चीन के हाथों से बेलारूस छीनने के बाद अब रूस बेलारूस को अपनी ओर आकर्षित करने की दिशा में एक अहम कदम बढ़ा चुका है। बेलारूस और रूस के उच्चाधिकारियों ने अभी हाल ही में एक वर्चुअल बैठक की है, जहां दोनों का प्रमुख उद्देश्य था दोनों देशों के बीच के संबंध राजनीतिक रूप से और मजबूत करना, और बेलारूस को चीन की गिरफ्त से दूर रखना।
इससे क्या होगा? दोनों के बीच राजनीतिक संबंध और प्रगाढ़ होने से बेलारूस पर चीन का कम, और रूस का प्रभाव ज्यादा होगा। इससे पहले राजनैतिक समरसता कठिन थी, क्योंकि बेलारूस के राष्ट्राध्यक्ष अलेक्जेंडर लुकाशेंको रूस से दूरी बनाए रखना चाहते थे। लेकिन पिछले कुछ दिनों से बेलारूस में जो राजनैतिक गहमागहमी चल रही है, उससे अब समीकरण बहुत हद तक बदल चुके हैं, और लुकाशेंको पहले जितने शक्तिशाली नहीं रह पाए हैं।
इस समस्या की जड़ें 1999 के एक समझौते में पाई जा सकती है, जिसमें सोवियत संघ से पहले जुड़े ये दोनों देश एक दूसरे के साथ परस्पर संबंधों को मजबूत बनाना चाहते थे, लेकिन इस समझौते पर 2018 तक अमल नहीं किया जा सका। परंतु 2019 में एक अहम निर्णय में व्लादिमिर पुतिन ने ये घोषणा की कि मिंस्क [बेलारूस की राजधानी] को रूसी बाजार में प्रवेश के साथ डिसकाउन्ट भी मिलेगा।
इसी के संबंध में पिछले वर्षों में काफी बातचीत भी हुई। परंतु लुकाशेंको पुतिन की बातों को मानने को ही तैयार नहीं थे। जनाब के अनुसार, “कुछ साल पहले मैंने रूस के राष्ट्राध्यक्ष को बोल दिया था कि बेलारूस में कोई भी इसे नहीं स्वीकारेगा। अगर मैंने स्वीकार भी लिया, तो एक वर्ष में बेलारूस के निवासी मुझे सत्ता से निकाल देंगे”।
इतना ही नहीं, मॉस्को ने मिंस्क पर दबाव बढ़ाने के लिए उसको दिए जाने वाले 600 मिलियन डॉलर के कर्ज पर भी रोक लगाई। लेकिन अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारते हुए लुकाशेंको ने चीन डेवलपमेंट बैंक से 500 मिलियन डॉलर का कर्ज लिया। हद तो तब हो गई जब बेलारूस के वित्त मंत्री मक्सीम यरमालोविच ने कहा, “हम रूसी महासंघ द्वारा दिए गए कर्ज को नहीं स्वीकारते हैं और न ही हम इस विषय पर कोई बातचीत करना चाहते हैं। न ही हमने रूस से वित्तीय सहायता की मांग है और न ही हम लेंगे”।
चीन धीरे-धीरे बेलारूस पर अपना प्रभाव बढ़ा रहा था, जिसमें यूरोपीय संघ पूरा-पूरा साथ दे रहा था। जब लुकाशेंको के अत्याचार बढ़ने लगे, तब भी यूरोपीय संघ ने आँखें मूँद लिए। परंतु पुतिन के लिए 2020 मानो किसी वरदान से कम नहीं था। वुहान वायरस की महामारी ने बेलारूस की अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचाया। इसके अलावा लुकाशेंको ने एक बार फिर चुनाव जीता, परंतु इस बार उनकी शक्तियां पहले से काफी कम हो चुकी थीं। इसके अलावा उन्हें लोगों का जनसमर्थन भी प्राप्त नहीं है।
ऐसे में लुकाशेंको के पास पुतिन की शरण लेने के अलावा कोई चारा नहीं बच, ऐसे में पुतिन ने न केवल लुकाशेंको विरोधी प्रदर्शनों पर लगाम लगाने में बेलारूसी राष्ट्राध्यक्ष की सहायता की, अपितु उन्हें रूस के साथ अपने राजनीतिक संबंधों के बारे में भी याद दिलाया। अब मरता क्या न करता, बेलारूस के पास रूस से साझेदारी करने के अलावा और कोई चार ही नहीं है।