दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे अराजक किसान आंदोलन का असर आम नागरिकों पर ही नहीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है। दिल्ली की तरफ पंजाब, हरियाणा हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर से होने वाली सभी तरह के व्यापारिक गतिविधियां लगभग ठप हैं। ऐसे में एसोचैम के अनुमान के मुताबिक देश को इस आंदोलन के कारण प्रतिदिन करीब 3500 करोड़ का नुकसान हुआ है। कोरोना काल और लॉकडाउन के बाद जब भारतीय अर्थव्यवस्था ने रफ्तार पकड़ने की कोशिश की, तो यह अराजक आंदोलन अर्थव्यवस्था के लिए मुसीबत बन रहा है।
उद्योग पर अपनी नजर रखने वाली संस्था एसोचैम ने किसानों के आंदोलन का अर्थव्यवस्था पर बुरा असर बताया है। उद्योग मंडल के मोटे-मोटे अनुमान के अनुसार किसानों के आंदोलन की वजह से क्षेत्र की सप्लाई चेन और परिवहन प्रभावित हुआ है, जिससे रोजाना 3,000-3,500 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। इस मौके पर एसोचैम के अध्यक्ष निरंजन हीरानंदानी ने कहा, “पंजाब, हरियाणा, हिमाचाल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्थाओं का सामूहिक आकार करीब 18 लाख करोड़ रुपये है। किसानों के विरोध-प्रदर्शन, सड़क, टोल प्लाजा और रेल सेवाएं बंद होने से आर्थिक गतिविधियां ठहर गई हैं।”
किसान आंदोलन को लेकर सीआईआई ने भी चिंता जाहिर की है, और कहा कि ट्रांसपोर्टर्स को समय और पैसे दोनों का नुकसान हो रहा है। हाईवे रोकने से ट्रांसपोर्टर्स को भी नुकसान हो रहा है। संस्था की तरफ से कहा गया, “जरूरी सामान इधर से उधर नहीं जा पा रहा है। हाईवे को किसानों ने जाम किया है, उस वजह से ट्रांसपोटर्स को दूसरे रास्तों से माल को पहुंचाया जा रहा है। इसमें काफी समय और खर्च लग रहा है। माल ढुलाई खर्च में 8-10 प्रतिशत की बढ़ोतरी आई है।”
देश पिछले दो सालों से अर्थव्यवस्था पर मार झेल रहा है जिसके बाद आई इस वैश्विक महामारी वाले कोरोनावायरस ने अर्थव्यवस्था को नकारात्मक स्थिति में पहुंचा दिया है। ऐसे में जब लॉकडाउन खुलने के बाद चीजों ने कुछ सामान्य होना शुरू किया था तो किसानों के इस अराजक तत्वों द्वारा हाईजैक आंदोलन ने अर्थव्यवस्था को असहज कर दिया है। ये देश के लिए बेहद ही बुरी स्थिति है। सभी जानते हैं कि ये किसान आंदोलन कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष की ही देन है। किसान को भ्रमित कर इस आंदोलन को अराजकता प्रदान करना भी इन्हीं विपक्षी पार्टियों का काम है। ऐसे में ये ही विपक्षी एक तरफ अराजकता का माहौल बना कर देश की अर्थव्यवस्था को नुक्सान पहुंचाने के कदम उठाते हैं और दूसरी ओर खराब अर्थव्यवस्था के लिए सरकार की आलोचना करता है जो उनके दोहरे चरित्र को प्रदर्शित करता है।
कोरोना काल और लॉकडाउन के बाद उबरती अर्थव्यवस्था के बीच इस तरह के आंदोलन से देश को हो रहे नुक्सान पर मोदी सरकार को विशेष ध्यान देना होगा, क्योंकि ये खुद एक छोटे स्तर पर अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ रहा है बल्कि अन्य लोगों को भी ऐसे अराजक आंदोलनों के लिए उकसा रहा है।