सऊदी-इज़राइल की दोस्ती? मिडिल ईस्ट में शांती स्थापित करने में ट्रंप बड़ी भूमिका निभाने जा रहे हैं

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सऊदी अरब

अपने प्रशासन के आखिरी दिनों में भी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पश्चिमी एशिया में शांति स्थापित करने की किस प्रकार जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं, उसी का नमूना हमें 22 नवंबर को भी देखने को मिला। इज़रायली न्यूज़ एजेंसी Haaretz में यह रिपोर्ट किया गया कि बीते रविवार को इज़रायल के प्रधानमंत्री Benjamin Netanyahu और खुफिया एजेंसी मोसाद के अध्यक्ष Yossi Cohen ने गुपचुप तरीके से सऊदी अरब का दौरा किया। वहाँ इन दोनों ने करीब 2 घंटों तक समय बिताया और अमेरिकी विदेश मंत्री Mike Pompeo और सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के साथ एक गोपनीय बैठक की। माना जा रहा है कि ट्रम्प प्रशासन अब अन्य अरब देशों की तरह ही सऊदी अरब पर भी इज़रायल के साथ कूटनीतिक रिश्ते स्थापित करने का दबाव बना रहा है, और यह मुलाक़ात इसी बात को सुनिश्चित करने के लिए की गयी थी।

यह ट्रम्प प्रशासन के प्रयासों के बाद ही हो पाया है कि आज पहले ही UAE और बहरीन जैसे अरब देश इज़रायल के साथ अपने कूटनीतिक संबंध स्थापित कर चुके हैं। हालांकि, इस्लामिक सत्ता का powerhouse माने जाने वाले सऊदी अरब ने अभी तक इज़रायल के वजूद को स्वीकार नहीं किया है (कम से कम आधिकारिक तौर पर तो नहीं!)। अरब देशों और इज़रायल के बीच रिश्ते सामान्य कराना ट्रम्प प्रशासन की पहली प्राथमिकता रहा है, और ऐसे में अब डोनाल्ड ट्रम्प बाइडन के आने से पहले-पहले सऊदी अरब पर भी इज़रायल को मान्यता प्रदान करने के दबाव बना रहे हैं।

अपने इस कदम से वे पश्चिमी एशिया में शांति स्थापना को सुनिश्चित करने की मुहिम को अपने अंजाम तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। अगर सऊदी अरब और इज़रायल के कूटनीतिक रिश्ते स्थापित हो जाते हैं तो फिर Abraham Accords को “undo” करना बाइडन प्रशासन के लिए असंभव हो जाएगा। अरब देशों और इज़रायल के एक साथ आने से क्षेत्र में ईरान और तुर्की जैसे देशों पर भी दबाव बढ़ेगा। ऐसे में ईरान भी क्षेत्र में संतुलन को कायम रखने के लिए बाध्य होगा और उसकी “आक्रामकता” पर लगाम लगेगी!

Abraham Accords के तहत अमेरिका पहले ही UAE को F-35 फाइटर जेट्स बेचने की मंजूरी दे चुका है। ऐसे में UAE को सशक्त बनाकर अमेरिका यह सुनिश्चित कर रहा है कि पश्चिमी एशिया में शांति बनी रहे। सऊदी अरब और इज़रायल के संबंध समान्य होने से सबसे ज़्यादा पीड़ा किसी को पहुंचेगी तो वह ईरान और तुर्की जैसे देश ही होंगे। इन दोनों देशों पर ही क्षेत्र की शांति बिगाड़ने के आरोप लगते रहते हैं। ट्रम्प प्रशासन सऊदी अरब और इज़रायल को एक साथ लाकर हमेशा हमेशा के लिए ईरान के खतरे को समाप्त करना चाहते हैं।

यहाँ एक रोचक बात यह है कि अभी Netanyahu, Pompeo और मोहम्मद बिन सलमान के बीच हुई इस मुलाक़ात को किसी भी सरकार ने पुष्ट नहीं किया है। यहाँ तक कि सऊदी अरब ने ऐसी किसी मुलाक़ात से इंकार नहीं किया है। इजरायल और Washington की ओर से भी अभी तक कोई स्पष्टीकरण देखने को नहीं मिला है। स्पष्ट है कि सऊदी अरब की चिंताओं को देखते हुए इस मुलाक़ात को गोपनीय रखा गया है। सऊदी अरब शुरू से ही फिलिस्तीन मामले में “two state solution” की मांग करता आया है, जिसे इज़रायल कभी स्वीकार नहीं करेगा। ऐसे में मुस्लिम देशों की ओर से सऊदी अरब पर दबाव है कि वह two state solution से पहले इज़रायल के वजूद को स्वीकार ना करे। लेकिन हाल ही में हुई इस मुलाक़ात के बाद स्पष्ट हो गया है कि अमेरिका सऊदी अरब-इज़रायल के संबंध सामान्य कराने के लिए उच्च स्तर पर मुहिम चला रहा है। अगर ऐसा संभव हो पाता है तो उनका यह कदम दुनिया में शांति स्थापना की दिशा में सबसे बड़ा कदम माना जाएगा।

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