आज जो कुछ मैक्रों बोल रहे हैं वह सावरकर ने दशकों पहले कहा था

सावरकर ने इसकी पुष्टि बहुत पहले ही कर दी थी

सावरकर

मुस्लिमों और ईसाइयों  के पास हिंदुत्व की सारी योग्यताएं हैं, लेकिन जो एक नहीं है वो ये कि वो भारत को अपनी मातृभूमि नहीं समझते हैं। सावरकर ने अपनी किताब “हिन्दुत्व: कौन हिन्दू है” में इससे जुड़ी सारी बातों का जिक्र किया है। फ्रांस के राष्ट्रपति जिन मुद्दों पर लगातार बोल रहे हैं। वास्तव में सावरकर 1923 में ही अपनी उस किताब में ये सब कह चुके हैं। एक वक्त ऐसा भी था जब ये किताब लोगों के लिए एक पवित्र ग्रंथ बन गई थी, जो लोग हिन्दुत्व का समर्थन करते थे वो इसे धार्मिक ग्रंथ तक मानने लगे थे।

सावरकर के अनुसार मुसलमान चाहे जहां भी रहें या कहीं भी पैदा हुए हो, उनकी आस्था हमेशा ही अपने पवित्र स्थान मक्का और मदीना में ही रहती है। इसी तरह  ईसाइयों की आस्था भी रोम में ही रहेगी, चाहे वो दुनिया के किसी भी कोने में हों। सावरकर की हिन्दुत्व की परिभाषा की बात करें तो उसके अनुसार:

आसिन्धु सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारत भूमिकाः।

पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरितीस्मृतः

अर्थात, प्रत्येक व्यक्ति जो सिन्धु से समुद्र तक फैली भारत भूमि को साधिकार अपनी पितृभूमि एवं पुण्यभूमि मानता है, वह हिन्दू है।

सावरकर की ये “हिन्दुत्व: कौन हिन्दू है” किताब सन् 1923 में प्रकाशित हुई थी। इसका मुख्य उद्देश्य सभी समुदायों और धर्म के लोगों को एक छत्र के नीचे लाने का था और इसके जरिए वो लोगों को इस्लामिक कट्टरता फैलाने वाले और ब्रिटिश शासन के खिलाफ खड़ा करना चाहते थे। सावरकर के इस तर्क को देखकर ये कहा जा सकता है कि उन्होंने एक सदी पहले ही मुस्लिमों से जुड़ी समस्याओं को समझ लिया था।

फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने कहा है कि ‘फ्रांस में मुस्लिम लगातार समानांतर समाज बना रहे हैं और यही लोग देश में इस्लामिक आतंकवाद फैला रहे हैं।’ लगातार बढ़ते मामले साबित करते हैं कि वो अभिव्यक्ति की आजादी का हनन कर रहे हैं और विकसित समाज को पीछे ले जाकर नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे हैं।

फ्रांस अब उसी इस्लामिक कट्टरता की समस्या से जूझ रहा है जिससे एक वक्त पहले भारत जूझ रहा था जिसके चलते 1947 में पाकिस्तान बनाना पड़ा था। भारत ने उस वक्त अपना एक बड़ा क्षेत्र खो दिया था जिस पर बांग्लादेश और पाकिस्तान बना और वही अब फ़्रांस में भी हो रहा है। ये इस तरफ भी इशारा करता है कि भारत की तरह ही इस्लामिक अलगाववाद फैलाने वाले ये लोग किसी भी देश का विभाजन कर सकते हैं।

मैक्रों वही बोल रहें हैं जो कि इस मसले पर एक वक्त सावरकर बोल रहे थे। इस मुद्दे पर मैक्रों काम कर सकते हैं जबकि सावरकर इस पर केवल लोगों को खड़ा करने के लिए केवल आह्वान ही कर सकते थे क्योंकि उनके पास इस दिशा में कार्य करने के लिए कोई शक्ति नहीं थी। सावरकर ने अपने स्तर तक जो हो सकता था वो सब किया।

ये देखा गया है कि अमेरिका समेत यूरोप और विश्व के अलग-अलग इलाकों में ये लोग प्रवासी के तौर पर बसते हैं। मुस्लिम इस एजेंडे के तहत अपना एक समानांतर समाज बनाने की कोशिशें करने लगते हैं। इसके बाद वो लोग अपनी नीतियां थोपने लगते हैं। महिलाओं द्वारा छोटे कपड़े पहनने पर ये लोग इसीलिए घृणा कर रहे हैं क्योंकि ये उसे अपने धर्म के अनुसार गलत मानते हैं। ये पूरा रवैया धीरे-धीरे अलगाववाद का रूप ले लेता है।

मुस्लिमों के लिए केवल मक्का मदीना पवित्र जगह है। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसी देश का कानून या संविधान क्या है। वो बस अपने शरीयत के अनुसार ही चलना चाहते हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भारत में इसी के आधार पर चलता है और समान नागरिक संहिता का विरोध करता है। सावरकर आज के तथाकथित बुद्धिजीवियों से इतर एक मूल विचारक थे। उन्होंने स्वतंत्रता से 24 साल पहले ही इस्लामिक अलगाववाद के खतरे को भांप लिया था। फ्रांसीसी राष्ट्रपति अब एक सदी बाद इस बात को समझ पाए हैं।

सावरकर की इस दूरदर्शिता को उस वक्त कांग्रेस नहीं समझ पाई और इसकी भारत ने विभाजन के रूप में एक बड़ी कीमत चुकाई। इसलिए अब मैक्रों के पास मौका है कि वो इस इस्लामिक अलगाववाद के खिलाफ मोर्चा खोलकर फ्रांस को इससे निजात दिला सकें।

 

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