भारत के बढ़ते कद से चीन परेशान है, अब वो मोहल्ले की बूढ़ी चाची की तरह शिकायत कर रहा है

चीन की हाताशा की कोई सीमा नहीं है

बहुपक्षीय

भारत के बढ़ते वैश्विक कद के कारण चीन को ऐसा झटका लगा है, कि उसने अब मोहल्ले की बूढ़ी चाची की तरह शिकायत करना शुरू कर दिया है। कोरोना के बाद भारत ने अपनी कुटनीति को और धारदार बनाते हुए वैश्विक मंचो पर अपने महत्व को अब इस कदर बढ़ा लिया है कि कोई भी तंत्र भारत के बिना अधूरा प्रतीत होता है। इसी बात को लेकर चीन की निराशा उसके मुखपत्रों के लेखों से स्पष्ट हो रही है। 17 दिसंबर को ग्लोबल टाइम्स ने एक लेख प्रकाशित करते हुए लिखा कि भारत अपनी वैश्विक महत्वाकांक्षा के लिए बहुपक्षीय तंत्रों के प्रति रवैया बदल रहा है।

ग्लोबल टाइम्स ने अपने लेख में लिखा है, “हिंद महासागर में भारत को अद्वितीय भौगोलिक लाभ प्राप्त हैं”। भारत-चीन के बीच चल रहे सीमा विवाद के बीच चीन का का ये रोना दर्शाता है कि बीजिंग के खिलाफ मोदी सरकार की रणनीति कारगर साबित हुई है। इंस्टिट्यूट ऑफ साउथ एशियन स्टडीज के निदेशक हू शीशेंग (Hu Shisheng) ने इसे लिखा है।

उन्होंने ग्लोबल टाइम्स में लिखा कि, “एक तरफ नई दिल्ली को उम्मीद है कि वह बदलते अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में एक प्रमुख शक्ति बन जाएगी। दूसरी ओर, इसकी बहुपक्षीय कूटनीति पश्चिमोत्तर और सिनोफोबिक बन गई है। भारत उन बहुपक्षीय तंत्रों में कम दिलचस्पी रखता है जहां चीन एक अग्रणी भूमिका निभाता है।“

चीन का अर्थ स्पष्ट है जिस जिस बहुपक्षीय तंत्रो में चीन की मौजूदगी है, भारत उसे अप्रासंगिक बनाने की कोशिश में जुटा है। इसका मतलब यह हुआ है कि चीन अब भारत के बढ़ते महत्व से परेशान हो चुका है और भारत के बिना उनके नेतृत्व वाले बहुपक्षीय तंत्रों की महत्ता घट चुकी है। भारत बस सही दिशा में अपने कदम बढ़ा रहा है जबकि चीन अपनी गुंडई और चालबाजियों के कारण दुनिया भर में अलग-थलग पड़ने लगा है। आज भारत पर दोष मढ़ने वाला चीन शायद यह भूल चुका कि कैसे वह भारत के NSG में शामिल होने का विरोध करता आया है और UN में अपने वीटो का भी इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर चुका है।

ग्लोबल टाइम्स ने आगे लिखा कि, “इसके कई कारण हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह है कि भारत अपनी पहचान बदल रहा है। भारत एक अग्रणी भूमिका निभाना चाहता है। बहुपक्षीय मंच पर, नई दिल्ली धीरे-धीरे संतुलित कूटनीति के अपने नीतियों को छोड़ रही है।“ इस लेख में कहा गया है कि एक अग्रणी शक्ति के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए, नई दिल्ली नहीं चाहता कि चीन किसी भी बहुपक्षीय तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके। भारत इस बहाने से बहुपक्षीय तंत्रों में चीन के एजेंडे को बाधित करना चाहता है जिससे चीन विकासशील देशों के हितों का प्रतिनिधित्व न कर सके।

ग्लोबल टाइम्स ने उदाहरण देते हुए बताया कि, “जाहिर है, भारत बहुपक्षीय तंत्र में चीन के उदय को रोकना चाहता है। ब्रिक्स और SCO में, भारत आंतरिक एकता को बढ़ावा देने का शायद ही कभी प्रयास करता है, लेकिन भीतर से उनके महत्व को खत्म करने की कोशिश करता है।“ चीन की भारत से शिकायत यही खत्म नहीं हुई।

ग्लोबल टाइम्स ने अपनी निराशा दिखाते हुए लिखा कि, “भारत उन सौदों से भी हाथ खींचता है जहां वह एक प्रमुख भूमिका नहीं निभा सकता। उदाहरण के लिए, मोदी प्रशासन ने RCEP से हाथ पीछे खींच लिया। इसके अलावा, भारत विकासशील देशों का नेता बनना चाहता है।“ उसने आगे लिखा कि “भारत ने हिंद महासागर में छोटे पैमाने के बहुपक्षीय सहयोग तंत्र की योजना बना रहा है।“ हालांकि, यह स्वीकृति एक स्पष्ट संकेत है, कि सत्तारूढ़ चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने यह स्वीकार कर लिया है कि भारत हिंद महासागर में “भौगोलिक लाभ” की स्थिति में हैं।

भारत ने कई छोटे बहुपक्षीय मंचों के लिए प्रयास शुरू किया है। उदाहरण के लिए QUAD तथा IORA. हिंद महासागर रिम एसोसिएशन के समूह के तहत, नई दिल्ली अधिक से अधिक देशों को भारतीय नेतृत्व वाली पहल में शामिल होने के साथ लाभ उठाने में सक्षम रही है। वास्तव में, इंडो पैसिफिक पहल से भारत अफ्रीका के पूर्वी तट से अमेरिका के पश्चिमी तट तक भारतीय और प्रशांत महासागरों को जोड़ रहा है, और जैसा कि विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने कहा था, “इंडो पसिफिक आने वाले कल का पूर्वानुमान नहीं है बल्कि बीते हुए कल की वास्तविकता है।” आज भारत की विदेश नीति इतनी मजबूत हो चुकी है अब चीन को भी यह एहसास होने लगा है, और वह अपने मुखपत्रों के माध्यम से भारत की मजबूत स्थिति को स्वीकारने लगा है।

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