‘कृषि कानूनों को रद्द किया तो हम विरोध करेंगे’, देश के अन्य हिस्सों के किसानों ने सरकार को दी धमकी

असली किसान तो अब आए हैं, नक़ली वालों की ख़ैर नहीं

किसानों

एक तरफ जहां पंजाब-हरियाणा के कुछ किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर नए कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन के नाम अराजकता फैला रखी है। कुछ विपक्ष समर्थित किसान यूनियनों ने इन कानूनों के प्रति नकारात्मक माहौल बना दिया है, लेकिन दूसरी ओर अब इस मुद्दे पर तगड़ी प्रतिक्रियाएं भी सामने आने लगी हैं। कृषि बिलों के समर्थन में महाराष्ट्र, हरियाणा और उत्तराखंड के किसानों का समूह खड़ा हो गया है। इन्होंने दिल्ली में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात कर बिल पर अपनी खुशी जाहिर की है। ये किसान चाहते हैं कि किसी भी कीमत पर मोदी सरकार कुछ अराजक तत्वों के दबाव में न आए, और कृषि कानूनों को रद्द करने के विषय में तो सोचे भी मत, वरना वो लोग खुद ही विरोध प्रदर्शन करने लगेंगे।

देश की संसद द्वारा पारित कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब-हरियाणा के किसानों में भ्रम की हवा चलाने के बाद विपक्षी पार्टियों ने पूरे देश में दिल्ली की सीमाओं जैसी ही अराजकता फैलाने की ठान ली थी, लेकिन अब ये असंभव हो गया है क्योंकि एक दूसरा धड़ा इन कानूनों के समर्थन में उतर गया है। हरियाणा के कई कृषि संगठनों के नेता और स्वतंत्रत किसान कानूनों के समर्थन में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मिल चुके हैं। यही नहीं, अब इस मुद्दे पर उत्तराखंड के किसान भी सामने आए हैं। उन्होंने साफ कहा है कि सरकार किसानों के हित के नए कानूनों के मुद्दे पर दबाव में न आए, उसे देश के अन्य किसानों का समर्थन प्राप्त है।

किसानों से मुलाकात के बाद पत्रकार वार्ता में नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा, आज उत्तराखंड के किसानों ने कृषि कानूनों को समर्थन देते हुए मुझसे मुलाकात की है। मैं उन किसानों को धन्यवाद देना चाहता हूं जिन्होंने कानूनों को समझा, अपने विचार व्यक्त किए और इसका समर्थन किया है।” किसानों ने सरकार से किसी के भी दबाव में न आने की अपील की है। हरियाणा के किसानों ने तो ताल ठोकते हुए यहां तक कह दिया है कि सरकार आंदोलनकारी किसानों की मांग के अनुसार कानून में सुधार करना चाहे तो उसका स्वागत है, लेकिन अगर कानून निरस्त किए गए तो वो इसके खिलाफ आंदोलन करेंगे।

यही नहीं, इस कानून के संसद में पारित होने के बाद काफी हो-हल्ला हुआ था। उस दौरान महाराष्ट्र में भी इस कानून को लेकर एक तरफ जहां कुछ राजनीतिक बयानबाजी हो रही थी तो महाराष्ट्र के किसानों ने साफ कर दिया था कि ये नए कृषि कानून किसानों के हित में है अगर सरकार ने इन्हें किसी के आंदोलन या प्रदर्शन के दबाव में रद्द किया तो फिर वे लोग आंदोलन पर उतर जाएंगे। महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी सरकार ने ऐलान किया था कि ये कानून प्रभावी नहीं होगा, तो भी शेतकारी संगठन ने उद्धव सरकार के खिलाफ आंदोलन की बात कही थी।

इसके अलावा उत्तर प्रदेश के किसानों को लेकर भी भ्रम फैलाया जा रहा है कि वे भी इस नए कानून से नाराज हैं, पर ये हक़ीक़त नहीं है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ किसानों को राजनीतिक साज़िश का शिकार बनाया जा रहा है। इसके अलावा पूरे प्रदेश के किसान आंदोलन की बजाए अपने खेतों में खुशी-खुशी नई फ़सल की तैयारियां कर रहे हैं जो कि कुछ राजनीतिक दलों को अब बहुत ज्यादा चुभ रहा है, क्योंकि उत्तर प्रदेश को राजनीतिक पार्टियों ने हमेशा ही एक प्रयोगशाला के रूप में इस्तेमाल किया है।

वाद- विवाद का ये सारा प्रकरण साबित करता है कि कुछ राजनीतिक भ्रम का शिकार हुए पंजाब-हरियाणा के किसानों के आंदोलन से इतर पूरे देश का किसान इस कानून के लागू होने का जश्न मना रहा है, और सरकार को अराजकत तत्वों के दबाव में आकर कानून को रद्द न करने की चुनौती दे रहा है क्योंकि ये कानून उनके खेतों से होते हुए उनके जीवन में खुशियां लाने वाला है।

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