भारत की संप्रभुता पर किसी भी प्रकार से हमला बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है, उसने इस बात को कई बार साबित किया है। इसी का नमूना हमे एक बार फिर से देखने को मिला जब कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा भारत के आंतरिक मामलों यानि किसानों के विरोध प्रदर्शन पर की गई टिप्पणी के बाद ही भारत विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कनाडा की अगुवाई वाली एक महत्वपूर्ण बैठक में हिस्सा लेने से मना कर दिया है। यानि एस जयशंकर ने जिस प्रकार पाकिस्तान और भारत विरोधी तत्वों की प्रासंगिकता को समाप्त कर उनकी दुर्दशा की है, अब वे ट्रूडो के साथ भी ठीक वैसा ही करने जा रहे हैं। यानि अगर आप भारत विरोधी हैं, तो भारत के विदेश मंत्रालय की ओर से आपको कोई भाव नहीं मिलने वाला!
इंडिया टुडे टीवी की रिपोर्ट के अनुसार नई दिल्ली ने ओटावा को सूचित किया है कि “शेड्यूलिंग मुद्दों” के कारण एस जयशंकर, कनाडा के विदेश मंत्री Francois-Phillippe Champagne द्वारा आयोजित 7 दिसंबर की बैठक में भाग लेने के लिए उपलब्ध नहीं हैं।”
बता दें कि विदेश मंत्री जयशंकर ने पिछले ही महीने कनाडा के विदेश मंत्री फ्रेंकोइस-फिलिप शैम्पेन की अगुवाई में Ministerial Coordination Group of Covid-19 (MCGC), के वर्चुअल बैठक में भाग लिया था। तब उन्होंने बैठक की तस्वीर के साथ ट्वीट भी किया था। परंतु अब वे इस बैठक में भाग नहीं लेंगे।
Pleased to participate in the Group of Foreign Ministers Meeting to exchange experiences on COVID-related challenges. Thank FM @FP_Champagne of Canada for convening the meeting. pic.twitter.com/5KxSmsFbf3
— Dr. S. Jaishankar (Modi Ka Parivar) (@DrSJaishankar) November 3, 2020
रिपोर्ट के अनुसार कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा किसानों के विरोध प्रदर्शन पर की गई टिप्पणी को भारतीय प्रशासन ने “ill-informed” और “unwarranted” करार दिया था और कहा था कि ऐसे बयानों से भारत और कनाडा के बीच द्विपक्षीय संबंध प्रभावित हो सकता है।
इसी के मद्देनजर शुक्रवार को नई दिल्ली में कनाडाई राजदूत नादिर पटेल को विदेश मंत्रालय ने समन भी किया था और एक कड़ा demarche जारी करते हुए भारत ने कहा था कि पीएम जस्टिन ट्रूडो द्वारा की गई इस तरह की टिप्पणी से दोनों देशों के संबंधों पर “हानिकारक” प्रभाव पड़ सकता है।
भारत के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा था कि भारतीय किसानों से संबंधित मुद्दों पर कनाडा के प्रधानमंत्री, कुछ कैबिनेट मंत्रियों और संसद सदस्यों द्वारा टिप्पणी हमारे आंतरिक मामलों में एक हस्तक्षेप है जो पूरी तरह से अस्वीकार्य है।” बयान में आगे कहा गया था अगर इस तरह के बयान जारी रहते हैं तो भारत और कनाडा के बीच संबंधों पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
अब भारत के विदेश मंत्री ने एक कठोर कदम उठाते हुए कनाडा के विदेश मंत्री की अगुवाई वाले बैठक में ही हिस्सा न लेने का फैसला किया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि कनाडा अगर इसी तरह भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने की कोशिश करेगा तो भारत उसे अहमियत देना बंद कर देगा।
जब से एस जयशंकर ने विदेश मंत्रालय संभाला है तब से विदेश नीति में सकारात्मक आक्रामकता बढ़ी है। उनके आने के बाद एक बड़ा बदलाव यह हुआ है कि अब भारत सरकार ने भारत के खिलाफ एक सोची-समझी रणनीति के तहत एजेंडा चलाने वाले लोगों को पूरी तरह किनारे कर दिया है और ऐसे तत्वों से बातचीत करना ही बंद कर दिया है। एस जयशंकर के आने के बाद अब भारत सरकार ने ही ऐसे लोगों का बॉयकॉट कर दिया है।
उदाहरण के लिए हम पाकिस्तान को ही देख सकते हैं। जयशंकर के नेतृत्व में भारत ने पाकिस्तान को अहमियत देना ही बंद कर दिया, फिर चाहे वह SAARC का प्लैटफ़ार्म हो या फिर द्विपक्षीय बातचीत। विदेश मंत्री बनने के बाद पिछले वर्ष अक्टूबर में जब जयशंकर अमेरिकी दौरे पर गए थे, तो उन्होंने भारत के खिलाफ जहर उगलने वाली मीडिया को पूरी तरह नकार दिया था।उन्होंने भारत विरोधी भारतीय मूल की सांसद प्रमिला जयपाल से मिलने से ही साफ मना कर दिया था।
भारत के विदेश मंत्री ने कनाडा के नेतृत्व में हो रही इस बैठक में भाग न ले कर यह संदेश दे दिया है कि कनाडा का स्थान अब भारत की विदेश नीति में पाकिस्तान के स्तर तक आ पहुंचा है और अगर भारत को कनाडा का अंतराष्ट्रीय स्तर पर बहिष्कार भी करना पड़ा तो भारत पीछे नहीं हटेगा। अगर भारत यही रुख अपनाए रखता है तो यह कनाडा के लिए बड़ा झटका माना जाएगा क्योंकि भारत आज के दौर में उभरती हुई सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और इंडो पैसिफिक में सबसे बड़ी शक्ति। ऐसे में अगर भारत कनाडा का बहिष्कार करता है तो यह कनाडा के लिए अर्थव्यवस्था सहित कूटनीतिक स्तर पर भी घातक साबित होगा।