कोरोना फैलाने के बाद चीन वैक्सीन बनाने के साथ अगर अधिक ध्यान किसी चीज पर दे रहा है तो वो है अपने यहां बनी वैक्सीन की मार्केटिंग। चीन न सिर्फ वैक्सीन बेचने की बात कर रहा, बल्कि उसे खरीदने के लिए लोन भी देने को तैयार है। आखिर ऐसी क्या बात है कि चीन अपने यहां बनी वैक्सीन को ह्यूमन ट्रायल से पहले अन्य देशों को बेचने की जल्दी में हैं? दरअसल, यह उसके ह्यूमन ट्रायल का हिस्सा है जिससे वह अन्य देशों की जनता पर करना चाहता है।
चीन विदेशों में अपने सिनोवैक वैक्सीन की आक्रामक मार्केटिंग कर रहा है और यहां तक कि उन्हें तुर्की और चिली जैसे देशों में भी सप्लाई करने का टेंडर ले चुका है। ध्यान देने वाली बात यह है कि अप्रमाणित वैक्सीन को बड़े स्तर पर लोगों को देने से महामारी नियंत्रण के प्रयासों को झटका लगने का भी जोखिम बढ़ जायेगा।
अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चेतावनी के बावजूद, चीन में वैक्सीन बनाने का काम ज़ोर शोर से चल रहा है। सिनोफार्मा और सिनोवैक से कम से कम तीन – सभी निष्क्रिय टीकाकरण – क्लीनिकल परीक्षणों के बाहर आपातकालीन उपयोग के लिए अनुमोदित किए गए हैं, और कुछ स्थानीय सरकारों ने कथित तौर पर निवासियों को सिनोवैक वैक्सीन लेने की अनुमति दी है।
खबरों के मुताबिक चीनी नागरिकों में इन वैक्सीन के कई साइड इफेक्ट्स हो रहे हैं लेकिन चीन ने इसके आपातकालीन उपयोग को लेकर हामी भर दी है। चीन के लेखक और कॉलमिस्ट कान चाई ने बताया कि वैक्सीन की पहली डोज में तो कुछ नहीं हुआ लेकिन दूसरी डोज के बाद लोगों को इसके साइड इफेक्ट्स हो रहे हैं। उन्हें खुद कार चलाते वक्त चक्कर आए और उल्टी समेत एलर्जी की परेशानियां हुई हैं। जो ये बात साफ करती है़ कि चीन में बनी ये वैक्सीन लोगों के लिए खतरनाक हो सकती है। केवल यही नहीं हजारों लोगों ने इसको लेकर अपने शिकायतें दर्ज कराई है। ऐसे में चीन में ही इसके आपातकालीन प्रयोग को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं।
इन देशों में हो रहे ट्रायल साइड इफेक्ट्स के बावजूद चीन अपने मित्र देशों में इसके ट्रायल कर रहा है। साउथ चाइना पोस्ट के मुताबिक चीन के अलावा इसका ट्रायल पाकिस्तान, यूएई, पेरू, अर्जेंटीना, बांग्लादेश, ब्राजील, मिस्र, बहरीन, मोरक्को, सऊदी अरब, रूस समेत इंडोनेशिया में भी किया जा रहा है।
गौरतलब है कि इन देशों ने पहले ही चीन से इस वैक्सीन की खरीद का वादा कर लिया था जिसके कारण वो इस वैक्सीन को साइड इफेक्ट्स के बावजूद अपने नागरिकों पर आजमा रहे हैं जो कि एक आश्चर्यचकित करने वाली बात है। लेकिन इसके पीछे की बड़ी वजह चीन के साथ वैक्सीन को लेकर किए कॉन्ट्रैक्ट को माना गया है। इस मामले में विशेषज्ञों का मानना है कि चीन अब कॉन्ट्रैक्ट के कारण अपनी साइड इफेक्ट्स वाली वैक्सीन इन देशों को थोप रहा है जो कि उसकी मानवतावाद के प्रति क्रूर सोच को दिखाता है।
हालांकि, अब कई देश चीन वैक्सीन के लिए अन्य विकल्प की तलाश कर रहे हैं जिसमें से थाईलैंड और फिलीपींस भी हैं जिन्होंने हाल ही में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के सहयोग से एस्ट्राजेनेका द्वारा विकसित वैक्सीन की लाखों खुराक खरीदने के लिए सौदों पर हस्ताक्षर किए हैं। इसी प्रकार, मलेशिया ने अपनी 20 प्रतिशत आबादी के लिए 12.8 मिलियन खुराक प्राप्त करने के लिए अमेरिका स्थित फाइजर के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
वहीं, कई देशों जैसे ब्राज़ील और पेरु ने चीनी वैक्सीन के ट्रायल को रोक दिया है।
चीन द्वारा वैक्सीन का अन्य देशों में मार्केटिंग करने से दो बातें स्पष्ट होती हैं: पहली, यह कि चीन को अपने देशवासियों की कोई चिंता नहीं है और दूसरी यह कि अगर चीन अपनी जनता के ऊपर ही वैक्सीन ट्रायल लेता है और कुछ गड़बड़ी होती है तो लोगों का रोष सड़क पर उतर जाएगा जिससे न सिर्फ हंगामा होगा, बल्कि अगर खबर चीन के बाहर गया तो कोई भी देश चीन से वैक्सीन नहीं खरीदेगा और चीन को फायदा नहीं होगा। हालांकि, अब चीन के मंसूबों का तो सभी को पता चल चुका है ऐसे में अब अन्य देशों को न सिर्फ चीन के वैक्सीन के खिलाफ एक्शन लेना चाहिए, बल्कि चीन के साथ अपने आर्थिक सम्बन्धों को भी समाप्त कर देना चाहिए।