यूपी, बिहार जैसे राज्यों में एक रस्म बन गई है कि अगर कोई भी अल्पसंख्यक जीतकर नहीं आता है तो विधान परिषद के जरिये एक अल्पसंख्यक को जिताकर अल्पसंख्यक मंत्रालय दे दिया जाता है लेकिन बिहार में इस बार ये परंपरा टूट गई है। बिहार की एनडीए सरकार में इस बार किसी मुस्लिम को जगह नहीं मिली है। अल्पसंख्यक मंत्रालय का जिम्मा भी बहुसंख्यक नेता को दिया गया है। इस बार धार्मिक एजेंडे पर लड़ने वाली ओवैसी की पार्टी को जनता ने समर्थन दिया है जो कि राजनीतिक और सामाजिक तौर पर खतरनाक है। इस कारण एनडीए ने दिखा दिया है कि विकास सबका होगा, लेकिन कुछ बिन्दुओं का विशेष ध्यान भी रखा जाएगा।
बिहार में इस बार एक बहुसंख्यक समाज के नेता को अल्पसंख्यक मंत्रालय दिया गया है। जेडीयू कोटे के मंत्री अशोक चौधरी को ये जिम्मा सौंपा गया है। ये पहली बार है कि बिहार में अल्पसंख्यक मंत्रालय मुस्लिम नेता के पास नहीं है। इसको लेकर सवाल भी खड़े हो रहे हैं कि बीजेपी का रंग अब नीतीश पर चढ़ चुका है इसलिए वो भी बीजेपी के साथ मिलकर काम कर रहे हैं, और इसीलिए उन्होंने अपने मंत्री को तो अल्पसंख्यक मंत्रालय दिया लेकिन वो नेता बहुसंख्यक ही है। लोगों को ये आपत्तिजनक लग रहा है।
वामपंथी पत्रकार अरफा खानम ने ट्वीट करके इस मुद्दे पर सवाल भी उठाए कि इस बार बिहार की गठबंधन सरकार में मुस्लिम समुदाय का एक भी नेता नहीं है।
“Bihar has for the first time since Independence got a ruling coalition without a single MLA from its largest minority community.”
Bihar alliance without a single elected Muslim – Telegraph India https://t.co/2MrAwcXuep— Arfa Khanum Sherwani (@khanumarfa) November 17, 2020
उनके इस ट्वीट का जवाब देने आए बीजेपी नेता और केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि इस बार बिहार के अल्पसंख्यकों ने सारा समर्थन कट्टर हैदराबादी पार्टी को दे दिया है जिसके चलते कोई भी मुस्लिम नेता उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए बिहार की कैबिनेट में नहीं है।
Because the Largest Minority Community chose the Hyderabadi Party….The same Hyderabadi party whose sole purpose is to promote radicalism.
I am sad on this issue more than you. https://t.co/sOtfpv7N9n
— Shandilya Giriraj Singh (मोदी का परिवार) (@girirajsinghbjp) November 17, 2020
जेडीयू जो कि मुस्लिमों को साथ लेकर काम करने का दावा करती थी, इन चुनावों में उसके एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को जीत नहीं मिली है। एक वक्त ऐसा था जब जेडीयू के लिए ये कहा जाता था कि मुस्लिम वोट जेडीयू की तरफ जाता है लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। इन विधानसभा चुनावों में मुस्लिम समाज ने ओवैसी को ज्यादा पसंद किया जो धर्म आधारित राजनीति करते हैं। महागठबंधन को वोट तो दिया लेकिन एक बड़ा वर्ग ओवैसी की तरफ जाने से महागठबंधन का सारा खेल बिगड़ गया।
ओवैसी की पार्टी के उम्मीदवारों को लोगों ने जेडीयू उम्मीदवारों से अच्छा माना। वो चुनावी प्रक्रिया से जीतकर आए हैं लेकिन ये सच किसी से छिपा नहीं है कि किस तरह से वो समाज में कट्टरता का जहर घोलते हैं। उनकी इस कट्टरता से कुछ लोग प्रभावित हुए और मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों के कारण वो जीत गए। इसके चलते जेडीयू के हाथ खाली रहे। जब मुस्लिम समाज के एक बड़े वर्ग ने कट्टरता को अपना एजेंडा बनाकर ओवैसी जैसे कट्टरता फैलाने वाले नेता की पार्टी को जिताया तो एनडीए सरकार ने इस बार कोई मुस्लिम नेता नहीं चुना जो अल्पसंख्यक मंत्रालय संभाल सके।
एनडीए चाहता तो पहले की तरह ही विधान परिषद से एक मुस्लिम नेता को जिताकर अल्पसंख्यक मंत्री बना सकता था लेकिन ओवैसी जैसे कट्टर नेता की पार्टी का जीतना एक संदेश देता है जो खतरनाक है। इसीलिए एनडीए ने भी इस बार अल्पसंख्यक मंत्रालय एक बहुसंख्यक नेता को देकर साबित किया है कि हम विकास में सभी के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे लेकिन कट्टरता को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
बिहार में बीजेपी इस बार गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी है। उसका नारा ही है सबका साथ, ‘सबका विश्वास’ लेकिन इस बार जिस तरह से कट्टर पार्टी AIMIM ने वोट हासिल किए, उसके बाद बीजेपी ने भी अपने और अपने गठबंधन के नियम में एक बदलाव कर दिया है कि सबका साथ और सबका विकास तो होगा पर उसमें शर्तें भी होगी जो कट्टरता को दूर रखकर काम करने वालों को ही अपने साथ शामिल करेगी।