ट्रम्प और मर्केल दोनों के कुर्सी छोड़ने से एर्दोगन की टेंशन बढ़ने वाली है

तुर्की के लिए संकट की घड़ी

तुर्की

20 जनवरी 2021 के बाद White House में 46वें राष्ट्रपति के तौर पर जो बाइडन की एंट्री होना अब लगभग निश्चित हो गया है। इसी के साथ-साथ तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन की चिंताएँ भी बढ़ती जा रही हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कार्यकाल के दौरान एर्दोगन किसी भी प्रकार के अमेरिकी प्रतिबंधों या सख़्त कार्रवाई से बचने में सफ़ल रहे हैं। इसी के साथ-साथ फ्रांस और यूरोप के अन्य देशों से बढ़ते तनाव के बीच तुर्की को हमेशा एंजेला मर्केल के नेतृत्व वाले जर्मनी ने संरक्षण प्रदान किया है।

वर्ष 2021 में मर्केल के साथ-साथ ट्रम्प भी अपना ऑफिस छोड़ने जा रहे हैं, ऐसे में तुर्की पर प्रतिबंध लगने का खतरा अब बढ़ता ही जा रहा है। शायद यही कारण है कि अब एर्दोगन ने एक बयान देकर कहा है कि वे बाइडन के ऑफिस संभालते ही उनके साथ सभी मुद्दों पर चर्चा करने के लिए तैयार हैं।

एर्दोगन ने हाल ही में अपने एक बयान में कहा “बाइडन को एक बार ऑफिस में आने दें। एक बार वो आ जाये तो मैं बैठकर बाइडन के साथ कई मुद्दों पर चर्चा करूंगा। कूटनीति में बातचीत के बाद ही कोई रास्ता निकल पाता है।”

दरअसल, तुर्की पर रूसी मिसाइल डिफेंस सिस्टम S-400 खरीदने के कारण लगातार प्रतिबंधों का खतरा मंडरा रहा है। डोनाल्ड ट्रम्प के अंतर्गत राष्ट्रपति एर्दोगन के साथ बेहद नरमाई के साथ बर्ताव किया गया था। सिर्फ S-400 ही नहीं, जब तुर्की ने सीरिया में घुसकर अमेरिकी “कुर्द साथियों” के खिलाफ आक्रामक अभियान छेड़ा था, तो भी ट्रम्प ने एर्दोगन को हरी झंडी दिखाने का काम किया था।

ट्रम्प के इस फैसले ने तो Democrats के साथ-साथ Republicans को भी हैरत में डाल दिया था। हालांकि, बाइडन अपने एक बयान में तुर्की को क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या बता चुके हैं। ऐसे में अंकारा में अभी से खतरे से घंटी बजना शुरू हो गयी हैं। ड़र बढ़ता जा रहा है कि बाइडन आते ही कहीं तुर्की के कान खींचना ना शुरू कर दें। एर्दोगन का बातचीत का प्रस्ताव उनके इसी ड़र को दिखाता है।

तुर्की के लिए समस्या सिर्फ बाइडन ही नहीं हैं, बल्कि जल्द ही बर्लिन से भी उनके लिए बुरी खबर आ सकती है। दरअसल, तुर्की के बेहद नजदीक माने जाने वाली चांसलर एंगला मर्केल वर्ष 2021 में अपने पद को छोड़ने वाली हैं। अक्टूबर 2018 में उन्होंने इस बात की घोषणा की थी। ऐसे में यूरोप के कई बड़े देशों और तुर्की के बीच तनाव के दौरान अगर मर्केल अपना पद छोड़ती हैं, तो इसका अर्थ यह होगा कि तुर्की पर यूरोप के प्रतिबंधों का खतरा कई गुना बढ़ जाएगा।

एर्दोगन ने फ्रांस के राष्ट्रपति Emmanuel Macron के साथ व्यक्तिगत तौर पर पंगा लिया हुआ है। वे Macron को मानसिक तौर पर दिवालिया घोषित करने के साथ-साथ उन्हें फ्रांस के लिए खतरनाक सिद्ध कर चुके हैं। इतना ही नहीं, तुर्की भू-मध्य सागर के विवादित जल-सीमा का बार-बार उल्लंघन कर अपने Oruç Reis रिसर्च वेस्सेल को भेजता रहा है, जिसके कारण साइप्रस और ग्रीस जैसे EU के सदस्य देशों के साथ भी उसका विवाद बढ़ता ही जा रहा है।

यही कारण है कि बार-बार ग्रीस और साइप्रस EU से तुर्की पर प्रतिबंध लगाने की गुहार करते हैं, लेकिन हर बार उन्हें बर्लिन से निराशा ही हाथ लगती है। पिछले दिनों ही जर्मन अखबार Welt से बातचीत के दौरान ग्रीक विदेश मंत्री Nikos Dendias ने जर्मनी पर अपनी भड़ास निकाली।

Nikos Dendias ने इंटरव्यू में कहा “जर्मनी की तुर्की नीति विफल साबित हुई है। जर्मनी का सारा ध्यान तुर्की को लुभाने पर है। वह तुर्की को सबमरीन बेचकर उसे हमारे खिलाफ मजबूत बना रहा है। हम जर्मनी से अपील करते हैं कि वह तुरंत तुर्की को दी जा रही 6 सबमरीन पर रोक लगाए। यह हमारे दुश्मनों को मजबूत कर रहा है। तुर्की को ऐसा कुछ भी मत दें, जो उसे भू-मध्य सागर में एक बड़ी और ज़्यादा आक्रामक ताक़त बना दे।”

चांसलर एंजेला मर्केल तुर्की को NATO साझेदार के तौर पर देखती हैं, जिसके कारण वे अपने साथी EU सदस्यों से तुर्की पर एक “संतुलित नीति” अपनाने की गुजारिश भी कर चुकी हैं। इसी वर्ष सितंबर में दिये गए उनके एक बयान के मुताबिक “तुर्की NATO का सदस्य देश है। तुर्की ने जिस प्रकार अपने यहाँ 40 लाख सीरियन लोगों को शरण दी हुई है, वह प्रशंसनीय है।”

अपने इसी बयान में उन्होंने इस बात के संकेत भी दिये थे कि वे तुर्की पर किसी भी प्रकार के प्रतिबंध लगाने के पक्ष में नहीं हैं।
लेकिन, एर्दोगन के लिए बुरी खबर यह है कि ट्रम्प की तरह ही मर्केल भी अगले वर्ष ही अपना पद छोड़ने जा रही हैं। इसके बाद फ्रांस के राष्ट्रपति Macron शायद ही तुर्की को बचने का कोई दूसरा मौका देंगे! मर्केल के जाने के बाद फ्रांस के साथ-साथ साइप्रस और ग्रीस भी तुर्की के खिलाफ और ज़्यादा आक्रामक दबाव बनाएँगे, जिसे बाइडन प्रशासन से भी भरपूर समर्थन मिलेगा।

कुल मिलाकर तुर्की और एर्दोगन के लिए आने वाला साल कई दुखभरी खबरें लेकर आ सकता है। इसीलिए एर्दोगन अभी से पहले बाइडन के साथ समझौता करने की बात करने लगे हैं।

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