देश की राजनीति को लेकर कहा जाता है कि अगर कोई फैसला पूरब में होता है तो उसका असर पश्चिम में भी दिखाता है। कुछ ऐसी ही स्थिति ग्रेटर हैदराबाद महानगरपालिका के चुनावों की भी है, जिसमें बीजेपी का प्रदर्शन औसत से बेहतरीन रहा है जिसके चलते बीजेपी राज्य की टीआरएस और एआईएमआईएम जैसी पार्टियों के लिए मुसीबत का सबब बन गई है। इसका असर अब मुंबई के आगामी बीएमसी चुनावों में भी देखने को मिलेगा, जिसमें शिवसेना का किला अभी तक तो मजबूत था लेकिन अब बीजेपी उस क़िले को नेस्तनाबूद करने की मंशा से काम करेगी।
हैदराबाद महानगरपालिका जहां बीजेपी ने 2016 में केवल 4 सीटें जीतीं थीं लेकिन आज स्थिति ये है कि 2020 के GHMC में बीजेपी ने 30 से ज्यादा सीटों पर अपनी बढ़त बना ली है। बीजेपी यहां मुख्य पार्टियों की रेस में आ गई है। पार्टी की इस सफ़लता के पीछे बीजेपी के चाणक्य और गृहमंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बीजेपी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा की मेहनत है जिन्होंने हैदराबाद के इन चुनावों में अपनी ताकत झोंक दी थी, और परिणाम सकारात्मक ही आए हैं।
ऐसे में बीजेपी को लेकर जिन लोगों ने हवा उड़ाई थी कि बीजेपी बिना किसी गठबंधन हैदराबाद या पूरे तेलंगाना में कोई खास कमाल नहीं कर सकती, उनके मुंह अब सिल गए हैं। हैदराबाद के इन चुनावों की तर्ज पर ही अब बीजेपी देश की सबसे बड़ी धन-धान्य वाली महानगरपालिका यानी बीएमसी पर अपनी सत्ता स्थापित करने की कोशिश करेगी। फिलहाल बीएमसी की सत्ता पर काबिज़ शिवसेना के लिए ये अब तक का सबसे मुश्किल समय होने वाला है क्योंकि पहली बार शिवसेना को बिना किसी गठबंधन बीएमसी का चुनाव लड़ना पड़ेगा।
बीएमसी चुनावों को लेकर पहले ही सामने आ चुका है कि महाविकास आघाड़ी बिखरी नजर आएगी। शिवसेना को उन चुनावों में, न सरकार में साथी कांग्रेस का साथ मिलेगा, न ही राकांपा का। ऐसी स्थिति में शिवसेना अकेले को सीधे ही बीजेपी से लड़ाई लड़नी होगी। शिवसेना भले ही इस मुद्दे को इतना गंभीरता से नहीं ले रही है लेकिन असल में उद्धव ठाकरे भी समझ गए हैं कि बीएमसी चुनाव से उनकी पार्टी और उनकी सीएम की कुर्सी के पतन की शुरुआत हो जाएगी।
शिवसेना बीजेपी को लेकर हमेशा ये आरोप लगाती है कि बीजेपी को राज्य की राजनीति में उसके दम पर ही वोट मिलता है लेकिन बीजेपी ने 2014 के विधानसभा चुनाव में अकेले चुनाव लड़कर दिखा दिया था कि वो शिवसेना को कितना ज्यादा पीछे धकेल सकती है, 2019 में भी पार्टी राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। बीजेपी के दम पर ही मुंबई की शहरी महानगरपालिका यानी बीएमसी में शिवसेना को वोट मिलता है। ऐसे में बीजेपी के न होने पर शिवसेना का घाटा होना तय है। इन सबसे इतर दूसरी ओर बीजेपी ने बिना जनाधार वाले ग्रेटर हैदराबाद महानगरपालिका के चुनावों में जिस कर्मठता के साथ अपनी ताकत झोंकी है उससे शिवसेना की नींद हराम हो गई है क्योंकि बीजेपी की कार्यशैली बता रही है कि वो कुछ इसी अंदाज में बीएमसी का चुनाव भी लड़ेगी। ऐसी स्थिति में बीजेपी को पहले से प्राप्त जनसमर्थन में अधिक इजाफा होगा।
यही नहीं शिवसेना के हिंदुत्व के एजेंडे से मुंह फेरने के बाद उससे जनता काफी हद तक नाराज है। पिछले एक साल में पार्टी और सरकार द्वारा किए गए कार्यों का भी उस की छवि पर बुरा असर पड़ा है जिससे जनता का शिवसेना से मोह भंग हो चुका है। ऐसी स्थिति में बीजेपी को सीधा फायदा है। जिस कारण हैदराबाद महानगरपालिका के इन चुनावों के नतीजों को शिवसेना के लिए आने वाली हार के संकेतों के रूप में देखा जा रहा है जो कि उसके लिए राजनीतिक रूप से एक तगड़ा झटका होगी।