इन दिनों कंबोडिया काफी सुर्खियों में है, क्योंकि चीन के साथ उसके संबंध कभी नरम कभी गरम वाले मोड में रहते हैं। कभी कंबोडिया यह जताता है कि वही चीन का सच्चा हितैषी है, तो कभी वह यह सिद्ध करने का प्रयास करता है कि वह अपने आत्मसम्मान के साथ कोई समझौता नहीं करेगा। ऐसा ही एक उदाहरण हमें देखने को मिला, जब कंबोडिया ने चीन को स्पष्ट संदेश दिया कि वह उसकी वैक्सीन नहीं स्वीकारेगा।
हाल ही में कम्बोडियाई सरकार ने यह घोषणा की कि वह चीन के वैक्सीन Sinovac के बजाए WHO द्वारा स्वीकृत कोवैक्स गठबंध के अंतर्गत दिए जाने वाले वैक्सीन को स्वीकार है। राष्ट्र को दिए गए सम्बोधन में कंबोडिया के राष्ट्राध्यक्ष हुन सेन ने कहा, “हम लोग फेस मास्क पहनकर वैक्सीन की प्रतीक्षा करने को तैयार हैं, परंतु यदि किसी देश ने हमें वैक्सीन देने की पेशकश की, जो डबल्यूएचओ द्वारा स्वीकृत नहीं है, तो हम उसे कतई नहीं स्वीकारेंगे”।
यहां हुन का इशारा स्पष्ट तौर पर चीन की ओर था, जिसके द्वारा संभावित तौर पर कुछ हफ्तों के अंदर अंदर Sinovac का वितरण किया जाना था। बता दें की दुनिया में इस समय अनेकों वैक्सीन लोगों पर प्रयोग की जा रही हैं, जिसमें प्रमुख हैं रूस द्वारा तैयार की गई Sputnik V, अमेरिका द्वारा तैयार Moderna एवं फ़ाइज़र, जर्मनी द्वारा तैयार बायोएनटेक, ब्रिटेन और भारत द्वारा संयुक्त रूप से तैयार एस्ट्रा ज़ेनेका इत्यादि।
इनमें चीन द्वारा तैयार Sinovac की चर्चा तो दूर, कोई भी देश इसे स्वीकारने तक को तैयार नहीं है। Sinovac को दक्षिण पूर्वी एशिया में वितरित करने की तैयारियां चल रही थीं, विशेषकर फिलीपींस और थाईलैंड जैसे देशों में। परंतु दोनों ही देशों के समक्ष इस वैक्सीन के उपयोग हेतु जिस प्रकार की शर्तें रखी गई, उसे देखते हुए दोनों ही देश इसे खरीदने हेतु शायद ही तैयार होंगे।
चीन की वैक्सीन कितनी कारगर है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं की स्वयं चीनी ही अपनी वैक्सीन का प्रयोग नहीं कर रहे। हाल ही में शंघाई में फोसुन Pharmaceutical ग्रुप बायोएनटेक एवं फ़ाइज़र वैक्सीन के 72 लाख डोज़ 2021 के प्रथम हाफ तक इम्पोर्ट करना चाहता है। इसके लिए फ़ोसुन कई प्लेन अरेंज कर रहा है, जो इन कंपनियों के फैक्टरी से चीन तक डायरेक्ट डिलीवरी कराएगी। वर्तमान डेटा के अनुसार, फ़ोसुन एक महीने में 12 लाख डोज़ इम्पोर्ट कर सकती है।
चीन के वैक्सीन की सफलता पर इसीलिए भी संदेह स्वाभाविक है, क्योंकि इसे अभी तक चीन समर्थक माने जाने वाले विश्व स्वास्थ्य संगठन से भी कोई आधिकारिक स्वीकृति नहीं मिली है। डबल्यूएचओ ने तो अब तक चीन के 5 वैक्सीन को ही उपयोग के योग्य माना है, जबकि उलटे विभिन्न बीमारियों के लिए भारत के 47 वैक्सीन को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वीकृति दी है। मजे की बात तो यह है कि शंघाई में किए गए एक सर्वे के अनुसार स्वयं चीनी लोग चीनी वैक्सीन नहीं लगवाना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें उस पर कतई भरोसा नहीं है, और केवल 10 प्रतिशत कर्मचारी चीनी वैक्सीन को स्वीकार करेंगे।
The #CCP has said it is willing to provide #vaccines to other countries. But a local survey suggests many Chinese people would refuse the #MadeinChina vaccines.
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— China in Focus – NTD (@ChinaInFocusNTD) December 2, 2020
ऐसे में कंबोडिया ने चीनी वैक्सीन की पेशकश को मना करते हुए ये स्पष्ट किया है कि वह अपने देश को चीन की प्रयोगशाला में परिवर्तित नहीं होने देगा। इससे न सिर्फ चीन का कूटनीतिक कद गिरेगा, बल्कि उसी की अर्थव्यवस्था को गहरा नुकसान पहुंचेगा।