संसद द्वारा पारित कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली बॉर्डर पर बैठे पंजाब-हरियाणा के किसानों का सब्र अब जवाब देने लगा है। किसानों के नाम पर बने संगठन और खुद को बुद्धिजीवी किसान नेता मानने स्वराज अभियान के योगेंद्र यादव सरीखे नेताओं द्वारा बुलाए गए भारत बंद की विफलता के बाद किसान थक गए हैं। ये वक़्त रबी की फसल के लिए बेहद अहम है किसान खेतों में लौटना चाहते हैं। ऐसे में किसान संगठन राजनीतिक मंशाओं में किसानों को भ्रमित कर रहे हैं। कृषि कानूनों में संशोधन की चर्चा के बाद आम किसान तो सरकार के प्रति नरम पड़ चुके हैं लेकिन किसान नेताओं ने इसे आर-पार की लड़ाई बना दिया है जो ज्यादा दिन तक नहीं चलेगी क्योंकि इन लोगों का रवैया ठीक उसी तरह का जिस तरह का शाहीन बाग के देश विरोधी आंदोलनकारियों का था।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट बताती है कि भारत बंद का असर कुछ खास नहीं रहा, महज 4 घंटे के बंद में भी राजनीतिक गतिविधियों को छोड़ दें तो उत्तर प्रदेश समेत किसी भी बीजेपी शासित राज्य में इसका प्रभाव नहीं रहा। योगेंद्र यादव जिन्होंने भारत बंद का बिगुल सबसे पहले फूंका था, उन्हें इस विफलता से झटका लगा है क्योंकि इसके जरिए वो अपने लिए हरियाणा में राजनीतिक भविष्य देख रहे थे। कांग्रेस और विपक्षी पार्टियों द्वारा शासित कुछ राज्यों में घटनाएं तो हुईं, लेकिन वो भी राजनीतिक दलों की करामात थी।
इसके इतर लंबे वक्त से ठंड में बैठे किसानों का सब्र भी अब टूट रहा है। किसानों के भी कई ग्रुप बन गए हैं जो घर लौटने की कोशिश में हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जिन 14 किसान नेताओं से मुलाकात की थी, वो भी काफी नरम रुख वाले ही थे। आम किसान अब इस आंदोलन को खत्म करके जाना चाहता है क्योंकि ये रबी की फसल का अहम वक्त है। देश के अन्य किसान अपने खेतों में पसीना बहा रहे हैं। किसानों को मोदी सरकार के कृषि कानूनों के संशोधन पर भी भरोसा है, लेकिन कुछ किसान संगठनों ने इस किसान आंदोलन को सरकार के खिलाफ नाक की लड़ाई बना लिया है जिसमें सीधा नुकसान आम और गरीब किसानों को हो रहा है।
किसानों के आंदोलन को ऐसे ही लोगों ने शुरू से हाईजैक कर रखा है, जो कि शाहीन बाग के आंदोलनकारियों से प्रेरित हैं। पहले ही ये आंदोलन कांग्रेस की पंजाब ईकाई की देन माना जा रहा था, जिसने पूरे पंजाब-हरियाणा में किसानों के बीच भ्रम फैलाया। नतीजा ये कि दिल्ली की सीमाओं पर अराजकता फैल गई। अब जब किसानों की मांगों को लेकर मोदी सरकार ने संशोधन की बात कही है तो इन नेताओं की मंशाओं पर पानी फिरने लगा और इसीलिए ये लोग कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग पर अड़े हुए हैं जो कि अनैतिक और राजनीतिक मंशाओं को दर्शाता है।
देश का आम किसान इस वक्त दिल्ली की सड़कों से इतर अपने खेत में काम करना चाहता है लेकिन चंद किसान संगठनों ने इन्हें भ्रम फैलाकर रोक रखा है। किसान ज़्यादा दिन तक इनकी बेबुनियाद बातों को तवज्जो नहीं देने वाले हैं। ऐसे में इस किसान आंदोलन में एक वक्त ऐसा भी आएगा जब किसानों की उपस्थिति की जगह चंद राजनीतिक दल और उनके द्वारा बनाए गए किसान संगठन ही मौजूद होंगे, जिन्हें सरकार भाव तक नहीं देगी।