बाल ठाकरे के अखबार से लेकर शरद पवार की PR मशीन तक- “सामना” की यात्रा बेहद दुखदायी रही है

“सामना” का सच से सामना

सामना

‘सामना’ अखबार शुरू से ही शिवसेना का मुखपत्र कहा जाता रहा है। यह शिवसेना की नीतियों और विचारों का प्रसार करता रहा है। हालांकि, अब लगता है कि इसे NCP प्रमुख शरद पवार ने हाईजैक कर लिया है। महाराष्ट्र में एनसीपी प्रमुख की मदद से शिवसेना को सत्ता क्या मिल गई, शिवसेना का पूरा तंत्र अब शरद पवार के चरणों मे लोटने लगा है। शिवसेना का मुखपत्र ‘सामना’ अब हर दिन शरद पवार की तारीफों के पुल बांधता रहता है। यही सामना अब शरद पवार को यूपीए अध्यक्ष पद दिलाने की कोशिशें करने लगा है, जो कि शिवसेना की चाटुकारिता के स्तर को परिभाषित करता है और यह भी बताता है कि अब “सामना” शरद पवार के प्रवक्ता के रूप में काम कर रहा है।

शिवसेना के मुखपत्र सामना में लिखा गया है कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध करने में अक्षम हैं इसलिए यूपीए अध्यक्ष की कुर्सी शरद पवार को दी जानी चाहिए। किसानों के आंदोलन का ज़िक्र करते हुए कहा गया, “प्रियंका गांधी को दिल्ली की सड़क पर हिरासत में लिया गया, राहुल गांधी का मजाक उड़ाया गया, यहां महाराष्ट्र में सरकार को काम करने से रोका जा रहा है, यह पूरी तरह लोकतंत्र के खिलाफ है।  कमजोर विपक्ष के कारण सरकार किसानों को लेकर बेफ़िक्र है।”

शिवसेना का मानना है कि किसानों के आंदोलन को समर्थन और सरकार के विरोध को लेकर विपक्ष काफी हद तक कमजोर साबित हुआ है। विपक्ष में केवल शरद पवार ने किसानों के समर्थन में सबसे मुखर आवाज उठाई है। सामना में कहा गया कि यूपीए गांधी परिवार के अंतर्गत काम करते हुए एक ‘एनजीओ’ बनकर रह गया है। इसलिए इसकी कमान अब शरद पवार के हाथों में होनी चाहिए क्योंकि कृषि कानूनों के मुद्दे पर उन्होंने सबसे मुखर तरीके से मोदी सरकार का विरोध किया है। शिवसेना का कहना है कि सभी विपक्षी पार्टियों को शरद पवार एक साथ लेकर चल सकते हैं। इसलिए वक्त आ गया है कि यूपीए की कमान शरद पवार के हाथों में दी जाए।

खास बात यह है कि इस दौर में शिवसेना का मुखपत्र सामना शरद पवार की तारीफों और उनकी बातों को कवर करने में ज्यादा तवज्जो दिखा रहा है। हाल ही में सामना के एग्जीक्यूटिव एडिटर और राज्यसभा सांसद संजय राउत ने शरद पवार का सामना के लिए इंटरव्यू लिया था जो की ऐतिहासिक था; क्योंकि सामना के 33 साल के इतिहास में कभी भी किसी भी गैर-शिवसेना नेता का इंटरव्यू प्रकाशित नहीं हुआ है। शरद पवार ने भी इसका भली-भांति प्रयोग किया और मोदी सरकार समेत देवेंद्र फडणवीस पर जमकर हमला बोला था।

शरद पवार को यूपीए का अध्यक्ष बनाने में शिवसेना कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी ले रही है। शरद पवार ने ऐसी किसी भी बात को खारिज कर दिया था जबकि शिवसेना नेता संजय राउत फिर भी उनको यूपीए अध्यक्ष बनाने के लिए उतावले थे; जो दिखाता है कि असल में शिवसेना शरद पवार की मदद से महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे सीएम बनावाने के बाद शरद पवार की ग़ुलामत करने लगी है। शिवसेना का मुखपत्र एक अखबार कम बल्कि शरद पवार का राष्ट्रीय प्रवक्ता ज्यादा बन गया है क्योंकि इसमें शरद पवार की तारीफों के पुल के अलावा और कुछ भी नहीं होता है,और इसके जरिए शरद पवार अपना प्रचार प्रसार करवा रहे हैं।

यह इसलिए भी दुखद है कि क्योंकि यह वही सामना है जिसे बाल ठाकरे ने अपने 63वें जन्मदिन के मौके पर 23 जनवरी 1989 को शुरू किया था। सामना को कुछ लोग “पेपर टाइगर” भी कहते हैं, क्योंकि सामना अपने लेखों से शिवसेना के विरोधियों की धज्जियां उड़ाने का काम करता था। हालांकि, आज इसकी संपादकीय नीति को शरद पवार ने अपने हाथ में ले लिया है। सामना का यह सफ़र वाकई दुख भरा है।

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