चीन एक ऐसा देश है जो अपनी असफलताओं को हमेशा दूसरे के मत्थे मढ़ देता है। सबसे दिलचस्प बात ये है कि भारतीय मीडिया जब चीन की इन असफलताओं का विश्लेषण करता है तो चीन तड़प उठता है। नेपाली संसद के भंग होने के बाद चीन पहले ही खीझा हुआ था क्योंकि नेपाल के जरिए भारत पर दबाव बनाने के उसके मंसूबों पर अब पानी फिर चुका है।
इस वाकए से चीन को होने वाले नुक़सान का भारतीय मीडिया ने विश्लेषण क्या कर दिया… चीनी मुख्यपत्र ग्लोबल टाइम्स को तो मिर्ची ही लग गई है, और वो भारतीय मीडिया को तवज्जो देते हुए उसकी निंदा तक करने लगा है। भारत के लोग भी इस तरह की मीडिया रिपोर्टस को भाव नहीं देते जिस पर चीनी मुखपत्र अपना दुखड़ा रो रहा है जो काफी हास्यास्पद है।
चीन कभी नहीं चाहता था कि नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी में फूट पड़े। इसलिए चाइनीज कैबिनेट मिनिस्टर्स तक नेपाल में चीन की राजदूत हूं यांकी के जरिए लगातार नेपाली पीएम केपी शर्मा ओली और पार्टी में उनके प्रतिद्वंद्वी पुष्प कमल दहल प्रचंड से मुलाकात कर मामले को हल करने की कोशिश करते रहे। इसके बावजूद केपी शर्मा ओली के संसद भंग करवाने के एक दांव ने चीन को असहज कर दिया है।
चीनी मुखपत्र ग्लोबल टाइम लगातार केपी शर्मा ओली की आलोचना कर रहा है जबकि वही भारत के खिलाफ बोलने पर ओली की तारीफों के पुल बांध रहा था। ओली के अचानक संसद भंग करने के प्रस्ताव और राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी द्वारा उसे तुरंत मंजूरी देने के मुद्दे पर ग्लोबल टाइम्स दोनों के बीच पुरानी सांठ-गांठ का जिक्र कर रहा है।
भारतीय मीडिया ने इस दौरान नेपाल के सभी राजनीतिक मामलों को कवर किया है और उसने भारत नेपाल चीन के बीच कूटनीतिक रिश्तों का भी एक विस्तृत विश्लेषण किया है जिसको लेकर चीनी मुखपत्र उखड़ गया है। दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भारत को कमजोर करने के लिए चीन लगातार नेपाल के जरिए भारत पर दबाव बना रहा था।
ऐसे में जब अचानक केपी शर्मा ओली का भारत के प्रति रुख बदला और उसके कुछ दिनों बाद ही उन्होंने नेपाली संसद भंग करवा दी, तो भारतीय मीडिया ने इसका सटीक विश्लेषण करते हुए यह बता दिया कि इस फैसले से चीन को कितना बड़ा झटका लगा है, क्योंकि चीनी राजदूत हूं यांकी लगातार नेपाल के इस राजनीतिक गतिरोध को कम करने की कोशिश कर रही थीं; लेकिन इसके बावजूद वह नाकामयाब रहीं।
इस मुद्दे पर भारतीय मीडिया नेटवर्क हिंदुस्तान टाइम्स को घेरते हुए चीनी मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स में लिखा गया कि भारतीय मीडिया चीन और नेपाल के बीच कूटनीतिक रिश्तो में दरार डालने की कोशिश कर रहा है, और नेपाल की राजनीति में चीनी हस्तक्षेप की बेबुनियाद खबरें फैला रहा है, जबकि चीन चाहता है कि नेपाल में लोकतंत्र मजबूत हो।
यह बेहद अजीब बात है कि जिस देश में खुद लोकतंत्र नहीं है, वहां का मुखपत्र दूसरे देश में लोकतंत्र स्थापित करने की बात कह रहा है। भारतीय मीडिया के विश्लेषण को गलत बताते हुए ग्लोबल टाइम्स का कहना है कि नेपाल की संसद भंग होने से नेपाल और चीन के रिश्तो में कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। ग्लोबल टाइम्स का कहना है कि हिंदुस्तान टाइम्स नेटवर्क लगातार दक्षिण एशिया में चीन के खिलाफ प्रोपेगेंडा चलाता रहता है।
बेहद अजीब बात ये है कि जिन मीडिया रिपोर्ट को भारतीय जनता तक ज्यादा तवज्जो नहीं देती है, उनके विश्लेषण पर चीन को मिर्ची लगी है। ये वाकया दिखाता है कि नेपाल की इस कवरेज में पूरे भारतीय मीडिया ने चीन के अस्ल मंसूबे बेनकाब कर दिए हैं और उनका विश्लेषण इस मुद्दे पर बिल्कुल सटीक रहा है।इसीलिए अब चीन अपनी असफलता का सारा ठीकरा भारतीय मीडिया पर फोड़ रहा है।