फिलीपींस के ट्रेन प्रोजेक्ट से चीन बाहर, Debt-Trap नीति ने चीनी कंपनियों को अछूत बना दिया है

क्या आप चीन से हैं? अगर हाँ तो पहली फुर्सत में निकलिए!

चीन

(PC: Mid-Day)

फिलीपींस की सरकार ने अपने महत्वकांक्षी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट ‘Build, Build, Build’ के तहत राजधानी में बन रहे मनीला मेट्रो सबवे परियोजना के लिए 240 ट्रेन-कार का टेंडर एक जापानी कंपनी को दे दिया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इसी प्रोजेक्ट के लिए चीन की कंपनी भी दौड़ में थी और वे जापानी कंपनी की अपेक्षा सस्ते में यह कार्य करने को भी तैयार थी, लेकिन इसके बाद भी फिलीपींस की सरकार ने जापान को निवेश करने की अनुमति दी। स्पष्ट है कि फिलीपींस को चीन की “Debt Trap Policy” का पूर्णतः आभास हो गया है, और इसी कारणवश उसने अपने इस प्रोजेक्ट के लिए चीन को डंप करने का फैसला लिया है। दरअसल, चीन का डेट ट्रैप या कहिए कर्ज़-जाल छोटे देशों की अर्थव्यवस्था पर आक्रमण की तरह देखा जाने लगा है। चीन की नव-औपनिवेशिक नीतियां अब छोटे-बड़े हर देश में उसकी कंपनियों को अछूत बना रही हैं। फिलीपींस का मनीला मेट्रो सबवे प्रोजेक्ट इसका ताजा उदाहरण है।

विशेष रूप से दक्षिण एवं दक्षिण पूर्वी एशिया के छोटे देशों में चीन की नीतियों के प्रति अविश्वास बढ़ गया है। इसका कारण श्रीलंका और लाओस का उदाहरण है। जहाँ एक ओर श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह को चीन द्वारा 99 वर्षों के लिए ‘लीज़’ पर ले लिया गया था तो वहीं लाओस का उदाहरण आसियान देशों के लिए बढ़ते चीनी खतरे का संकेत था। लाओस में बिजली उत्पादन सेक्टर पर चीन के कब्जे ने ही उसके पड़ोसियों को चीन के कर्ज़ जाल के मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने पर मजबूर कर दिया है। इसी का नतीजा है कि फिलीपींस सरकार इस बात की उपेक्षा कर रही है कि उसकी नीतियों का उसके और चीन के रिश्तों पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।

ये तो बस उदाहरण भर हैं। इसी प्रकार मलेशिया ने भी अपने 10 बिलियन डॉलर के प्रोजेक्ट से चीनी कंपनियों को बाहर कर दिया था। इसी प्रकार का उदाहरण इंडोनेशिया में भी देखने को मिला था, जहाँ चीनी कंपनियों को रेल प्रोजेक्ट से बाहर कर दिया गया था। वहीं थाईलैंड की बात करें तो उसने भी अपने ‘क्रा कनाल परियोजना‘ को ठण्डे बस्ते में डाल दिया है, जिसके लिए चीन पिछले कई सालों से lobbying कर रहा था।

चीन के विरुद्ध यह धारणा, कि वह अपने निवेश का इस्तेमाल दूसरे देशों की सामरिक और वैदेशिक नीतियों को प्रभावित करने में करता है, प्रबल हो रही है। पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका के उदाहरण से यह बात स्पष्ट भी होती है कि यह धारणा केवल आशंका नहीं, बल्कि वास्तविकता भी है। हाल ही में बांग्लादेश ने भी चीन के साथ मिलकर अपने इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने के विचार को त्याग दिया। वहीं मालदीव भी अपनी गलतियों को सुधारते हुए भारत और अमेरिका के सहयोग से चीन के चंगुल से बाहर निकलने का प्रयास कर रहा है।

केवल छोटे देश नहीं बल्कि बड़े देश भी इस खतरे से वाकिफ हो रहे हैं और चीनी कंपनियों से दूरी बना रहे हैं। हाल ही में कनाडा ने भी चीन की गोल्ड माइनिंग करने वाली कंपनियों को टेंडर देने से इंकार कर दिया था। चीन अपनी चालबाजियों के कारण ही आज इस स्थिति में पहुंचा है। आज न तो कोई विदेशी कंपनी चीन में निवेश को तैयार है और न कोई देश चीन से निवेश लेने के लिए।

Exit mobile version