना चाहिए। क्या सुप्रीम कोर्ट उनकी दलील सुनकर उन्हें जमानत देगा? सबको पता चलना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट कितना Hypocirte है”।
Lawyers of
Sudha Bharadwaj
Varavara Rao
Vernon Gonsalves
Anand Teltumbde
Stan Swamy
Siddique Kappan
Umar KhalidMust file a Petition in SC today on grounds of Personal Liberty. Will SC hear & grant them Bail tomorrow?
LET INDIANS SEE THE HYPOCRISY OF OUR SUPREME COURT
— Srivatsa (@srivatsayb) November 11, 2020
पर एक मिनट, ये जस्टिस चंद्रचूड़ तो वहीं न्यायाधीश हैं न, जो एक समय पर इन्हीं वामपंथियों के Favorite हुआ करते थे? ये जस्टिस चंद्रचूड़ ही थे, जिन्होंने इसी वर्ष के प्रारंभ में कहा था, “लोकतंत्र में विरोध एक सेफ़्टी वॉल्व की तरह होता है”। इसके कारण वामपंथियों ने इन्हें अपना मसीहा मान लिया था, और इन्हें लोकतंत्र के रक्षक से लेकर न्यायपालिका के तारणहार तक की पदवी दी जाने लगी।
तो अब क्या हो गया? दरअसल, जस्टिस चंद्रचूड़ ने अर्नब गोस्वामी के विषय पर अपना मत देते हुए न केवल महाराष्ट्र सरकार को खरी खोटी सुनाई, बल्कि अर्नब गोस्वामी को बिना हिचकिचाहट अंतरिम जमानत दे दी, जो उनके नज़र में किसी ‘अक्षम्य अपराध’ से कम नहीं है। वामपंथियों के लिए सिर्फ एक बात मायने रखती है – कौन किस हद तक उनके तलवे चाट सकता है। यदि कोई व्यक्ति उनके विचारों से सहमत नहीं है, तो चाहे वो देश का प्रधानमंत्री, या सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश, वे किसी को नहीं छोड़ेंगे।
इसी विकृत मानसिकता को कथित कॉमेडियन कुणाल कामरा ने जगजाहिर किया, जब कामरा ने एक के बाद एक अपमानजनक ट्वीट सुप्रीम कोर्ट के लिए पोस्ट किए। सर्वप्रथम तो कामरा ने सुप्रीम कोर्ट को वर्तमान सरकार यानि मोदी सरकार का गुलाम दिखाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष भारतीय झंडे को फॉटोशॉप से भाजपा के झंडे से रिपलेस किया।
Contempt of court it seems 😂😂😂 pic.twitter.com/QOJ7fE11Fy
— Kunal Kamra (@kunalkamra88) November 11, 2020
इतने से भी मन नहीं भरा, तो जनाब ने ट्वीट किया, “सुप्रीम कोर्ट देश का सुप्रीम जोक है”।
लेकिन इतने पर भी कुआल कामरा का मन नहीं भरा तो अपनी सीमाएँ लांघते हुए उसने जस्टिस चंद्रचूड़ के लिए बेहद आपत्तिजनक ट्वीट लिखा, “डी वाई चंद्रचूड़ वो फ्लाइट अटेंडेंट की भांति जो केवल फर्स्ट क्लास पैसेंजर को सर्व करता है, जबकि आम आदमी को पता भी नहीं होता कि उन्हें फ्लाइट में चढ़ने दिया जाएगा या नहीं, खातिरदारी तो दूर की बात”।
हालांकि, कुणाल कामरा का यह पैंतरा उन पर भारी भी पड़ सकता है, क्योंकि बॉम्बे हाई कोर्ट में अधिवक्ता चाँदनी शाह ने बार काउन्सिल ऑफ इंडिया को पत्र लिखते हुए कहा है कि काउन्सिल इस बात का संज्ञान ले और तुरंत कुणाल कामरा के विरुद्ध न्यायालय की अवमानना का मुकदमा दायर करे।
Mr. @kunalkamra88 !
Be ready to face the legal consequences for blatantly insulting the Apex Court of the country, Justice Chandrachud and Justice Indira Bannerjee, Adv. Harish Salve.
Time for you to realise, that freedom of speech is NOT ABSOLUTE in this country. pic.twitter.com/0fOtiyjpol
— Chandni Preeti Vijaykumar Shah (@adv_chandnishah) November 11, 2020
लेकिन ये कुंठा स्वाभाविक भी है, आखिर अर्नब बाहर जो आ गये हैं। इन वामपंथियों के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तभी तक उचित है, जब उसका एकाधिकार उनके पास हो, और जहां किसी और ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पक्ष लिया, ये उसके पीछे हाथ धोकर पड़ जाते हैं।