पश्चिमी मीडिया कट्टरपंथी इस्लाम के बजाए इमैनुएल मैक्रों की नीति को बना रही दोषी

धर्म के नाम पर जान लेना भी ऐसी मीडिया के लिए गलत नहीं है!

इन दिनों फ्रांस में राजनीतिक भूचाल आया हुआ है। एक स्कूली शिक्षक सैमुअल पैटी की हत्या के पश्चात फ्रांस की जनता और राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कट्टरपंथी इस्लाम के विरुद्ध जो निर्णायक युद्ध छेड़ा है, उससे कट्टरता को बढ़ावा देने वाले की देशों के हाथ पैर फूल गए हैं और वे फ्रांस की लड़ाई को कुचलने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। अब इसमें पश्चिमी मीडिया के वामपंथी गुट भी हाथ बँटा रहा है।

उदाहरण के लिए यूरोप के चर्चित राजनीतिक पोर्टल पॉलिटिको को ही देख लीजिए। फ्रांस में हो रहे आतंकी हमलों पर एक विश्लेषण में पॉलिटिको ने ये दावा किया कि फ्रांस में एक विशेष प्रकार की कट्टर पंथनिरपेक्षता को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिसमें ईश निन्दा को विशेष रूप से बढ़ावा दिया जा रहा है, और शोषित, पीड़ित अल्पसंख्यकों के पास हिंसक होने के सिवा और कोई मार्ग नहीं बचा है।

https://twitter.com/POLITICOEurope/status/1322484458801553408

लगता है फ्रांस में भी बरखा दत्त ‘सेक्युलर पत्रकारिता’ की शिक्षा देने लगी हैं, क्योंकि इस तरह से कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा किए गए आतंकी हमलों को उचित ठहराना कुछ भारतीय पत्रकारों में ज्यादा प्रचलित रहा है। जिस प्रकार से एक समय कश्मीरी पंडितों के नरसंहार को शोषित अल्पसंख्यकों के इसी बेतुके तर्क से बरखा दत्त ने उचित ठहराने की कोशिश की थी, वैसे ही इस पूरे लेख में स्पष्ट देखा जा सकता है कि किस प्रकार से कट्टरपंथी इस्लाम के विरुद्ध एक भी प्रश्न नहीं उठाया गया है, जिसके कारण अब फ्रांस में कट्टरपंथी इस्लाम के विरुद्ध आक्रोश की लहर उमड़ती दिखाई है।

लेकिन ये तो बस शुरुआत है, क्योंकि वैश्विक मीडिया के कई जाने माने चेहरों ने फ्रांस के वर्तमान रुख के विरुद्ध लेख छापने और फ्रेंच राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के आतंक विरोधी रुख का मज़ाक उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। वाशिंगटन पोस्ट के एक संपादकीय लेख में लेखक ने इमैनुएल मैक्रों के आतंक विरोधी रुख का उपहास उड़ाते हुए कहा कि फ्रेंच मुसलमानों को साथ जोड़ने के बजाए इमैनुएल मैक्रों एक 1400 वर्ष पुराने धर्म को बदलने पर तुले हुए हैं, मानो इस्लाम की रूढ़ियों पर सवाल उठान कोई पाप है। यही विचार लेख के शीर्षक में भी स्पष्ट झलक रहा था – “नस्लवाद से लड़ने के बजाए फ्रांस इस्लाम को ‘बदलने चली है”।

अब ऐसे में भला न्यू यॉर्क टाइम्स कैसे पीछे राहत? अक्सर वामपंथ को बढ़ावा देने और राष्ट्रवाद के विरोध के लिए चर्चा में रहने वाली न्यू यॉर्क टाइम्स पोर्टल पर एक नहीं दो लेख छापे गए, जिसमें कट्टरपंथी इस्लाम की आलोचना तो दूर की बात, उसके बारे में उल्लेख तक नहीं गया। बस किसी भी तरह फ्रांस में हो रहे आतंकी हमले में मुसलमानों को पीड़ित पक्ष के तौर पर दिखाने की लालसा न्यू यॉर्क टाइम्स के लेखों में स्पष्ट दिखाई दी।

इस्लामोफोबिया पर ‘प्रकाश डालते हुए’ न्यू यॉर्क टाइम्स के एक लेख में लिखा था, “आतंकी हमलों के बाद फ्रांस जिस प्रकार से ‘इस्लामिक अलगाववाद’ की आलोचना कर रहा है, उससे अब फ्रांस के मुसलमान यही सवाल पूछ रहे हैं कि क्या कभी उन्हे पूरी तरह से स्वीकार किया जाएगा।” 

लेकिन न्यू यॉर्क टाइम्स उतने पर ही नहीं रुका। उसने फ्रांस पर अपने रुख से इस्लामिक आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाया, जो उनके संपादकीय लेख के शीर्षक में स्पष्ट झलक रहा था, “क्या फ्रांस मुस्लिम आतंकवाद को रोकने के अपने प्रयासों से उसे बढ़ावा नहीं दे रहा है?” 

इस लेख में आप स्पष्ट देख सकते हैं कि किस प्रकार से फ्रांस के आतंक विरोधी रुख को इस पोर्टल के लेखक निम्न दिखाने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन ये वही पोर्टल है, जिसने भारत के मंगलयान मिशन के पहले ही प्रयास में सफल होने पर एक अपमानजनक कार्टून प्रकाशित किया था। ऐसे में इस पोर्टल से नैतिकता की आशा करना चाँद तोड़कर लाने जितना हास्यास्पद ख्याल है।

सच कहें तो वैश्विक मीडिया ने एक सज्जन के शब्दों को अपने कवरेज से पुनः सार्थक किया है, “यदि आप समय रहते नहीं चेते, तो यही अखबार और मीडिया शोषित को शोषण करने वाले के तौर पर चित्रित करेगी और शोषण करने वाले को शोषित के तौर पर चित्रित करेगी।

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