नेपाल में अपनी पकड़ के लिए चीन ने जी-जान लगा दी, फिर भी उसे शर्मनाक तरीके से खाली हाथ लौटना पड़ा

अरे रे इतनी बेइज्ज़ती!

नेपाल

PC: DNA India

एक समय था जब नेपाल चीन के लिए भारत पर दबाव बनाने का बड़ा जरिया था, लेकिन अब नेपाल की नीतियों ने यह सिद्ध कर दिया है कि चीन की यह योजना न सिर्फ बकवास थी, बल्कि अब सुपर फ्लॉप भी निकली। जब केपी शर्मा ओली ने नेपाली संसद भंग की, तो चीन ने काफी हाथ पाँव चलाए, लेकिन नेपाल ने स्पष्ट कह दिया – राष्ट्रहित से कोई समझौता नहीं।

अब नेपाली प्रशासन ने संसद को भंग करने के प्रस्ताव को स्वीकृति दी है, जिसके पश्चात अब अप्रैल और मई के मध्य में नए चुनाव होंगे। इससे पूरे दक्षिण एशिया, विशेषकर चीन में तहलका मच गया है। चीन ने नेपाल को मनाने के लिए विशेष दल भी भेजे, लेकिन न तो प्रधानमंत्री ओली और न ही उनके प्रमुख प्रतिद्वंदी एवं पूर्व नेपाली प्रधानमंत्री, पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’, चीन की चिकनी चुपड़ी बातों में फंसना चाहते हैं।

इसके पीछे कई कारण है। पहला तो है नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के दो गुटों में बढ़ रही कलह, जिसके कारण प्रमुख तौर पर पीएम ओली को यह निर्णय लेना पड़ा था। इसके अलावा जिस प्रकार से चीन की दखलंदाज़ी नेपाल में बढ़ रही थी, उसके कारण नेपाली जनता में चीन के विरुद्ध दिन प्रतिदिन आक्रोश बढ़ रहा था। इसके अलावा नेपाली जनता ने राजशाही के समर्थन में कई दिनों से व्यापक प्रदर्शन भी किए हैं, जिसके कारण पीएम ओली और उनकी कैबिनेट को यह निर्णय लेना पड़ा था।

ऐसे में जब चीन का सबसे अहम शिकार उसके हाथ से फिसलने लगे, तो भला चीन कैसे शांत रहेगा? इसलिए चीन ने अपने उच्च दर्जे के अधिकारियों को नेपाल के सभी राजनीतिक दलों से मिलने को भेजा, ताकि आपस में सुलह कराके नेपाली प्रशासन को वर्तमान निर्णय वापिस लेने पर विवश किया जा सके।

इसी विषय पर चीन ने पहले नेपाल में स्थित राजदूत हू यानकी और फिर CCP के उच्चाधिकारियों के जरिए ओली को मनाने का प्रयास किया। परंतु ओली के कानों पर जू तक नहीं रेंगी। उन्होंने उलटे चीन को स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि वह सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई पूरी होने तक अपने कैबिनेट के निर्णय में कोई हस्तक्षेप नहीं करेंगे।

लेकिन बात केवल यहीं पर नहीं रुकी। नेपाल के अन्य राजनीतिज्ञ भी चीन के बढ़ते दखल से काफी क्रुद्ध हैं। आज तक की रिपोर्ट के अंश अनुसार, “नेपाल की आंतरिक राजनीति में चीन की सक्रियता को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं। नेपाल के लेखक कनक मणि दीक्षित ने ट्विटर पर लिखा है कि जब नेपाल के सुप्रीम कोर्ट में पूरे मामले पर सुनवाई चल रही है तो चीनी प्रतिनिधिमंडल क्यों आया? उन्होंने लिखा कि ऐसा प्रतीत होता है कि इस प्रतिनिधिमंडल को प्रचंड ने आमंत्रित किया था”।

लेकिन अब चीन के लिए शायद जल्द ही एक दोहरा झटका भी सामने आने वाला है, क्योंकि पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ भी चीन के साथ अपने आप को नहीं जोड़ना चाहते। उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा, “भारत हमेशा ही नेपाल में लोकतांत्रिक आंदोलन का समर्थन करता आया है। नेपाल में हुए सभी जन आंदोलनों में भी भारत की भूमिका रही है। लेकिन दुनियाभर में खुद को लोकतंत्र का पहरेदार बताने वाले भारत, अमेरिका, यूरोप जैसे देशों की ख़ामोशी आश्चर्यजनक है”।

ऐसे में अब नेपाल ने चीन को एक तरह से स्पष्ट संदेश भेजा है – अपने राष्ट्रहित से समझौता कर आपके साथ कोई संबंध नहीं रखा जा सकता। पीएम ओली से सभी प्रकार की वार्ता असफल होने के बाद अब बाकी दलों से भी कोई विशेष समर्थन नहीं मिलने की आशा है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि चीन के हाथ से अब नेपाल भी फिसल चुका है, और अब वह चाहकर भी उसे वापिस नहीं पा सकता।

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