विश्व की राजनीति के लिए वर्ष 2020 एक निर्णायक मोड़ माना जाएगा। एक तरफ जहां चीन दुनिया भर से अलग थलग पड़ा है तो वहीं QUAD की सक्रियता कई गुना बढ़ी। अगर इस वर्ष असफल देशों को देखा जाए तो पाकिस्तान के बाद तुर्की का नंबर आता है। 2020 की सबसे बड़ी असफलता की कहानी इसी इस्लामिक देश की रही है,वह न तो इस्लामिक देशों का नेता बन पाया और न ही अपनी अर्थव्यवस्था सुधार पाया।
अब आर्थिक खाईं के मुहाने पर खड़े इस देश ने अपने पूर्व पश्चिमी सहयोगियों के संबंध में अपना स्वर बदल दिया है। अब, सब कुछ खो जाने के साथ, एर्दोगन अपनी मीडिया के माध्यम से अज़रबैजान को यह सुझाव दे रहे हैं कि वह नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र में रूसी सेना को बाहर निकालने की रणनीति बनाना शुरू कर दे। यह कुछ और नहीं बल्कि तुर्की की निराशा है। वह उस क्षेत्र में प्रभाव हासिल करने की योजना पर काम कर रहा था लेकिन वह रूस के मास्टर स्ट्रोक के कारण विफल हो गई और पुतिन ने अपनी सेना भेज दी।
एर्दोगन इतनी मेहनत करने के बावजूद भी हार गए हैं इसी कारण अब वे और उनके उनके दरबारी नैतिक जीत दिखा रहे हैं। यही वजह है कि उनके मीडिया आउटलेट इस तरह के नैरेटिव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। तुर्की की सरकारी मीडिया हाउस टीआरटी वर्ल्ड ने इसे तुर्की के लिए एक जीत के रूप में उल्लेख तक कर दिया।
उनके अनुसार Southern Caucasus में शक्ति का संतुलन मास्को से दूर हो कर अब अंकारा की ओर मुड़ गया है। बता दें की कई दिनों के युद्ध के बाद रूस ने दोनों पक्षों यानि आर्मेनिया और अजरबैजान को शांत कर समझौता के लिए राजी कर लिया था और फिर विवादित क्षेत्र में अपनी शांति सेना भेज कर तुर्की को किसी भी प्रकार से इस क्षेत्र में प्रभाव हासिल करने मौका नहीं दिया।
अर्मेनिया और अजरबैजान के बीच शांति समझौते के अनुसार, मास्को ने 2000 सैनिकों को भेजा है, लेकिन अतिरिक्त सैन्य उपकरणों की आपूर्ति जैसे कुछ मुद्दों पर रूस ने अपने अनुसार फैसला किया था। जमीन पर सैनिकों के साथ सैन्य उपकरणों की मौजूदगी का मतलब है कि रूस की इस क्षेत्र को जल्द छोड़ने की कोई योजना नहीं है। अगर हम इस तस्वीर को मॉस्को की तुर्की के प्रभाव को समाप्त करने की योजना की पृष्ठभूमि के तौर पर देखते हैं, तो यह बिल्कुल वास्तविक लगता है।
TFI ने पहले ही अपनी रिपोर्ट में यह बात कही थी कि रूसी सेना का नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र में मौजूदगी पुतिन का एर्दोगन के खिलाफ एक मास्टर स्ट्रोक है। घातक हथियारों के साथ रूसी सैनिकों की उपस्थिति किसी भी तुर्की और अजरबैजान की सेना को तहस नहस करने के लिए काफी है। यानि देखा जाए तो पुतिन ने Southern Caucasus में भूराजनीतिक शतरंज की विसाद में एर्दोगन को सीधा चेकमेट कर दिया है।
अब तुर्की के पास कोई अन्य तरीका या अवसर नहीं है जिससे वह Southern Caucasus में रूस के प्रभाव को कम करने की कोशिश कर सके। इसी कारण अब तुर्की लगातार नागोर्नो-काराबाख में उनकी उपस्थिति के लिए रूसियों की आलोचना कर रहा है और अजरबैजान के लोगों को भड़काने की कोशिश कर रहा है। इस वर्ष कई हार में से यह एक और हार थी। इससे पहले ग्रीस के साथ हुए तनाव में फ्रांस ने तुर्की को नानी याद दिला दी थी। एर्दोगन की सरकार अपने नागरिकों को किसी भी प्रकार से सकारात्मक खबर देने में विफल रही है।
अब लगता है तुर्की दूसरा पाकिस्तान बनने की राह पर है जो बालाकोट जैसे हमलों के बाद भी अपनी जीत के दावे कर रहा था। एर्दोगन भी उसी तरह रूस से मात के बावजूद रूस के खिलाफ एजेंडा चला कर अपनी निराशा को जीत दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।