देश के सबसे बड़े और ऐतिहासिक उद्योग समूह टाटा और सायरस मिस्त्री के बीच का विवाद किसी से भी छिपा नहीं है। दोनों के बीच का मामला कोर्ट तक गया है। ये मामला सुलझने की दिशा में जा रहा है, लेकिन पूरे विवाद के बाद केन्द्र सरकार का बड़ा फायदा होने वाला है। इस पूरे मसले के बाद सरकार के पास बड़ी मात्रा में टैक्स आएगा। पिछले साढ़े चार सालों से टाटा और शापूरजी पालोनजी समूह (एसपी ग्रुप) समूह के बीच की ये कड़वाहट सरकार के लिए राजस्व के तौर एक फायदे का मौका हो सकता है जिसका वो अन्य किसी बड़े प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल कर सकती है।
दरअसल, बिजनेस स्टैंडर्ड्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक टाटा ग्रुप से अलग होने के लिए शापूरजी पालोनजी समूह (एसपी ग्रुप) को कुछ नियमों का पालन करना पड़ेगा, इन्हें परिसंपत्तियों का मूल्यांकन और पूंजीगत कमी, डेविडेंट भुगतान के साथ ही केन्द्र को कैपिटल गेन टैक्स भी देना होगा, और इन सभी भुगतानों से एक बड़ी राशि केन्द्र के पास आएगी और इसीलिए ये कहना जायज़ है कि टाटा-मिस्त्री का ये विवाद सरकार के लिए फायदेमंद हो सकता है।
टाटा एण्ड संस के शेयर्स में मिस्त्री की हिस्सेदारी करीब 18.4 यानी करीब 1 लाख 78 हजार करोड़ रुपए की है, जिसका मुफ्त भंडार करीब 45,545 करोड़ का है। गौरतलब है कि 1 लाख 78 हजार करोड़ का दावा तो केवल मिस्त्री ने ही किया है लेकिन टाटा के भी इस मुद्दे पर अपने अलग दावे हैं।
हालांकि, इस मुद्दे पर दोनों को सामान रूप से स्वीकृति देकर एक साथ मामले से अलग होने की प्रक्रिया को स्वीकार करना होगा, और ये स्थिति केन्द्र सरकार के लिए फायदेमंद साबित होगी। टाटा सर्वोच्च न्यायालय से कह चुके हैं कि वो खुद इन शेयर्स को खरीदने को तैयार हैं लेकिन इस मसले पर भी टाटा संस और एसपी समूह के बीच हिस्सेदारी को लेकर विवाद है। कोर्ट की फाइलिंग में ये मामला 1.5 ट्रिलियन का हैं। ऐसे में ये मामला और पेचीदा होगा कि कौन सी पार्टी सूझबूझ के साथ बाहर निकलने का फैसला लेती है।
इस मामले में एसपी ग्रुप के एग्जिट प्लान के मूल्यांकन पर ऐसा लग रहा है कि दोनों ही पक्षों द्वारा इस विवाद को सुलझाने के लिए सहमति बन जाएगी, लेकिन सबसे बड़ी बात ये भी है कि ये मामला हल होने का बाद भारत सरकार को बड़ी राशि राजस्व कर के रूप में मिलेगी, जो कि पूर्ण रूप से अप्रत्याशित था।