क्रिकेट भारत में एक ऐसे जुनून के साथ देखा जाता है जैसे मानों वह कोई त्यौहार हो। लेकिन क्रिकेट का बदलता स्वरूप न सिर्फ इस खेल की spirit को समाप्त कर रहा है बल्कि टेस्ट मैच के उस रोमांच को भी नगण्य कर दिया है। इसी का नमूना हमें शनिवार ऑस्ट्रेलिया में चल रहे भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच टेस्ट सीरीज के पहले मैच में देखने को मिला। विराट कोहली की कप्तानी में न्यू इंडिया की फेमस बैटिंग लाइन अप ने भारतीय टेस्ट इतिहास में अब तक का सबसे चौंकाने वाला प्रदर्शन किया और भारत ने मोहम्मद शमी के रिटायर्ड हर्ट होने से 9 विकेट पर मात्र 36 रन बनाए। 36 रन पर 9 विकेट! यह सोचने वाली बात है कि जिस भारतीय बैटिंग लाइनअप के सामने विश्व के धुरंधर गेंदबाज भी घबराते थे, कल ऑस्ट्रेलिया के सामने उस टीम ने 9 विकेट पर मात्र 36 रन ही बनाकर एक शर्मनाक रिकॉर्ड बनाया। किसी भी बल्लेबाज ने दहाई तक का आंकड़ा नहीं छुआ और यह भारत के क्रिकेट इतिहास में पहली बार हुआ है।
अगर इस हार की समीक्षा की जाए तो कई कारण नजर आएंगे। ऐसा नहीं है कि इस टीम में प्रतिभा नहीं है, या जीतने का जुनून नहीं है। सच्चाई ये है कि टीम में टेस्ट मैच खेलने का जुनून नहीं है। आज नियम से लेकर मैदान और मानसिकता तक क्रिकेट के छोटे स्वरूप यानि टी 20 के अनुसार ढल चुका है, परंतु यह सभी टीमों के लिए है। अगर सिर्फ भारतीय टीम की बात की जाए तो यहां सबसे बड़ी समस्या खिलाड़ियों की मानसिकता है जिसमें कप्तान और कोच की जुगलबंदी तथा BCCI के लिए पैसे की बारिश करने वाले ‘IPL’ का जुनून चार-चाँद लगा देता है।
आज खिलाड़ी टी20 के सामने टेस्ट की अहमियत और उसके मानदंडों को समझ पाने में असफल दिखाई देते हैं। चौकों-छक्कों के सामने उन्हें हवा में लहराती लाल गेंद को छोड़ देने का धैर्य नहीं दिखाई देता। आज बल्लेबाजों को IPL जैसे टूर्नामेंट में खिलाकर टी20 के लिए तैयार किया जाता है न कि 5 दिनों के खेल को रम्यता के साथ सत्रों में बांट कर खेलने के लिए। ब्रॉड बैट कल्चर और खेल के दौरान क्षेत्ररक्षण के लिए कड़े किए गए नियमों ने खिलाड़ियों के दिमाग में खेल को आनन-फानन में समाप्त करने की आतुरता से भर दिया है। इस तरह से टेस्ट क्रिकेट की आत्मा को समाप्त करने के लिए अगर सबसे अधिक कोई जिम्मेदार है तो वह BCCI ही है, क्योंकि IPL ने भारत से टेस्ट की अहमियत को ही छिन लिया है। पैसा कमाने की लत के कारण सिर्फ BCCI में ही नहीं बल्कि खिलड़ियों के अंदर भी सिर्फ टी20 खेलने का लालच भर चुका है।
आज की पीढ़ी के क्रिकेटरों के पास बीसीसीआई द्वारा प्रदान की जाने वाली शीर्ष श्रेणी की सुविधाएं मिलती है और इसमें कोई संदेह नहीं है कि उन्होंने छोटे फॉर्मेट में खेल के स्तर को कई गुना बढ़ाया है परंतु इसी कारण टेस्ट क्रिकेट की यह हालत हुई है कि पूरी टीम आज 36 रनों पर सिमट गयी।
आज भारत के पास रवि शास्त्री के रूप में एक ऐसा कोच है जो अपने अनुशासन के लिए नहीं, बल्कि अपने अन्य कारणों के लिए अधिक जाने जाते हैं। आज भी टीम संयोजन में वो बात नहीं दिखाई देती है जो सौरव गांगुली की कप्तानी में दिखाई देती थी। बेंच स्ट्रेंथ मजबूत है लेकिन अंतिम 11 खिलाड़ी के चयन में स्थिरता नहीं दिखाई देता है। चाहे वो सलामी जोड़ी हो या निचला मध्यक्रम, अब खिलाड़ियों की भूमिका में पहले जैसी स्पष्टता नजर नहीं आती है और ये सभी कोच और कप्तान की ज़िम्मेदारी होती है। यही कारण है कि जब भारतीय बल्लेबाज एक के बाद एक पवेलियन लौट रहे थे, तब इंटरनेट मीडिया पर क्रिकेट फैन्स रवि शास्त्री को ट्रोल कर रहे थे। उनकी सोती हुई तस्वीर के साथ बड़ी संख्या में क्रिकेट को चाहने वालों ने मांग उठाई कि रवि शास्त्री को कोच पद से हटा दिया जाना चाहिए। भारत के पास राहुल द्रविड़ और अनिल कुंबले जैसे बेहतरीन खिलाड़ी है जो कोच के पद पर भारतीय टेस्ट क्रिकेट का पुनरुद्धार कर सकते हैं।
The only way not to suffer this embarrassment again is to remove this good for nothing coach with someone who is counted as one of the legends of the game…Give this shastri a bottle of wine and just throw him away 🤦🏽♂️#INDvsAUSTest #RaviShastri pic.twitter.com/kCjsq2MJUf
— Kartikey Srivastava (@srivastava234) December 19, 2020
वहीं, कप्तान विराट कोहली जो अपनी भावनाओं को मुखर रूप से मैदान पर प्रदर्शित करते हैं। एक अहम रन चेज के दौरान एक बाउंडरी मिलने पर वे जोश में fist pump करने लगते हैं। आक्रामकता एक निश्चित सीमा में सही है, परंतु विपरीत परिस्थिति में विराट कोहली आवश्यकता से ज़्यादा आक्रामक हो जाते हैं, जो टीम के लिए हानिकारक होता है। खेल के लिए उनका जोश निस्संदेह अच्छा है, पर टीम के कप्तान होने के नाते उन्हे संयम भी बरतना चाहिए।
आज पूरे विश्व से टेस्ट क्रिकेट का महत्व समाप्त हो रहा है लेकिन भारत में यह कुछ अधिक ही जल्दी होता दिखाई दे रहा है। अगर BCCI इसी तरह से खिलाड़ियों को सिर्फ छोटे फॉर्मेट के लिए तैयार करता रहेगा और कोच को कप्तान के अनुसार चुनता रहेगा तो ऐसे ही परिणाम देखने को मिलते रहेंगे।