नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के एक कदम से चीन के भारत विरोधी सभी मंसूबों पर पानी फिर गया है। ओली के इस कदम से जहां एक तरफ संवैधानिक संकट गहराया है तो दूसरी ओर चीन को भी अब नेपाल के कार्यों से डर लगने लगा है। नेपाली पीएम को लंबें समय से चीन अपने इशारों पर चलाने के साथ ही नेपाल की राजनीति और भारत नीति में दखलनदाजी कर रहा था। ऐसे में संसद भंग करके ओली ने चीन के मंसूबों को नाकामयाब करने के साथ ही अपनी पार्टी में भी चीन के पक्षधर कुछ नेताओं को झटका दे दिया है।
पिछले लंबे वक्त से नेपाल में राजनीतिक उथल-पुथल की स्थितियां थीं। उनकी पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल टूट की कगार पर भी थी। ऐसे में उन्होने राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी को संसद भंग करने का प्रस्ताव भेज दिया, औपचारिकता निभाते हुए राष्ट्रपति ने उनके प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करते हुए संसद भंग कर दी है। इस एक कदम के साथ ही ओली ने एक साथ कई बड़े शिकार किए हैं जिसकी चपेट में उनकी पार्टी के कुछ चीन समर्थक नेता समेत चीन भी आ चुका है।
नेपाल के साथ भारत का पिछले 8-10 महीने में बढ़ा विवाद चीन की ही देन है। नेपाल में चीनी राजदूत हूं यांकी ने नेपाल की राजनीति में ज़रूरत से ज़्यादा दखलनदाजी की। ऐसे में नेपाल का भारत के साथ काला पानी जैसे क्षेत्रों में विवाद हुआ, लेकिन पूरे प्रकरण में भारत को कोई खास फर्क न पड़ना और चीनी सैनिकों का नेपाल के कुछ इलाकों में कब्जा होना ओली को खौफ दे गया। नतीजा ये हुआ कि ओली ने भारत के साथ फिर से रिश्तों को बेहतर करना शुरू कर दिया। ओली को अपने हाथ से निकलता देख चीन ने प्रचंड को अपने खेमे में लाने की कोशिश की, लेकिन जब प्रचंड ओली पर ज्यादा दबाव बनाने की कोशिश करने लगे तो पार्टी में फूट की स्थिति आ गई। चीन के कारण हुई फूट की स्थिति अब नेपाल में संसद भंग होने का कारण बन चुकी हैं।
केपी शर्मा ओली का लंबे वक्त से अपनी ही पार्टी में सहयोगी पुष्प कमल दहल प्रचंड समेत कई नेताओं से विवाद था, जिसके चलते उन्हें सरकार चलाने में भी दिक्कत आ रही थी। छ: महीने पहले एक ऐसा ही विवाद हो चुका था जिसे सुलझाने में चीनी राजदूत हूं यांकी की एक बड़ी भूमिका थी। पार्टी के गतिरोध को दूर करने की कोशिश हू यांकी इस बार भी कर रहीं थीं। कुछ दिन पहले ही चीन के कुछ बड़े अधिकारी और कैबिनेट मंत्री भी नेपाली पीएम से मिले थे और इस दौरान कुछ खास बातचीत भी हुई थी।
ओली इस बार भी चीन की मदद से सरकार बचा सकते थे, लेकिन इस बार वो नेपाल के राजनीतिक संकट में किसी भी तरह से चीन का दखल नहीं चाहते थे। इसके चलते ही उन्होंने अपनी पार्टी के नेताओं समेत चीन को झटका देते हुए संसद भंग करने का अप्रत्याशित प्रस्ताव दे दिया। इस एक कदम ने चीन के नेपाल के जरिए भारत को दक्षिण एशिया में घेरने का और नया उपनिवेश बनाने के प्लान को बर्बाद कर दिया है।