कैसे Jacinda Ardern न्यूजीलैंड को नर्क से भी बदतर बनाने की तैयारी कर रही हैं

न्यूजीलैंड

PC: Financial Times

आज विश्व में दो समस्यायें सबसे अधिक गंभीर रूप ले चुकी हैं और वैश्विक शांति के लिए सबसे बड़े खतरे के रूप में खड़ी हैं और वे दोनों समस्याएँ है, चीन और इस्लामिस्ट कट्टरवाद। ऐसा लगता है कि न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री Jacinda Ardern इस छोटे से द्वीप देश को  समस्याओं के मझधार में धकेलने का प्रबंध कर चुकी है। एक तरफ, वे चीन के साथ व्यापारिक संबंधों को बढ़ाकर उसे हावी होने का मौका दे रहीं हैं, तो वहीं वे मुस्लिम समाज के कट्टरपंथियों द्वारा बनाए गए नियमों को कानूनी संरक्षण दे रही है।

आज से न्यूजीलैंड की पुलिस में महिलाओं को हिजाब पहनने की अनुमति दी गयी। न्यूजीलैंड पुलिस ने आधिकारिक रूप से अपनी वर्दी के हिजाब स्वरूप को पेश किया है। महिला सशक्तिकरण के नाम पर और अधिक महिलाओं को पुलिस में आकर्षित करने के लिए इस देश की सरकार ने यह निर्णय लिया। रिपोर्ट के अनुसार कांस्टेबल ज़ीना अली ने इस हिजाब को पहन कर इसकी शुरुआत की। उनका कहना है कि अब उन्हें अपने धार्मिक और व्यक्तिगत विश्वासों से समझौता नहीं करना पड़ेगा। उन्होंने कहा, “पुलिस-ब्रांडेड हिजाब रखने का मतलब उन महिलाओं से है, जो पहले पुलिस में भर्ती होने पर विचार नहीं कर सकती थीं, अब वे ऐसा कर सकती हैं। यह बहुत अच्छा है कि पुलिस ने मेरे धर्म और संस्कृति को कैसे शामिल किया।”

कहा जाता है कि हिजाब महिलाओं के लिए शुद्धता और विनय का द्योतक है, और हिजाब कहता है कि एक महिला को अपने हिजाब से अपने बाल, गर्दन और वक्ष स्थल और कंधे को ढकना चाहिए।

यह अवधारणा नारीवादी आदर्शों नहीं बल्कि इस्लामिस्टों द्वारा दिया गया है। यह कैसा विचार कि एक महिला तब तक सम्मान के योग्य नहीं है होगी जब तक वह हिजाब नहीं पहनेगी। यह किसी प्रकार की स्वतंत्रता या महिला सशक्तिकरण नहीं, बल्कि यह महिलाओं पर एक अत्याचार है। हिजाब का समर्थन करने वाली नारीवादियों के ऐसे जहर को फैलने नहीं देना चाहिए क्योंकि यहीं से कट्टरवाद और शरिया कानून की शुरुआत होती है जहां महिलाओं को किसी प्रकार की स्वतन्त्रता नहीं होती है।

जिस भी तरीके से एक महिला खुद के लिए हिजाब चुनती है तो उसका अर्थ यही होता है कि उसने इन विचारों के सामने घुटने टेक दिये हैं और अब वह उसे सामान्य कर रही है। इससे भी बदतर तो ये है कि इसे सशक्तिकरण का नाम दिया जाता है। आज यही काम न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री Jacinda Ardern कर रही है और वह इस्लामिस्टों और कट्टरवाद के लिए दरवाजे खोल रही है क्योंकि इन विचारों को बनाने वाले वे ही है। दमनकारी विचारों के सामने घुटने टेकना, उसे सामान्य करना, और बहाना बना कर स्वयं भी उसे प्रचारित करना इन विचार की प्रकृति को बदलेगा नहीं बल्कि बढ़ाएगा।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज विश्व इस्लामिक आतंकवाद से जूझ रहा है, और उसे नकारना यूरोप के देशों पर भारी पड़ रहा है। वहाँ होने वाली आतंकी घटनाओं को देख कर इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। फ्रांस के राष्ट्रपति ने भी जब पदभार संभाला था तब वे लिबरल ही थे लेकिन समय के साथ उन्होंने कट्टरवाद के बढ़ते खतरे को पहचाना और अब वे कट्टरवाद को बढ़ने से रोकने के लिए कई कदम उठा रहे हैं। परंतु अगर न्यूजीलैंड इसी तरह से इस्लामिक कट्टरवाद के लिए रास्ते खोलना जारी रखता है तो आने वाले वर्षों में यह लिबरलबाजी स्वयं न्यूजीलैंड पर भारी पड़ने वाला है।

वहीं अगर चीन के सम्बन्धों की बात करे तो पिछले तीन वर्षों में यह द्वीप देश चीन के अधिक नजदीक गया है। न्यूजीलैंड की Jacinda Ardern चीन में हो रहे उइघर मुसलमानों का मुद्दा तो उठती है लेकिन चीन के साथ सम्बन्धों को खराब नहीं करना चाहती है। हाल ही में सम्पन्न हुए चुनावों में Jacinda Ardern की जबर्दस्त जीत और विदेश मंत्री Winston Peters के छह वर्षों का कार्यकाल पूरा होने के बाद कई विशेलेषक यह अनुमान लगा रहे हैं कि आने वाले समय में न्यूजीलैंड की चीन के साथ सम्बन्धों में बढ़ोतरी होगी क्योंकि Jacinda Ardern चीन के साथ सम्बन्धों को खराब नहीं करना चाहती है। उनके चुनाव जीतने के बाद CCP के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने भी लेख प्रकाशित करते हुए Jacinda की प्रशंसा की थी और चीन से सम्बन्धों को और मधुर बनाने की बात कही थी। उन्होंने अपने देश में हुवावे हो भी बैन नहीं किया है जबकि ऑस्ट्रेलिया भी हुवावे को बैन कर चुका है। यानि कुल मिला कर देखा जाए तो Jacinda Ardern के नेतृत्व में यह द्वीप देश चीन का समर्थन देने से पीछे नहीं हटेगा।

न्यूजीलैंड के हालिया कदमों को देखते हुए अगर यह कहा जाए कि Jacinda Ardern प्रो-चाइना और प्रो-इस्लामिज्म के कदमों से इस द्वीप देश को बरबादी के रास्ते पर ले जा रही है तो गलत नहीं होगा। न्यूज़ीलैंड, उस वोक इंस्टाग्राम युवा की तरह है, जो लिबरलिज़्म के नाम पर सभी कुछ सही ठहराना चाहता है, अपने कंफ़र्ट बबल में रहना चाहता है और दुनिया की वास्तविकता को स्वीकार नहीं करना चाहता है।

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